________________
संकमाणुयोगद्दारे पदेससंकमो
( ४३१
तं चेव एइंदियजादिणामपडिभागं बंधदि । एदेण कारण ईसाणदेवपच्छायदे उक्कस्ससामित्तं दादव्वं ।
___ अप्पसत्थसंठाण-अप्पसत्थसंघडण-अप्पसत्थवण्ण-गंध-रस-फास-उवघाद-अप्पसत्थविहायगइ-णीचागोद-अथिर-असुह-दूभग-दुस्सर-अणादेज्ज-अजसगित्तीणं उक्कस्सओ पदेससंकमो कस्स? जो रइयो गुणिदकम्मसियो सत्तमादो पुढवीदो उव्वट्टिदो, सव्वरहस्सेण कालेण खवणाए अब्भुट्टिदो, तस्स चरिमसमयसुहुमसांपराइयस्स उक्कस्सओ पदेससंकमो । बेइंदिय-तेइंदिय-चरिदिय-सुहम-अपज्जत्त--साहारणाणं उक्क० *कस्स? तिरिक्ख-मणुस्सेसु पुवकोडिपुधत्तं वियट्टिदूण कसाए अणुवसामिय सव्वलहुं जो खवेदि, तस्स चरिमसमयसंछोहयस्स उक्कस्सओ पदेससंकमो। णवरि अपज्जत्तयस्स सुहुमसांपराइयचरिमसमए ।
उच्चागोदस्स उक्कस्सओ पदेससंकमो कस्स? जो गुणिदकम्मंसिओ चदुक्खुत्तं) कसाए उवसामेऊण मिच्छत्तं गदो, तदो चरिमस्स णीचागोदबंधयस्स पढमसमए रहस्सेण कालेण सिज्झिहिदि त्ति उच्चागोदस्स उक्कस्सओ पदेससंकमोव । एवमुक्कस्ससामित्तं समत्तं । इस कारण ईशानगत देवपर्यायसे पीछे आये हर जीवके उद्योत नामकर्म के उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमका स्वामित्व देना चाहिये ।
__ अप्रशस्त संस्थान, अप्रशस्त संहनन, अप्रशस्त वर्ण, गन्ध, रस व स्पर्श, उपघात, अप्रशस्त विहायोगति, नीचगोत्र, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय, और अयशकीर्ति ; इनका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? जो गणित कौशिक नारको जीव सातवीं पृथिवीसे निकलकर सर्वलघु कालमें क्षपणामें उद्यत होता है उस अन्तिम समयवर्ती सूक्षमसाम्परायिकके उक्त प्रकृतियोंका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जाति, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण नामकर्मों का उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? जो तिर्यंचों और मनुष्योंमें पूर्वकोटिपृथक्त्व तक विचरण करके कषायोंको न उपशमा कर सर्वलघु कालमें क्षपणा करता है उसके संक्रम करते हुए अन्तिम समयमें उनका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है। विशेष इतना है कि अपर्याप्त नामकर्मका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम सूक्ष्मसाम्परायिकके अन्तिम समयमें होता है।
उच्चगोत्रका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? जो गुणितकर्माशिक चार बार कषायोंको उपशमा कर मिथ्यात्वको प्राप्त हआ है, तत्पश्चात (नीचगोत्रको बांधता नीचगोत्रकी बन्धुव्युच्छित्तिके पश्चात् ) थोडे ही कालमें सिद्धिको प्राप्त होनेवाला है उस अन्तिम समयवर्ती नीचगोत्रबन्धके उक्त अल्प सिद्धिकालके प्रथम समयमें उच्चगोत्रका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है। इस प्रकार उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम स्वामित्व समाप्त हुआ।
४ कम्मचउक्के असुभाण बज्झमाणीण सुहम ( ख वग ) रागते । क. प्र २,८०. काप्रती 'साहारणाणं कुदो उक्क०' इति पाठः। O अ-काप्रत्यो: 'चदुक्खेत्ते', ताप्रतौ 'चदुको (क्खु ' तं इति पाठः।
चउरुवसमित्तु मोहं मिच्छत्तगयस्स नीयबंधंतो। उच्चागोउक्कोसो तत्तो लह सिज्झओ होइ ।। क. प्र. २, ९३. चतुष्कृत्वश्च मोहोपशमः किल भवद्वयेन भवति । ततस्तृतीये भवे मिथ्यात्वं गतः सन् नीचर्गोत्रं बध्नाति । तच्च बध्नन् तत्रोच्चैर्गोत्रं संक्रमयति। ततः पुनरपि सम्यक्त्वमासाद्योच्चैर्गोत्रं बध्नन् तत्र
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org