Book Title: Shatkhandagama Pustak 16
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 334
________________ धवलासहितसमग्रषखंडागमस्य पारिभाषिक-शब्द-सूची मंग युग्म मंद रागद्वेष मंदरमल मोहनीयकर्मप्रकृति १३.२०६ | युग ४-३१७; १३-२९८,३०० | रत्नि ४-४५ युग्म । राशि) ३-२४९ | रस ६-५५,८-१०,३५७ मंगल १.३२,३३,३४, ९-२, १०-१९,२२ | रस १-२३५ १०३ यति १३-३४६,३१८ रसनाम १३-३६३,३६४,३७० मंगलदण्डक ९.१०६ योग १-१४०,२९९,४-४७७ | रसपरित्याग १२-५७ मडलीक १५७ ५-२२६;७-६,८८.२ | रह १४-३८ मंथ १०.३२१,३२८ २०; १०-४३६,४३७; | राक्षस ४-२३२; १३-३९१ मंथसमुद्घात ६.४१३ १२-३६७ १२-२८३; १४-११ . १३.५० | योगकृष्टि १०-३२३ ४.८३ योगद्वार १३-२६०,२६१ राजा य योगनिरोध ४-३५६,१३-८४| राजु ७-३७२ यक्ष १३.३९३ | योगप्रत्यय ८-२१ रात्रियोजन . १२-२८३ यतिवृषभभट्टारक १२.२३२ | योगवर्गणा १०-३४३,४४९ राशि ३-२४९ यथाख्यातसंयत १.३७३; | योगपरावत्ति ४-४०९ राशिविशेष ३-३४२ ८.३०९ योगयवमध्य १०-५७,५९,रिक्ता ४-३१९ यथाख्यातसंयम १२.५१ २४२; १६-४७३ | रुचक १३-३०७ यथाख्यातविहारशुद्धिसंयत योगस्थान ६-२०११०-७६, रुचकपर्वत ४-१९३ १.३७१७-२४ ४३६,४४२ रुधिरनामकर्म ६-७४ यथातथानुपूर्वी १.७३; ९-१३५ | योगान्तरसंक्रान्ति ५-८९ रुधिरवर्णनाम . १३-३७० १३-३८० योमावलम्नाकरण १०-२१२ रूक्षनाम यथानुमार्ग १३-२८०,२८६ | योगावास १०-५१ १०-५१ रुक्षनामकर्म ६-७५ यथाशक्तितप ८-७९,८६ | योगाविभागप्रतिच्छेद रूक्षस्पर्श यथास्वरूप .१०-१७७,१८९, १०-४४० ४-२०० १९९,२३७,४७६ | योगी १-१२० रूपगत १३-३१९,३२१,३२३ यन्त्र १३-५,५४ योग्य ४-३१९ रूपगतराशि १०-१५१ यम योजन १३-३०६,३१४,३२५ रूपगता १-११३; ९-२१० यव १३-२०५ | योजनपृथक्त्व १३-३३८,२३९ रूपप्रक्षेप ४-१५० यवमध्य १०-५९,२३६; | योजनायोग ( जुंजण ) रूपप्रवीचार १.३३९ . १२-२३१, १४.५०,४०२, १०-४३३,४३ . १-११७ _५०० योनिप्राभृत १३-३४९ यवमध्यजीव १०-६२ रूपाधिकाभागहार १०-६६,७० यवमध्यप्रमाण रूपी १४.३२ १०-८८ रज्जु ३-३३;४-११,१३, यशःकीर्ति - ८-११ १६५,१६७ रूपीअजीवद्रव्य यशःकीर्तिनाम १३-३६३,३६६ रज्जुच्छेपनका ४१५५ रूपोनभागहार १०-६६,७१ यादृच्छिक प्रसंग ४-१८ | रज्जुप्रतर ४-१५०,१६४ १२-१०२ युक्तानन्त ३-१८ | रति ६-४७;८-१०; १३-३९१ | रूपोनावलिका ४-४३ | रतिवाक् १-११७ | रोग १३-३३२,३३६,३४१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org १३-२४ रूप रूपसत्य Jain Education International

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