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अप्पाबहुअणुयोगद्दारे अणुभागसंतकम्म
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चरिमसमयमादि कादूण जाव दुचरिमसमयभवसिद्धो त्ति ।
आउअस्स उक्कस्साणुभागसंतकम्मं कस्स ? खवयस्स बद्ध तदुवकस्साणुभागस्स बंधपढमसमयप्पहुडि जाव तब्भवत्थस्स दुचरिमसमयादो-त्ति उक्कस्साणुभागसंतकम्मिओ होज्ज । एवमोघसामित्तं समत्तं ।
गदीसु अप्पसत्थाणं कम्माणं उक्कस्साणुभागसंतकम्मं जहा ओघेण कदं तहा कायव्वं + । णिरयगदीए सादस्स उक्कस्साणुभागसंतकम्म कस्स ? जेण कसाए उवसातेण चरिमसमयसुहुमसांपराइएण जं बद्धं सादाणुभागसंतकम्मं तमघादेदूण जो णिरयगदीए उववण्णो तस्स उक्कस्सयं सादाणभागसंतकम्मं । जहा सादस्स तहा जसकित्ति-तित्थयरणामकम्माणं उवसामएण बद्धाणुभागमघादेदूण णिरयगदीए उप्पण्णस्स उक्कस्सं वत्तव्वं । एवं सव्वासु गदीसु णेयव्वं । एवमुक्कस्ससामित्तं समत्तं ।
मदि-सुदावरण-चक्खु-अचक्खुदंसणावरणाणं जहण्णाणुभागसंतकम्मं कस्स ? चोदसपुवियदुचरिमसमयछदुमत्थस्स उक्कस्सलद्धियस्स । ओहिणाणावरण-ओहिदसणावरणाणं जहण्णाणुभागसंतकम्म कस्स ? चरिमसमयछदुमत्थस्स परमोहियस्स उक्कस्स
समयवर्ती भव्यसिद्धिक तकके होता है ।
___ आयुका उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? जिसने उसके उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध किया है उसके बन्धके प्रथम समयसे लेकर तद्भवस्थ रहनेके द्विचरम समय तक उसका उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म होता है। इस प्रकार ओघ स्वामित्व समाप्त हुआ।
गतियोंमें अप्रशस्त कर्मोंका उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म जैसे ओघ रूपसे किया गया है वैसे करना चाहिये । नरकगतिमें सातावेदनीयका उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? कषायोंका उपशम करनेवाले जिस अन्तिम समयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिकके द्वारा जो सातावेदनीयका उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म बांधा गया है उसको न घातकर जो नरकगतिमें उत्पन्न हुआ है उसके सातावेदनीयका उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म होता है। सातावेदनीयके समान यशकीर्ति और तीर्थंकर नामकर्मोंके उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्मके स्वामी उपशामकके द्वारा बांधे गये अनुभागको न घातकर नरकगतिमें उत्पन्न हुए जीवको कहना चाहिये । इसी प्रकार सब गतियोंमें ले जाना चाहिये । इस प्रकार उत्कृष्ट स्वामित्व समाप्त हुआ।
___ मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, चक्षुदर्शनावरण और अचक्षुदर्शनावरणका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? वह चौदह पूर्वोके धारक उत्कृष्ट श्रुतार्थलब्धि युक्त द्विचरम समयवर्ती छद्मस्थके होता है । अवधिज्ञानावरण और अवधिदर्शनावरणका जघन्य अनुभागसत्कम किसके होता है? वह परमावधिके धारक उत्कृष्ट लब्धि युक्त अन्तिम समयवर्ती छद्मस्थके होता है।
४ त प्रतौ 'कस्स ? खवयस्स परभवियबद्ध' इति पाठः। अ-का प्रत्यो: 'समयदो'' इति पाठः । . अ-काप्रत्योः 'कदा तहा कापव्वा' इति पाठः। * अ-काप्रत्योः 'उकास्सयसादाणं गंतकम्मं ' इति
पाठः। ॐ मप्रतिपाठोऽयम । अ-का-ताप्रतिष-मघादेमाणं'' इति पाठः ।
अ-काप्रत्योः 'दंसणावरण' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only
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