Book Title: Shatkhandagama Pustak 16
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 315
________________ २७ ) परिशिष्ट . ४.५१ गुणकार ४.७६; ५.२४७, | गुणितकर्माशिक ६.२५६,२५८ | गोड १३.२२२ २५७,२६२,२७४ १०.२१,२१५; १२.११६, | ४.१४५ गुणकारशलाका ४.१९६ | ३८२, ४२६; १५.२९७ गौण्य ९.१३५,१३६ गुणकारशलाकासंकलना | गुणितक्षपितघोलमान ६.२५७ गौण्यपद १.७४; ९.१३८ ४.२०१ गुणितघोलमान १०.३५,२१५, गौतम १०.२३७ गुणगार १४.३२१ १२.४२६ | गौतम स्थविर १२.२३१ गुणधरभट्टारक १२.२३२ गुणोपशामना १५.२७५ ग्रन्थ १४.८ गुणनाम १.१८ गुरुकनामकर्म ६.७५ ग्रन्थकर्ता ९.१२७,१२८ गुणपरावृत्ति ४.४०९,४७० । गुरुनाम १३.३७० ग्रन्थकृति ९.३२१ ४७१ गुरुस्पर्श १३.२४ | ग्रन्थसम ९.२६०,२६८; गुणप्रतिपन्न १५.१७४ .१७४ | गुह्यकाचरित ४८ १३.२०३; १४.८ गुणप्रत्यय १३.२९०,२९२ | गृह १४.३९ | ग्रन्थिम ९.२७२ गणप्रत्ययअवधि ६.२९| गहकर्म ९.१५०; ३.९ | ग्रह गुणप्रत्यासत्तिकृत १४.१७ १०,४१,२०२,१४.६ | ग्रहणतः आत्तपुद्गल १६.५१५ गुणयोग १०.४३३ | गहछली ९.१०७,१०८ | ग्रहणप्रायोग्य १४.५४३ गुणश्रेणि६.२ २२,६२४,२२७; ३.५४,५७ | ग्राम ७-६; १३-३३६ १२.८०; १५२९६ गृहीत अगृहीत १३.५१ | ग्रेवेयक ४-२३६,१३-३१८ गुणश्रेणिनिक्षेप ६.२२८,२३२ १०.४४१ ग्लान १३.६३,२२१ गुणश्रेणिनिक्षेपाग्राम ६.२३२ गहीतगुणाकार ३.५४,६१ गणश्रेणिनिर्जरा १०.२९६ गृहीतगृहणाद्धा ४.३२८ घट १३.२०४ १५.२९ गुणश्रेणिशीर्ष गृहीतगृहणाद्धाशलाका ४.३२९ | घटोत्पादानुभाग १३.२४९ ६.२३२; गृहीतगृहीत १५.२९८,३३३ १३-२२१ ३.५४,५९; | घन घनपल्य १०.२२२ । ३-८०,८१ गणश्रेणिशीर्षक १०.२८१, गोत्र ६.१३; १३.२६,२०९ | घनफल ४-२० ३२० गोत्रकर्म ४-१४६ गुणसंक्रम६.२२२,२३६,२४९, १३.३०८ | धनरज्जु गोत्रकर्मप्रकृति १३.२०६ | घनलोक ४-१८,१८४,२५६ १०.२८०,१६.४०९ गुणस्थानपरिपाटी ५.१३ गोधूम १३.२०५ ७-३७२ गुणतस्थितिकाल ४.३२२ गोपुच्छद्रव्य ६.२६० | घनलोकप्रमाण ४-५० गुणहानि ६.१५१,१६३,१६५ | गोपुच्छविशेष ६.१५३; । धनहस्त १३-३०६ गुणहानिअध्वान १०.७६ १०.१२२ घनांगुल ३-१३२,१३९; गुणाद्धा ५.१५१ | गोपुच्छा १०.१०९ ४-१०,४३,४४,१५,१७८; गुणान्तरसंक्रमण ४.३३५ | गोपुर १४.३९ ५-३१७,३३५ गुणान्तरसंक्रान्ति ५.८९,१५४ गोमूत्रिकगति ४.२९ । घनांगुलगुणाकार. ४-३३ १७१ | गोमूत्रकागति १.३०० |घनांगुलप्रमाण ४-३३ गुणित | गोम्हिक्षेत्र ४.३४ | हार ४-९८ |गोवरपीठ १४.४० | घनाघनधारा ३-५३,५८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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