Book Title: Shatkhandagama Pustak 16
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 286
________________ अप्पाबहुअणुयोगद्दारे उत्तरपयडिसंतकम्मदंडओ ( ५९१ मायाए विसे० । लोहे विसे० । पयलापयला० असंखे० गुणं । णिद्दाणिद्दा० विसे० । थीणगिद्धि० विसे० । केवलणाण. असंखे गुणं । पयला० विसे० । णिद्दा० विसे० । केवलदंसण. विसे० । ओहिणाण. अणंतगुणं । ओहिदंसण० विसे० । णिरयगइ० असंखे० गुणं । देउव्विय० संखे० गुणं । आहार० असंखे० गुणं । मणुसाउअम्मि असंख० गुणं । तिरिवखाउअम्मि असंखे० गुणं । कोहसंजलण० असंखे० गुणं । मायासंज० विमे० । पुरिस० विसे। माणसंज०० विसे० । णिरय-देवाउ अम्मि विसे । तिरिक्खगईए असंखे० गुणं । इत्थि० असंखे० गुणं । गqस० विसे० । णीचागोदे० असंख० गुणं । मणुसगइ० असंखे० गुणं । ओरालिय. असंखे० गुणं । उच्चागोदे० असंखे० गुणं। जसकित्ति० असंखे० गुणं । तेज० संखे० गुणं । कम्मइय० विसे । अजसगित्ति० संखे० गुणं। हस्स० संखे० गुणं । रदि० विसे० । सादे खे० गुणं । सोगे संखे० गुणं । अरदि० विसे० । दुगुंछ० विसे । भय० विसे०। लोहसंजल० विसे०। दाणंतराइय० विसे० । लाहंतराइय० विसे० । भोगतराइय० विसे० परिभोगंतराइय० विसे० । विरियंतरा विशेषअधिक है। माया में विशेष अधिक है। लोभमें विशेष अधिक है। प्रचलाप्रचलामें असंख्यातगुणा है। निद्रानिद्रामें विशेष अधिक है। स्त्यानगृद्धि में विशेष अधिक है। केवलज्ञानावरणमें असंख्यातगुणा है। प्रचलामें विशेष अधिक है। निद्रामें बिशेष अधिक है । केवलदर्शनावरणमें विशेष अधिक है। अवधिज्ञानावरणमें अनन्तगुणा है। अवघिदर्शनावरणमें विशेष अधिक है। नरकगतिमें असंख्यातगुणा है। वैक्रियिकशरीरमें संख्यातगुणा है। आहारकशरीरमें असंख्यातगुणा है। मनुष्यायुमें असंख्यात गुणा है। तिर्यगायुमें असंख्यातगुणा है। संज्वलन क्रोधमं असंख्यातगुणा है। संज्वलन मायामें विशेष अधिक है। पुरुषवेदमें विशेष अधिक है। संज्वलन मानमें विशेष अधिक है। नारकायु और देवायुमें विशेष अधिक है। तिर्यग्गतिमें असंख्यातगुणा है। स्त्रीवेदमें असंख्यातगुणा है । नसकवेदमें विशेष अधिक है। नीचगोत्र में असंख्यातगुणा है। मनुष्यगतिमें असंख्यातगुणा है। औदारिकशरीरमें असंख्यातगुणा है। उच्चगोत्रमें असंख्यातगुणा है। यशकीति में असंख्यातगुणा है। तैजसशरीरमें संख्यातगुणा है। कार्मणशरीर में विशेष अधिक है। अयशकीतिमें संख्यातगुणा है। हास्यमें संख्यातगुणा है। रतिमें विशेष अधिक है। सातावेदनीयमें संख्यातगुणा है। शोक में संख्यातगुणा है। अरतिमें विशेष अविक है। जुगुप्सामें विशेष अधिक है। भयम विशेष अधिक है। संज्वलन लोभमें विशेष अधिक है। दानान्तरायमें विशेष अधिक है। लाभान्तराय में विशेष अधिक है। भोगान्त रायमें विशेष अधिक है । परिभोगान्त रायम विशेष अधिक है । वीर्यान्तरायमें विशेष अधिक है । मनःपर्यय * ताप्रती ‘कोह संजलण० असंखे० गुणा। माणसं० विसे । पुरिस० विसे० । मायासंजलण.' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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