________________
( ५५५
अप्पाबहुअणुयोगद्दारे संकमप्पाबहुअं णस० विसे० । दाणंतराइए विसे० । एवं विसेसाहियकमेण णेदव्वं जाव विरियंतराइयं ति । मणपज्जव० विसे । ओहिणा० विसे० । सुद० विसे० । मदि० विसे। ओहिदंस० विसे० । अचक्खु० विसे० । चक्खु० विसे० । अण्णदरसंजलणकसाए विसे० । णीचागोदे० विसे० । सादासादे विसे० । एवमेइंदियदंडओ समत्तो। एवमुदओ समत्तो।
जा विपरिणामेणोप कमेण मग्गणा सा चेव मोक्खाणुयोगद्दारे कायव्वा। उत्तरपयडिसंकमे आहार० संकामया थोवा । सम्मत्ते० असंखे० गुणा । मिच्छत्ते असंखे० गुणा। सम्मामिच्छत्ते० विसेसा० । देवगदीए० असंखे० गुणा । णिरयगदीए० विसे० । वेउब्विय विसे० । णीचागोदस्स अणंतगुणं । असाद० संखे० गुणं । सादस्स० संखे० गुणं । उच्चागोदस्स० विसे० । मणुसगदीए० विमे० । अणंताणुबंधिचउक्कस्स० विसे । जसकित्तीए विसे० । अटकसायाणं विसे० । थीणगिद्धितियस्स० तिरिक्खगदीए० विसे० । लोहसंजलणाए विसे० । णवंस० विसे० । इत्थि विसे० । छण्णोकसायाणं विसे० । पुरिसवेद० विसे० । कोहसंजलण० विसे० ।
विशेष अधिक है। रति और अरति में विशेष अधिक है। नपुंसकवेदमें विशेष अधिक है। दानान्तराय में विशेष अधिक है। इस प्रकार विशेष अधिक क्रमसे वीर्यान्तराय तक ले जाना चाहिये। मनःपर्ययज्ञानावरण में विशेष अधिक है। अवधिज्ञानावरण में विशेष अधिक है। श्रुतज्ञानावरण में विशेष अधिक है। मतिज्ञानावरणमें विशेष अधिक है। अवधिदर्शनावरणम विशेष अधिक है। अचक्षुदर्शनावरणमें विशेष अधिक है। चक्षदर्शनावरण में विशेष अधिक है । अन्यतर संज्वलन कषायमें विशेष अधिक है। नीचगोत्र में विशेष अधिक है। साता और असाता वेदनीयमें विशेष अधिक है। इस प्रकार एकेन्द्रियदण्डक समाप्त हुआ। इस प्रकार उदय समाप्त हुआ।
जो विपरिणामोपक्रमसे मार्गणा है वह मोक्षअनुयोगद्वारमें की जावेगी। उत्तर प्रकृतिसंक्रममें आहारशरीरके संक्रामक स्तोक है। सम्यक्त्व प्रकृतिके संक्रामक असंख्यातगुणे हैं। मिथ्यात्वके संक्रामक असंख्यातगुणे है। सम्यग्मिथ्यात्वके संक्रामक विशेष अधिक हैं। देवगतिके संक्रामक असंख्यातगुणे है। नरकगतिके संक्रामक विशेष अधिक हैं। वैक्रियिकशरीरके संक्रामक विशेष अधिक हैं। नीचगोत्रके संक्रामक अनन्तगुणे हैं। असातावेदनीयके संक्रामक संख्यातगुणे हैं। सातावेदनीयके संक्रामक सख्यातगुणे हैं। उच्चगोत्रके संक्रामक विशेष अधिक हैं। मनुष्यगतिके संक्रामक विशेष अधिक हैं। अनन्तानुबन्धीचतुष्कके संक्रामक विशेष अधिक हैं। यशकीर्ति के संक्रामक विशेष अधिक हैं। आठ कषायोंके संक्रामक विशेष अधिक हैं। स्त्यानगृद्धित्रिकके संक्रामक (?)। तिर्यग्गतिके संक्रामक विशेष अधिक हैं। संज्वलन लोभके संक्रामक विशेष अधिक है। नपुंसकवेदके संक्रामक विशेष अधिक हैं। स्त्रीवेदके संक्रामक विशेष अधिक हैं। छह नोकषायोंके संक्रामक विशेष अधिक हैं। पुरुषवेदके
ताप्रती 'विपरिणामणोपक्कमेण' इति पाठः।
अ-का-ताप्रतिष 'गम्मणा', मप्रती 'कम्पण' इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org