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- छक्खंडागमे संतकम्म अहिंसादिसु कज्जेसु जीवस्स मज्झिमुज्जम पम्मलेस्सा कुणइ । वुत्तं च
चाई भद्दोचोक्खो उज्जुवकम्मो य खमइ बहुअं पि । साहु-गुरुपूजणरओ पम्माए परिणओ जीवो। ८ । अहिंसाइसु कज्जेसु तिव्वुज्जमं सुक्कलेस्सा कुणइ । वुत्तं च-- ण य कुणइ पक्खवायं ण वि यणिदाणं समो य सब्वेसु ।
णत्थि य राग-द्दोसो हो वि य सुक्कलेस्साए* एवं दव्वलेस्साए वि कज्जाणं परूवणा जाणिदूण कायव्वा । एवं लेस्सायम्मे त्ति समत्तमणुयोगद्दारं।
पद्मलेश्या जीवकी उपर्युक्त अहिंसादि कार्यों में मध्यम उद्यम करनेवाला करती है। कहा भी है
पद्मलेश्यामें परिणत जीव तयगी, भद्र, चोखा (पवित्र), ऋजुकर्मा (निष्कपट), भारी अपराधको भी क्षमा करनेवाला तथा साधुपूजा व गुरुपूजामें तत्पर रहता है ।। ८ ॥
शुक्ललेश्या उक्त अहिंसादि कार्यों में तीव्र उद्यमशील करती है। कहा भी है
शुक्ललेश्याके होनेपर जीव न.पक्षपात करता है और न निदान भी करता है, वह सब जीवोंमें समान रहकर राग, द्वेष व स्नेहसे रहित होता है ।। ९ ॥
इसी प्रकार द्रव्यलेश्याके कार्योंकी भी प्ररूपणा जानकर करना चाहिये । इस प्रकार लेश्याकर्मअनुयोगद्वार समाप्त हुआ ।
8 अ-काप्रत्योः ' मज्झिमुज्जुमं ' इति पाठः। 0 अ-काप्रत्योः 'भंडो' इति पाठः। गो. जी. ५१५. तत्थ 'खवा' इत्येतस्य स्थाने 'खमदि ' इति पाठः । ४ अ-काप्रत्यो: 'ण रिय' इति पाठः । AM अ-काप्रत्यो: 'राग दोसा',ताप्रसौ'रा दोसो' इति पाठः। * गो. जी ५१६.
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