Book Title: Shatkhandagama Pustak 16
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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५८२ )
छक्खंडागमे संतकम्मं
O
परिभोग० अणंतगुणं । ( भोग० अनंतगुणं । - ) लाहंतराइय० अनंतगुणं । दाणंत'राइय० अनंतगुणं । विरियंतराइय० अनंतगुणं । ( पुरिस० अनंतगुणं । ) इत्थि - वेद० अणंतगुणं । णवुंस० अनंतगुणं । मणपज्ज० अनंतगुणं । सम्मामिच्छत्त० अणंतगुणं । केवलणाण० केवलदंसणावरण० अनंतगुणं । पयला० अनंतगुणं । णिद्दा० अनंतगुणं । हस्स० अणंतगुणं । रदि० अनंतगुणं । दुगंछा० अनंतगुणं । भय० अनंतगुणं । सोग० अनंतगुणं । अरदि० अनंतगुणं । अणंताणुबंधिमाण० अनंतगुणं । कोह० विसे० । मायाए० विसे० । लोह० विसे० । वेउ० अनंतगुणं । तिखिखाउ० अनंतगुणं । तिरिक्खाणुपुवि० अनंतगुणं । णिरयगइ० अनंतगुणं । मणुसगइ० अनंतगुणं । देवगइ० अनंतगुणं । उच्चागोद० अनंतगुणं । असाद० अनंतगुणं । निरयाउ० अनंतगुणं । ओरालिय० अनंतगुणं । तेज० अनंतगुणं । कम्मइय० अनंतगुणं । तिरिक्खइ० अनंतगुणं । णीचागोद० अनंतगुणं । अजस कित्ति ० अनंतगुणं । अणादेज्ज० अनंतगुणं । पयलायपयला अनंतगुणं । णिद्दाणिद्दा० अनंतगुणं । थोणगिद्धि० अनंतगुणं अपच्चक्खाणमाण अनंतगुणं । कोह० विसे० । माया ० विसे० । लोह० विसे० । मिच्छत्त० अनंतगुणं । जसकित्ति० अनंतगुणं । एवमोघदंडओ समत्तो ।
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है । परिभोगान्तराय अनन्तगुणा है । ( भोगान्तराय अनन्तगुणा है। ) लाभान्तराय अनन्तगुणा है । दानान्तराय अनन्तगुणा है । वीर्यान्तराय अनन्तगुणा है । पुरुषवेद अनन्तगुणा है । स्त्रीवेद अनन्तगुणा है । नपुंसकवेद अनन्तगुणा है । मन:पर्ययज्ञानावरण अनन्तगुणा है । सम्यग्मिथ्यात्व अनन्तगुणा है । केवलज्ञानावरण और केवलदर्शनावरण अनन्तगुणे हैं । प्रचला अनन्तगुणी है । निद्रा अनन्तगुणी है । हास्य अनन्तगुणा है । रति अनन्तगुणी है । जुगुप्सा अनन्तगुणी है । भय अनन्तगुणा है। शोक अनन्तगुणा है । अरति अनन्तगुणी हैं । अनन्तानुबन्धी मान अनन्तगुणा है । अनन्तानुबन्धी क्रोध विशेष अधिक है । अनतानुबन्धी माया विशेष अधिक है । अनन्तानुबन्धी लोभ विशेष अधिक है । वैक्रियिकशरीर अनन्तगुणा है । तिर्यगायु अनन्तगुणी है । तिर्यगानुपूर्वी अनन्तगुणी है । नरकगति अनन्तगुणी है । मनुष्यगति अनन्तगुणी है । देवगति अनन्तगुणा है । उच्चगोत्र अनन्तगुणा है । असातावेदनीय अनन्तगुणा है । नारका अनन्तगुणी है । औदारिकशरीर अनन्तगुणा है । तैजसशरीर अनन्तगुणा है । कार्मणशरीर अनन्तगुणा है । तिर्यग्गति अनन्तगुणी है । नीचगोत्र अनन्तगुणा है । अयशकीर्ति अनन्तगुणी है । अनादेय अनन्तगुणा है । प्रचलाप्रचला अनन्तगुणी है । निद्रानिद्रा अनन्तगुणी है | स्त्यानगृद्धि अनन्तगुणी है । अप्रत्याख्यानावरण मान अनन्तगुणा है । क्रोध विशेष अधिक है । माया विशेष अधिक है । लोभ विशेष अधिक है। मिथ्यात्व अनन्तगुणा है । यशकीर्ति अनन्तगुणी है । इस प्रकार ओघदण्डक समाप्त हुआ ।
कात 'परिभोगांत राइय० अनंतगुणं । लाहंतराइयं अनंतगुणं । दाणंतराद्दय अनंतगुणं । वीरियंतराइय• गुणं । इत्थवेद ', ताप्रती 'परिभोग०लाहं तराइय。 वीरियंतराइय० इत्थिवेद ' इति पाठ: ।
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