Book Title: Shatkhandagama Pustak 16
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

View full book text
Previous | Next

Page 284
________________ अप्पाबहुअणुयोगद्दारे उत्तरपयडिसंतकम्मदंडओ ( ५८९ विप्से० । सादे संखे० गुणं । सोगे संखे० गुणं । अरदि० विसे० । दुगुंछ० विसे० । भय० विसे० । माणसंजल. विसे० । कोहसंज० विसे । मायासंजविसे०। लोहसं० विसे० । दाणंतराइय० विसे० । एवं विसेसाहियकमेण णेदव्वं जाव विरियंतराइयं ति । मणपज्जव० विसे० । ओहिणाण. विसे० । सुदणा० विसे । मदि० विसे० । ओहिदंसण० विसे० । *अचक्खु० विसे । चक्खु०विसे०। असादे०संखेज्जगुणं । एवं तिरिक्खगइदंडओ समत्तो। देवगदीए जहण्णेण सम्मत्ते पदेससंतकम्मं थोवं । सम्मामिच्छत्ते पदेससंतकम्मं असंखें ज्जगुणं । अणंताणुबंधिमाणे असंखे० गुणं । कोहे विसे० । मायाए विसे० । लोहे विसे० । मिच्छत्ते असंखे० गुणं । पयलापयला० असंखे० गुणं । णिद्दाणिद्दा० विसे० । थीणगिद्धि०विसे० । अपच्चक्खाणमाणे असंखे० गुणं । कोहे विसे ०। मायाए विसे० । लोहे विसे० । पच्चक्खाणमाणे विसे । कोहे विसे० । मायाए विसे० । लोहे विसे० । केवलणाण. विसे० । पयला० विसे० । णिहा० विसे० । केवलदसण. विसे० । आहार० अणंतगुणं । देवाउअम्मि असंखे० गुणं । तिरिक्ख-मणुसाउअम्मि असंखे० गुणं । णिरयगदीए असंखेज्जगुणं । तिरिक्खगदीए असंखे० गुणं । णवंस० है। रतिमें विशेष अधिक है। सातावेदनीय में संख्यातगणा है । शोकमें संख्यातगुणा है। अरतिमें विशेष अधिक है । जुगुप्सामें विशेष अधिक है। भयमें विशेष अधिक है। संज्वलन मानमें विशेष अधिक है। संज्वलन क्रोधमें विशेष अधिक है। संज्वलन मायामें विशेष अधिक है। संज्वलन लोभमें विशेष अधिक है। दानान्तरायमें विशेष अधिक है। इस प्रकार विशेषाधिकक्रमसे वीर्यान्तराय तक ले जाना चाहिये। आगे मनःपर्ययज्ञानावरणमें विशेष अधिक है। अवधिज्ञानावरणमें विशेष अधिक है। श्रुतज्ञानावरणमें विशेष अधिक है। मतिज्ञानावरण में विशेष अधिक है। अवधिदर्शनावरणमें विशेष अधिक है। अचक्षुदर्शनावरण में धिक है। चक्षदर्शनावरणमें विशेष अधिक है। असातावेदनीयमें संख्यातगणा है। इस प्रकार तिर्यग्गतिदण्डक समाप्त हुआ। देवगतिमें जघन्यसे प्रदेशसत्कर्म सम्यक्त्वमें स्तोक है। सम्यग्मिथ्यात्वमें प्रदेशसत्कर्म असंख्यातगुणा है। अनन्तानुबन्धी मानमें असंख्यातगुणा है। क्रोधमें विशेष अधिक है । मायामें विशेष अधिक है । लोभमें विशेष अधिक है। मिथ्यात्वमें असंख्यातगुणा है । प्रचलाप्रचलामें असंख्यातगुणा है । निद्रानिद्रामें विशेष अधिक है। स्त्यानगृद्धिमें विशेष अधिक है । अप्रत्याख्यानावरण मानमें असंख्यातगुणा है। क्रोधमें विशेष अधिक है। मायामें विशेष अधिक है। लोभमें विशेष अधिक है। प्रत्याख्यानावरण मानमें विशेष अधिक है। क्रोघम विशेष अधिक है। मायामें विशेष अधिक है। लोभमें विशेष अधिक है। केवलज्ञानावरणमें विशेष अधिक है । प्रचलामें विशेष अधिक है । निद्रामें विशेष अधिक है । केवलदर्शनावरणमें विशेष अधिक है । आहारकशरीरमें अनन्तगुणा है । देवायुमें असंख्यातगुणा है। तिर्यगायु और * ताप्रती नास्तीदं वाक्यम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348