Book Title: Shatkhandagama Pustak 16
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 304
________________ धवलासहितसमग्रषट्खंडागमस्य पारिभाषिक-शब्द-सूची अर्यमन ४-३१८ , अवग्रहजिन ९-६२ | अवस्थितगुणश्रेणी निक्षप अर्हत १-४४ | अवग्रहावरणीय १३-२१६, ६-२७३ अल्प १३-१८ २१९ | अवस्थित प्रक्षेप ६-२०० अल्पतर उदय १६-३२५ | अवदान १३-२४२ | अवस्थित भागहार १०-६६; अल्पतर उदीरणा १६-५०, अवधि १-३५९,८-२६४; १२-१०२ १५७,२६० १३-२१०,२९० अवस्थितवेदक ६-३१७ अवधिक्षेत्र अल्पतरकाल १०-२९५,२९२ अवस्थित संक्रम ४-३८,७९ १६-३९८ अवस्थितोग्रतप पतरसक्रम ९.८७,८९ १२-४० १६-३९८ अवधिजिन अवसन्नासन्न ४-२३ अल्पबहुत्व । अनुयोग) १,१५८ | अवधिज्ञान १-९३.३५८; अवसर्पिणी ३-१८; ४-३८९; अस्पबहुत्व ३-११४,२०८; ६-२५,४८४,४८६,४८८; ९-११९ ४-२५; १०-१९, १३-९१, ९-१३ अवहरणीय १०-८४ १७५,३८४; १४-३२२) अवधिज्ञानावरणीय ६-२६; अवहार ३-४६,४७,४८; अल्पबहुत्वप्ररूपणा १४-५० १३.२०९,२८९ १०-८४; १४-५० अल्पान्तर ५-११७ | अवधिज्ञानी ७-८४, ८-२८६ हारकाल ३-१६४,१६७; अलाभ १३-३३२,३२४,३४१ अवधिदर्शन १-३८२, ६-३३; ४-१५७,१८५,५-२४९; अलेश्य ७-१०२; १३-३५५ ६-३६९; १०-८८ अलेश्यिक ७-१०५,१०६ / अवधिदर्शनावरणीय ६-३१। अवहारकालप्रक्षेपशलाका अलोक १०-२ ३३; १३-३५४ ३-१६५,१६६,१७१ अलोकाकाश ४-९,२२|अवधिदर्शनी ७-९८,१०३; | अवहारकालशलाका ३-१६५ अवक्तव्य उदय १६-३ ५ ८-३१९ अवहारविशेष अवक्तव्य उदीरणा १६-५१, अवधिलम्भ १६-१७६.२३८ अवहारशलाका १०-८८ १५७ | अवधियिषय १३-२१५ अवहारार्थ ३-८७ अवक्तव्यकृति ९-२७४| अवगमन १३-८९ अवहित ७-२४७ अवक्तव्यपरिहानि १०- , १२ | अवबोध ४-३२२ अवाङ १३-२१० अवक्रमणकाल १४-४७९| अवमौदर्य १३-५६ अवाण १४-२२६ अवगाहनलक्षण ४-८| अवयव ९-१३६ अवाय १-३५४,६-१७,१८% अवगाह्यमान ४-२३| अवयवपद १-७७ ९-१४४; १३-२१०,२४३ अवायजिन अवगाहना ४-२५,३०,४५, अजितकरण ९-६२ १५.२५९ अवितथ १३-२८०,२८६ ९-१७; १३-३०१ १६-५१९,५७७ अविभाग प्रतिच्छेद ४-१५%, अवगाहनागुणकार ४-४४,९८ | अवलम्बना १३-२४२ ९-१६९, १०-१४१ अबगाहनादंडक ११.५६ | अवस्थित १३-२९२,२९४ १२-९२; १४-४३१ अवगाहनाविकल्प ४-१७६; | अवस्थित उदय १५.३२५ | अविभागप्रतिच्छेदाग्र ६-३६६ १३-३७१,३७६,३७७,३८३ | अवस्थित उदारणा १५-१,५, | अविरति ७-९ अबग्रह १-३५४,३७९, ६-१६, १५७ | अविरदत्त १४-१२ १८; ९-१४४; १३-२१६, | अवस्थित गुणकार ९-४५ अविवाग १४-१० २४२; १६-५ । अवस्थित गुणश्रेणी ६.२७३ | अविसंवाद ४-१५८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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