Book Title: Shatkhandagama Pustak 16
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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५१ )
व्यवहार १-८४७ - २९; १३ | शरीरनिवृत्तिस्थान १४ -५१६ | शुक्र ४,३९,१९९ | शरीरपर्याप्ति १-५५; शुक्ल
४-२६५; १३-३१६ ६-७४; १३-५० १३-७७
४-३१७
शुक्लत्व
७-३४; १४-५२७ शरीरबन्ध १४-३७,४१,४४ शरीरबन्धन
७-१३,६७;
१३-७५, ७७
६-५३
शुक्लध्यान शुक्ललेश्या १-३९०; ७-१०४,
९-१७१
शरीरबन्धन गुणछेदना
१३-३००
८-३४६ ; १६-४८४,४८८
व्यवहारकाल
व्यवहारनय
व्यवहारपल्य
व्याख्यान ४-७९.११४,१६५
३४१
व्याख्याप्रज्ञप्ति १ - १०१,११०, शरीर विस्रसोपचयप्ररूपणा
९-२२०,२०७
व्याघात
४-४०९ | शरीरसंघात
व्यापक
व्यास
४-८ शरीरसंघातनाम ४-२२१ व्युत्सर्ग ८-८३,८५; १३-६१
शरीरसंस्थान
व्रज
१३- ३३६ शरीर संस्थाननाम
व्रत
८-८३
शक्र
शत
शककाल
शकट
शक्तिस्थिति १०-१०९,११०
१३-१३,१६
श
शतपृथक्त्व
शतसहस्र
शतार
शब्दनय
४-२३५
७-१५७
४-२३५
४-२३६
१-८७; ७ - २९;
९-१७६, १८१; १३-६,७,
४०,२००
शब्दप्रवीचार
शब्दलिंगज
शरीर
परिशिष्ट
१४-४३६ शरीरबन्धननाम १३-३६३,
३६४
शरीरनाम Jain Educatior शरीरनामकर्म
शलाका
शलाकाराशि
शलाकासंकलना
शशिपरिवार
शाटिका ( साडिया)
शालभज्जिका
शाश्वतानन्त
शाश्वता संख्यात
शिविका
१-२३९
१३-२४५
१४-४३४, शीत
शैलेश्य
शरीरसंहनननाम ९-१३२ १४-३८ | शरीरी १-१२०; १४-४५,२२४ शरीरीशरीरप्ररूपणा १४-२२४ | शोक
३-३१४-४३५.
४८४, ६-१५२ | शंख ३-३३५,३३६ | शंखक्षेत्र
४-२०० श्यामा
४३५ शीतिनाम
शरीरआंगोपांग ६-५४; शीतस्पर्श
१३-३६३,३६४|शील
१४-२२४
६-५३
१३-३६३,
शुभनाम
३६४
६-५३ शुभप्रकृति १३-३६३, शून्य शैलकर्म
३६४ १३-३६३, ३६४
शुक्लवर्णनाम
शुद्ध
शुद्ध ऋजुसूत्र
शुद्धनय
शुभ
४-१५२ श्यामामध्य १४ - ४१ ४-१६५ श्वेत
लक्षण
१५-१७६
१४-१३६
९-२४९ ३ ९,१०,
४१,२०२; १४-५
६-४१७ ; ९-३४५; १०-३२६; १६-४७९,५२१
१३-३६३,३६७ | शीलव्रतेषु निरतिचारता
६-५२
३-१५ श्रद्धान श्रीवत्स
३ - १२४
१४-३९ श्रुत
६-७५ श्रुतअज्ञानी
१३-३७०
१३-२४ श्रुतकेवली ८-८२ श्रुतज्ञान
For Private & Person८-७९,८२
४९२
१३-३७०
१३-२८०,२८६
९-२४४
७-६७
६-६४; ८-१० १३-३६२,३६५
६-४७; ८-१० ;
१३-३६१
१३-२९७
४-३५
१४- ५०३
१४- ५०३
१३-५०२
४-३१८
१३-६३
१३-२९७
९-३३२; १६-३८५ ७-८४; ८- २७९
१४-२०
८-५७; ९-१३०
१-९३,३५७, ३५८०
३५९; ६-१८,४८४,४८६;
९-१६० ; १३-२१०२४onelibrary.org.
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