________________
विषय प्रवेश
श्रावक जो व्रत स्वीकार करता है, वे सर्व से नहीं किन्तु देश से होते हैं। इसलिए श्रावक को त्याग बुद्धि को सिंचन मिलना अत्यावश्यक है। पाँच अणु व्रत को सिंचन मिलता रहे इसीलिए तीन गुण व्रत स्वीकार करके अपनी आवश्यकताएँ सीमित कर दी जाती हैं और पुद्गलों में श्रानन्द मानना त्याग कर जीवन-निर्वाह के लिए बहुत थोड़े पदार्थ का उपभोग किया जाता है। लेकिन यह वृत्ति तभी टिकी रह सकती है, जब आत्मा-अनात्मा का भान हो और पदार्थ तथा आत्मा का भेद विज्ञान हो। सामायिकादि चार शिक्षा व्रत आत्म-भान को जागृत बनाये रखने और भेद विज्ञान स्थिर रखने के साधन हैं। इसलिए इन चार व्रतों का जितना भी अधिक आचरण किया जावेगा, पूर्व के आठ व्रतों पर उतना ही अधिक प्रभाव पड़ेगा और वे उतने ही अधिक विशुद्ध होते जावेंगे।
शिक्षा व्रत पूर्व के आठ व्रतों की भाँति यावज्जीवन के लिए स्वीकार नहीं किये जाते हैं, किन्तु गृहकार्यादि से अवकाश पाकर उस अवकाश का सदुपयोग इन व्रतों के आचरण द्वारा करने का विधान है। ___ सामायिक व्रत का आचरण करके श्रावक यह विचार करे कि मैंने जो स्थूल अहिंसादि व्रत स्वीकार किये हैं, उन व्रतों के द्वारा मेरे में किस अंश तक समभाव पाया है। इसी प्रकार
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com