Book Title: Shatkhandagama Pustak 16
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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४५)
परिशिष्ट
१८२ मृतिका
मृदुक मृदुकनामक
७८३
मानुषक्षेत्रव्यपदेशान्य- मिथ्यात्वादिकारण ४.२४ | मूलप्रकृति थानपपत्ति
४.१७१ मिथ्यात्वादिप्रत्यय ७../ मूलप्रकृतिबन्ध मानुषोत्तरपर्वत ४.१९३ | | मिथ्यादर्शन १२.२८६ मूलप्रत्यय
८-२० मानुषोत्तरशैल ४.१५०,२१६. मिथ्यादर्शनवाक् १.११७ मूलप्रायश्चित १३-६२
| मिथ्यादृष्टि १.१६२, ६२, मूलाग्रसमास -३३; १०. मानोपशामनाद्धा ५.१९० । २७४,६.४४९,४५२, ४५४;
१.३,१३४,२४६ माया १.३.० ६.४१, ७.१२१८.४,८६; मृग
१३-३९१ १२.२८३
९.१८
१३-२०५ मायाकषाय १.३४९ मिश्र
७.९
१३-५० मायाकषायी मिश्रक १३.. २३, २४
६-७५ मायागता १.११३; ९.२१० मिश्रग्रहणाद्धा ४२२९,३२८ | मृदुनाम
१३-३७० मायाद्धा | मिश्रद्रव्यस्पर्शन ४.१४३ |
मृदुस्पर्श
१३-२४ मायासंज्वलन १३.३६० मिश्रनोकर्मद्रव्यबन्धक ७.४ मृदंगक्षेत्र
४-५१ मायी
१.१२० मिश्रप्रक्रम
| मृदंममुखरुंदप्रमाण ४५१ मायोपशामनाद्धा ५.१९० मिश्रमगल
१.८/मदंगसंस्थान
४-२२ मारणान्तिककाल
मिश्रवेदना
१०.७ मृदंगाकार ४-११,१२ मारणान्तिकक्षेत्रायाम ४६६ | मीमांसक ६.४१.०९.३२३ मषावाद
१२.२७९ मारणान्तिकराशि
४.८५ मीमांसा १३.२४२
१३.२४२ मारणान्तिकसमुद्घात ४.२६
१६.३३८ मेरु
४.१९३ १६६, ७.३०० मक्तजीवसमवेत ५०.५ मेरुतल
४ २०४ मार्ग १३.२८०,२८८ मुक्तमारणान्तिक ४.१७५, मेरुपर्वत
४ २ १८ मार्गण
१.१३१ २३०, ७.३०७,३१२ | मेरुमूल
४.२०५ मार्गणा ७.७; १३.२४२; | मुक्तमारणान्तिकराशि ४.७६, मेड
२४३५ ३०७,३१२| मंत्र
४१८ मार्गणास्थान ८.८ | मुख ४.१४६.१३.३७१.३८३ |
१.२८२ मालव
१३.२२२ मुखप्रतरांगुल ४.४८ मैथुनसंज्ञा
१.४१५ मालास्वप्न
९.७४ मुखविस्तार
४. ३ | मोक्ष .४९०;९६;१३. मास४.३१७,३९५,१३.२९८ मुनिसुव्रत १३.३७
३.६,३ ८,१६.३३७, मुहूते ३ ६६.४.३१७ ३९०,
३३८ मासपृथक्त्व ५.३२,९३
१३.९८,२९९ मोक्षअनुयोगद्वार मासपृथक्त्वान्तर ५.१७९
९.२३४ मुहुर्तपृथक्त्व ५.३२,४५ | मोक्षकारण माहेन्द्र ४.२३५,१३.३१६
१३.३०६ | मोक्षप्रत्यय
७.२४ मिथ्याज्ञान १२.२८६
मूर्तद्रव्यभाव मिथ्यात्व ४,३३६,३५८,४७७,
१२.२ | मोष मनोयोग १.२८०,२८१ ५.६;६.३९, ७.८,८.२,
| मूल ४१४६,१०.१५० मोह १२.२८३; १४.११ ९,१९; ९.११७,१०.४३; मूलनिवर्तना १६.४८६ मोहनीय ६.११; १३.२६, १३.३५८; १४.१२ मूलतंत्र
२०८,३५७
१० मेधा
मुक्त
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