Book Title: Shatkhandagama Pustak 16
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 282
________________ अप्पाबहुअणुयोगद्दारे उत्तरपयडिसंतकम्मदंडओ । ५८७ विसे० । अचक्खु० असंखे० गुणं । पयलापयला० असंखे० गणं । णिद्दाणिद्दा० विसे०। थीणगिद्धि० विसे० । अपच्चक्खाणमाणे० असंखे० गुणं । कोहे० विसे० । मायाए विसे०। लोहे विसे । पच्चक्खाणमाणे विसे० । (कोहे विसे० ।) मायाए विसे । लोहे विसे० । केवलणाण. विसे० । पयला० विसे० । णिद्दा० विसे०। केवलदंसण० विसे० । आहार० अणंतगुणं । णिरयाउअम्मि असंखे० गुणं । देवगदीए असंखे० गुणं । मणुसगई० असंखे० गणं । तिरिक्खगई० संखे० गुणं । णिरयगई० संखे० गुणं । उच्चागोद० संखे० गुणं * । इत्थि० संखे० गुणं । णqस० संखे० गुणं । णी वागोद० संखे० गुणं । जसकित्ति० असंखे० गुणं । ओरालिय० संखे० गुणं। तेज. विसे० । कम्मइय० विसे । अजसकित्ति० संखे०० गुणं । पुरिस० संखे० गुणं । हस्स०संखे० गुणं । रदि० विसे० सादे० संखे० गुणं । सोगे० संखे० गुणं । अरदि०विसे०। दुगुंछ ० विसे । भय विसे० । माणसंजलण विसे० । कोहसंज. विसे० । मायाए विसे० । लोहसंजलण विसे० । दाणंतराइय० विसे० । लाहंतराइय० विसे० । भोगंतराइय० विसे । परिभोगंतराइय० विसे० । विरियंतराइय. विसे० । मणपज्जव० विसे० । मायामें विशेष अधिक है। लोभ में विशेष अधिक है। अचक्षुदर्शनावरणमें असंख्यातगुणा है। प्रचलाप्रचलामें असंख्यातगणा है। निद्रानिद्रामें विशेष अधिक है। स्त्यानगृद्धिमें विशेष अधिक है। अप्रत्याख्यानावरण मान में असंख्यात गुणा है। क्रोध में विशेष अधिक है। मायाम विशेष अधिक है। लोभमें विशेष अधिक है। प्रत्याख्यानावरण मानमें विशेष अधिक है। ( क्रोधमें विशेष अधिक है । ) मायामें विशेष अधिक है। लोभमें विशेष अधिक है। केवलज्ञानावरणमें विशेष अधिक है। प्रचलामें विशेष अधिक है। निद्रामें विशेष अधिक है । केवलदर्शनावरणमें विशेष अधिक है। आहारकशरीरमें अनन्तगुणा है। नारकायुमें असंख्यातगुणा है। देवगति में असंख्यातगुणा है। मनुष्यगतिमें असंख्यातगुणा है। तिर्यग्गतिमें संख्यात गुणा है। नरकगतिमें संख्यातगुणा है। उच्चगोत्र में संख्यातगुणा है। स्त्रीवेदमें संख्यातगुणा है। नपुंसकवेदमें संख्यातगुणा है। नीचगोत्रमें संख्यातगुणा है। यशकीतिमें असंख्यातगुणा है। औदारिकशरीरमें संख्यातगुणा है। तैजसशरीरमें विशेष अधिक है। कार्मणशरीरमें विशेष अधिक है। अयशकीर्तिमें संख्यातगुणा है। पुरुषवेदमें संख्यातगुणा है। हास्यमें संख्यातगुणा है। रतिमें विशेष अधिक है। सातावेदनीयमें संख्यातगुणा है। शोकमें संख्यातगुणा है । अरतिमें विशेष अधिक है। जुगुप्सामें विशेष अधिक है। भयमें विशेष अधिक है। संज्वलन मान में विशेष अधिक है। संज्वलन क्रोधमें विशेष अधिक है। संज्वलन मायामें विशेष अधिक है। संज्वलन लोभ में विशेष अधिक है। दानान्तरायमें विशेष अधिक है। लाभान्तरायमें विशेष अधिक है। भोगान्त राय में विशेष अधिक है। परिभोगान्तरायमें विशेष अधिक है। वीर्यान्त राय में विशेष अधिक है। मनःपर्ययज्ञानावरण में * अतोऽने प्रतिषु 'तिरिक्तगई. असंखे. गणं ' इत्येदधिकं वाक्यमपलभ्यते । ४ अप्रतौ 'अपंखे० ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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