Book Title: Shatkhandagama Pustak 16
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 280
________________ अप्पाबहुअणुयोगद्दारे उत्तरपयडिसंतकम्मदंडओ ( ५८५ अरदि*० विसे० । णवंसय. विसे० । दुगुंछ विसे । भय० विसे । पुरिस० विसे०। माणसंजल० विसे०। कोहे० विसे । मायाए विसे० । लोहे विसे । पुणो पुणो विसेसाहियं, एवं विसेसाहियकमेण णेदवं जाव विरियंतराइं ति । मणपज्जव० विसे० । ओहिणाण. विसे० । सुद० विसे० । मदि० विसे । ओहिदसण. विसे० । अचक्खु० विसे० । चक्खु० विसे० । सादे० संखे० गणं । उच्चागोदे० विसे० । णीचागोदे० विसे० । एवं णिरयगइदंडओ समत्तो। जहण्णेण पदेससंतकम्मेण सम्मत्ते* थोवं संतकम्मं । सम्मामिच्छत्ते असंखेज्जगुणो। अणंताणुबंधिमाणे असंखे० गुणं । कोहे विसे० । मायाए० विसे० । लोहे विसे० । मिच्छत्ते असंखे० गणं । अपच्चवखाणमाणे असंखे० गुणं । कोहे० विसे० । मायाए० विसे० । लोहे० विसे । पच्चक्खाणमाणे विसेसाहिओ। कोहे विसे०। मायाए विसे०। लोहे० विसे० । पयलापयला० असंखे० गुणा। णिहाणिद्दा० विसे० । थोणगिद्धि० विसे० । केवलणाण० असंखे० गुणं । पयला. विसे० । णिद्दा० विसे० । केवलदसण० संख्यात गुणे संख्यातगुणा है। शोक में संख्यातगुगा है। अरतिमें विशेष अधिक है। नपुंसकवेदमें विशेष अधिक है। जुगुप्सामें विशेष अधिक है। भय में विशेष अधिक है। पुरुषवेदमें विशेष अधिक है। संज्वलन मानमें विशेष अधिक है। संज्वलन क्रोधमें विशेष अधिक है। संज्वलन मायामें विशेष अधिक है। संज्वलन लोभमें विशेष अधिक है। पुनः पुनः विशेष अधिक, इस प्रकार विशेष अधिक क्रमसे वीर्यान्तराय तक ले जाना चाहिये। मनःपर्ययज्ञानावरणमें विशेष अधिक है। अवधिज्ञानावरण में विशेष अधिक है। श्रुतज्ञानावरणमें विशेष अधिक है। मतिज्ञानावरण में विशेष अधिक है। अवधिदर्शनावरण में विशेष अधिक है। अचक्षुदर्शनावरणमें विशेष अधिक है। चक्षदर्शनावरणमें विशेष अधिक है । सातावेदनीयमें संख्यातगुणा है। उच्चगोत्रमें विशेष अधिक है। नीचगोत्र में विशेष अधिक है । इस प्रकार नरकगतिदण्डक समाप्त हुआ। जघन्य प्रदेशसत्कर्मकी अपेक्षा सत्कर्म सम्यक्त्वमें स्तोक है। सम्पग्मिथ्यात्वमें असंख्यातगुणा है। अनन्तानुबन्धी मानमें असंख्यातगुणा है। क्रोधमें विशेष अधिक है। मायामें विशेष अधिक है। लोभमें विशेष अधिक है। मिथ्यात्वमें असंख्यातगुणा है। अप्रत्याख्यानावरण मानमें असंख्यातगुणा है। क्रोधमें विशेष अधिक है। मायामें विशेष अधिक है। लोभमें विशेष अधिक है। प्रत्याख्यानावरण मानमें विशेष अधिक है। क्रोधमें विशेष अधिक है। मायामें विशेष अधिक है। लोभमें विशेष अधिक है। प्रचलाप्रचलामें असंख्यातगुणा है। निद्रानिद्रामें विशेष अधिक है। स्त्यानगृद्धि में विशेष अधिक है। केवलज्ञानावरण में असंख्यातगुणा है । प्रचलामें विशेष अधिक है। निद्रामें विशेष अधिक है । * अप्रती 'रदि०', काप्रती त्रुटितोऽत्र पाठः ताप्रतौ' (अ) रदि.' इति पाठः । ४ अप्रतौ 'एव णिरयाउणिरयगई-', काप्रती णिरयाउणिरयगई-', ताप्रती 'णिरयाउ० । णिग्यगइ-' Jain Education Inte इति पाठः। * प्रतिषु 'सम्मत्त' इति पाउ: A Personal use Only www.jainelibrary.org

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