Book Title: Shatkhandagama Pustak 16
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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अप्पा बहुअणुयोगद्दारे उत्तरपयडिसंतक्रम्मदंडओ
( ५८१
पंचवीसाए असंखे० गुणं । एक्कवीसाए असंखे० गुणं । चउवीसाए असंखे० गुणं । अट्ठवीसाए असंखे० गुणं । छव्वीसाए अगंगुणं । एवमोघदंडओ समत्तो ।
उत्तरपयडिट्ठिदिसंतकम्मेण जहण्णेण पंचणाणावरण- चउदसणावरण-सादासादसम्मत्त-लोहसंजलण - इत्थि - णवुंसयवेद. आउच उक्क मणुसगइ जस कित्ति- उच्चागोदपंचतराइयाणं जहण्णट्ठिदी थोवा । जट्ठिदी तत्तिया* चेव । जत्तिया ( णिद्दाणिद्दा - ) पलापयला थीणगिद्धि- णिद्दा- पयला-मिच्छत्त सम्मामिच्छत्त- बारसकसाय - णिरयइ-तिरिक्खगइ - देवगड पंचसरीर अजसकित्ति-णीचागोदाणं जहण्णिया द्विदी तत्तिया चेव । जट्ठिदी संखेज्जगुणा । मायासंज० जह० असंखेज्जगुणा । माणसंजल० विसे० । कोहसंज० विसे० । पुरिसवेद० संखे० गुणा । छष्णोकसायणं संखे० गुणा । जट्टिदी विसे । एवमोघदंडओ चेव ।
उत्तरपयडिअणुभागसंतकम्मेण जहण्णेण सव्वमंदाणुभागं लोहसंजलणं । माया ० अतगुणा | माण अनंतगुणं । कोह० अनंतगुणं । विरियंतराइय० अनंतगुणं । सम्मत्त० अनंतगुणं । चवखु अनंतगुणं । सुदाणुभागं अनंतगुणं । मदिणाण अनंतगुणं । अक्खु अनंतगुणं । ओहिणाण० अनंतगुणं । ओहिदंसण० अनंतगुणं ।
०
बाईस संख्यातगुणे हैं । तेईसके संख्यातगुणे हैं । सतावीस के असंख्यातगुणे हैं । इक्कीसके असंख्यातगुणे हैं। चौबीसके असंख्यातगुणे हैं । अट्ठाईसके असंख्यातगुणे हैं । छब्बीसके अनन्तगुणे हैं । इस प्रकार ओघदण्डक समाप्त हुआ ।
उत्तरप्रकृतिस्थितिसत्कर्मकी अपेक्षा जघन्यसे पांच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, साता व असातावेदनीय, सम्यक्त्व, संज्वलन लोभ, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, चार आयु कर्म, मनुष्यगति, यशकीर्ति, उच्चगोत्र और पांच अन्तराय; इनकी जघन्य स्थिति स्तोक है । ज-स्थिति उतनी मात्र ही है । निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, स्त्यानगृद्धि, निद्रा, प्रचला, मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, बारह कषाय, नरकगति, तिर्यग्गति, देवगति, पांच शरीर, अयशकीर्ति और नीचगोत्र ; इनकी जघन्य स्थिति उतनी मात्र ही है । ज-स्थिति संख्यातगुणी है। संज्वलन मायाकी जघन्य स्थिति असंख्यात - गुणी है । संज्वलन मानकी जघन्य स्थिति विशेष अधिक है। संज्वलन क्रोधकी जघन्य स्थिति विशेष अधिक है । पुरुषवेदकी जघन्य स्थिति संख्यातगुणी है। छह नोकषायोंकी जघन्य स्थिति संख्यातगुणी है । इन सबकी जस्थिति क्रमशः विशेष अधिक है। इस प्रकार ओघदण्डक ही है । उत्तरप्रकृतिसत्कर्मकी अपेक्षा जघन्यत: सबसे मद अनुभागवाला संज्वलन लोभ है । संज्वलन माया उससे अनन्तगुणी है । संज्वलन मान अनन्तगुणा है । सज्वलन क्रोध अनन्तगुणा है । वीर्यान्तराय अनन्तगुणा है । सम्यक्त्व प्रकृति अनन्तगुणी । चक्षुदर्शनावरण अनन्तगुणा है। श्रुतज्ञानावरण अनन्तगुणा है । मतिज्ञानावरण अनन्तगुणा है । अचक्षुदर्शनावरण अनन्तगुणा है । अवधिज्ञानावरण अनन्तगुणा है । अवधिदर्शनावरण अनन्तगुणा
D प्रतिषु सम्मत्त मणुसग इणामाए इत्थि ' इति पाठः । तातो' तत्तिय'ए' इति पाठः । अ-काप्रत्यो: 'जत्तिया पयलापयला', ताप्रती 'जत्तिया ( णिद्दाणिद्दा ) पयलापयला' इति पाठ: । * अप्रतो' मंदाणुभागं', काप्रती ' मंदमंदाणुभाग, ताप्रती ' मद०' इति पाठः ।
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