Book Title: Shatkhandagama Pustak 16
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 330
________________ धवलास हितसमग्रषटखंडागमस्य पारिभाषिक-शब्द-सूची ( ४२ भ १३-२४८ | बाह्य निर्वृत्ति -२३४ | ब्रह्म ४-२३५; १३-३१६ फ बाह्यपंक्ति ४-१५१ | ब्रह्मोत्तर फल ( राशि ) ३-१८७,१९० | बाह्य-वर्गणा १४-२ ३,२२४ फलराशि ४- ७,७१,३४७ बाह्येन्द्रिय ७-६८| भक्त प्रत्याख्यान १-२४ फलाचारण ९-५९ बीज १.-३२८ भगवत १३-३४६ बीजचारण ९-७९ भजितत्र्य १३-३०९ बद्ध-अबद्ध १३-५२ | बीजपद ९-५६,५७,५९. | भज्यमानराशि ३-४७ बद्धायष्क ६-२०८ ६०,१२७ | भद्रा ४-३१९ बद्धायुष्कघात ४-३८३ | बीजबद्धि भय ६-४७;७-३४,३५,३६; बद्धायुष्कमनुष्य सम्यग्दृष्टि | बुद्धभाव । १४-१८ ८-१०, १३-३३२,३३६, ३४१,३६१ ४-६९ / बुद्धि १३-२४३ १२-३०३ | बोधितबुद्ध ४-१५, १३-३०७ भरत बध्यमान ५-३२३ | भव १०-३५,१४-४२५; बल ४-३१८ | बौद्ध -४९७; ९-३२३ | बलदेव १५-७; १६.५१२,५१९ ६-८३,८५.४९०, ७- 1 बलदेवत्व भवग्रहण १३-३३८,३४२; ६-४८९,४९२, ८२, ८-२,३,८; ३१-७, १४-३६२ ४९५,४९६ ३४७; १४-१,२,३० बहु ९-१४९; १३-५०; २३५ | बंधक | भवग्रहणभव १६-५१२ ७-१;८-२; १४-२ बहु-अवग्रह ६-१९ | भवधारणीय ९-२३५ बंधकसत्वाधिकार ७-२४ बहुव्रीहिसमास ३-७ भवन १४-४९५ बंधकारण बहुविध ९-१५१; १३-२३७ भवनवासिउपपादक्षेत्र ४-८० बंधन ७-१८-२; १४-१ ४-७८ बहुविध-अवग्रह भवनवासिक्षेत्र ६-२० बंधन उपक्रम १५-४२ भवनवासिजगप्रणधि ४-७८ बहुश्रुत ८-७२,७३,८९ बंधनगुण १४-४३५ | बहुश्रुतभक्ति ८-९,८९ भवनवासि जगमूल ४-१६४ बंधनीय ७-२;८२-; १४-१, भवनवागिप्रायोग्यानुपूर्वी बादर १-२४९,२६७, २-३३० २ ४८,९६, ४-२३० ३३१, ६-६१८-११, बंधप्रकृति १२-४९५ भवनवासी ४-१६२८-१४६ १३-४९,५० बादरकर्म १-१५३ बंधमार्गणा | भवनविमान ४-१६२ बंधविधान ७-२;८-२,१४-२| ४-३२५ बादरकृष्टि | भवपरिवर्तन १२-६६ बादरनिगोदद्रव्यवर्गणा१४-८४ बंधविधि | भवपरिवर्तनकाल ४-३३४ बादरनिगोदप्रतिष्ठित बंधव्युच्छेद भवपरिवर्तनवार ४-३३४ ३-३४८,४-२५१ बंधसमत्पत्तिकस्थान १२-२२४ भवस्थिति ४-३३३,३९८ बादरयुग्म १०-२३, १४-१४७ बंधस्थान १३-१११,११२ भवस्थितिकाल ४-३२२,३९९ बादरयुग्मराशि ३-२४९ बंधस्पर्श १३-३,४,७ भवाननुगामी १३-२९४ बादरसाम्परायिक ७-५ बंधाध्वान ८-८ भवानुगामी १३.२९४ बादरस्थिति ४-३९०,४०३ बंधानुयोगद्वार ९-२३३ भवप्रत्यय १३-२९०,२९२ बाहल्य ४-१२,३५,१७२ | बंधावली ४-३३२; ६-१६८ | भवप्रत्ययअवधि ६.२९ बाह्यतप ८-८६ २०२; १०-१११,१९७ । भवप्रत्ययिक १५-१७२,२६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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