________________
सं माणुयोगद्दारे पडकमो
( ३४५
1
।
1
उस ० विसे० । इत्थि० विसे० । छष्णोकसायाणं विसे० । पुरिस० विसे० । कोध० विसे० | माण० विसे० । माया० विसे० । पंचणाणावरण - णवदंसणावरण-सेसणामपयडिपंचं तराइयाणं संकामया तुल्ला विसेसाहिया । एवमोघसंकमदंडओ समत्तो ।
णिरयगईए आहारसरीरणामाए संकामया थोवा । सम्मत्तस्स संकामया असंखे ० ० गुणा । मिच्छत्तस्स असंखे० गुणा । सम्मामिच्छत्तस्स विसेसा० । णीचागोदस्स असंखे० गुणा । असादस्स संखे० गुणा । सादस्स संखे० गुणा । उच्चागोदस्स विमे० । अताणुबंधि० विसेसा० । सेसाणं कम्माणं संकामया तुल्ला विसेसा० । एवं णिरयोघसंकम दंडओ समत्तो 1
तिरिक्खगईए आहारसरीरणामाए संकामया थोवा । सम्मत्तस्स असंखे ० गुणा | मिच्छत्तस्स असंखे० गुणा । सम्मामिच्छत्तस्स विसेसा० । देवगई. असंखे ० गुणा । रिगई० विसेसा० । वेउव्वियसरीर० विसे० | णोचागोदस्स अनंतगुणा । असादस्स संखे० गुणा । सादस्स संखे० गुणा । उच्चागोदस्स विसेसा० । मणुस गई० विसे । अताणुबंधि० विसे० । सेसाणं कम्माणं तुल्ला विसेसाहिया । एवं तिरिक्खगइदंडओ समत्तो ।
नपुंसकवेदके संक्रामक विशेष अधिक हैं । स्त्रीवेदके संक्रामक विशेष अधिक हैं। छह नोकषायों के संक्राक्रम विशेष अधिक हैं । पुरुषवेदके संक्रामक विशेष अधिक हैं । ( संज्वलन ) क्रोध संक्रामक विशेष अधिक हैं। मानके संक्रामक विशेष अधिक हैं । मायाके संक्रामक विशेष अधिक हैं। पांच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, शेष नामप्रकृतियों और पांच अन्तराय कर्मों के संक्रामक तुल्य व विशेष अधिक हैं। इस प्रकार ओघ संक्रमदण्डक समाप्त हुआ ।
नरकगति में आहारशरीर नामकर्मके संक्रामक स्तोक हैं । सम्यक्त्वके संक्रामक असंख्यातगुणे हैं । मिथ्यात्व के संक्रामक असंख्यातगुणे हैं । सम्यग्मिथ्यात्व के संक्रामक विशेष अधिक हैं । नीचगोत्रके संक्रामक असंख्यातगुणे हैं । असातावेदनीयके संक्रामक संख्यातगुणे हैं । सातावेदनीयके संक्रामक संख्यातगुणे हैं । उच्चगोत्रके संक्रामक विशेष अधिक हैं । अनन्तानुबन्धिचतुष्कके संक्रामक विशेष अधिक हैं । शेष कर्मोंके संक्रामक तुल्य व विशेष अधिक हैं । इस प्रकार नरकगति में सामान्यसे संक्रमदण्डक समाप्त हुआ ।
तिर्यंचगति में आहारकशरीर नामकर्मके संक्रामक स्तोक हैं । सम्यक्त्वके संक्रामक असंख्यातगुणे हैं । मिथ्यात्व के संक्रामक असंख्यातगुणे हैं । सम्यग्मिथ्यात्व के संक्रामक विशेष अधिक हैं | देवगति संक्रामक असंख्यातगुणे हैं । नरकगतिके संक्रामक विशेष अधिक हैं । वैक्रिकशरीर के संक्रामक विशेष अधिक हैं । नीचगोत्रके संक्रामक अनन्तगुणे हैं । असातावेदनीयके संक्रामक संख्यातगुणे हें | सातावेदनीयके संक्रामक संख्यातगुणे हैं । उच्चगोत्र के संक्रामक विशेष अधिक हैं । मनुष्यगतिके संक्रामक विशेष अधिक हैं । अनन्तानुबन्धि चतुष्क के संक्रामक विशेष अधिक हैं । शेष कर्मोंके संक्रामक तुल्य व विशेष अधिक हैं । इस प्रका तिर्यंचगति में संक्रमदण्डक समाप्त हुआ ।
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org