________________
५७० )
छक्खंडागमे संतकम्मं
संखे० गुणं । रदि० विसे० । साद० संखे० गुणं । सोगे ० संखे० गुणं । अरदि० विसे० । दुगुंछ० विसे० । भय० विसे० । कोहे० विसे० | माणे० विसे० । लोहे० विसे० । मायाए० विसे० । दाणंतराइए० विसे० । एवं विसेसाहियकमेण णेदव्वं जाव विरियंतराइयंति । मणपज्जव० विसे० । ओहिणाण० विसे० । सुद० विसे० । मदि० विसे० ० । ओहिदंसण० विसे० । अचक्खु० विसे० । चदखु० विसे । असाद गुणं । एवं देवगइदंडओ समत्तो ।
संखे ०
c
( एइंदिएसु) जं पदेसग्गं संकामिज्जदि सम्मत्ते तं थोवं । सम्मामिच्छत्ते असंखे ० गुणं । अताणुबंधिमाणे० असंखे० गुणं । कोहे० विसे० । मायाए० विसे० लोहे० विसे० । अपच्चक्खाणमाणे ० असंखे० गुणं । कोहे० विसे०। मायाए० विसे । लोहे० विसे० । पच्चक्खाणमाणे० विसे०। कोहे० विसे० । मायाए० विसे० । लोहे० विसे० । केवलणाण० विसे० । पयला० विसे० । णिद्दा० विसे० । पयलापयला ० विसे० । णिद्दाणिद्दा० विसे० । श्रीणगिद्धि० विसे० । केवलदंसणा विसे० । णिरयगई० अनंत
विशेष अधिक है । सातावेदनीयमें संख्यातगुणा है । शोकमें संख्यातगुणा है। अरतिमें विशेष अधिक है । जुगुप्सा में विशेष अधिक है । भयमें विशेष अधिक है । ( संज्वलन ) क्रोध में विशेष अधिक । संज्वलन मानमें विशेष अधिक है । संज्वलन लोभमें विशेष अधिक है । संज्वलन मायामें विशेष अधिक है । दानान्तराय में विशेष अधिक है। इस प्रकार विशेषाधिकक्रमसे वीर्यान्तराय तक ले जाना चाहिये । मन:पर्ययज्ञानावरण में विशेष अधिक है । अवधिज्ञानावरण में विशेष अधिक है । श्रुतज्ञानावरण में विशेष अधिक है । मतिज्ञानावरण में विशेष अधिक है । अवधिदर्शनावरण में विशेष अधिक है । अचक्षुदर्शनावरण में विशेष अधिक है । चक्षुदर्शनावरण में विशेष अधिक है । असातावेदनीयमें संख्यातगुणा है । इस प्रकार देवगतिदण्डक समाप्त हुआ ।
( एकेन्द्रिय जीवों में ) जो प्रदेशाग्र सम्यक्त्वमें संक्रान्त होता है वह स्तोक है । सम्यमिथ्यात्व में असंख्यातगुणा है । अनन्तानुबन्धी मानमें विशेष अधिक है । अनन्तानुबन्धी क्रोध में विशेष अधिक है । अनन्तानुबन्धी मायामें विशेष अधिक है । अनन्तानुबन्धी लोभ में विशेष अधिक है । अप्रत्याख्यानावरण मानमें असंख्यातगुणा है । अप्रत्याख्यानावरण क्रोध में विशेष अधिक है । अप्रत्याख्यानावरण मायामें विशेष अधिक है । अप्रत्याख्यानावरण लोभम विशेष अधिक हैं । प्रत्याख्यानावरण मानमें विशेष अधिक है । प्रत्याख्यानावरण क्रोधमें विशेष अधिक है । प्रत्याख्यानावरण मायामें विशेष अधिक है । प्रत्याख्यानावरण लोभमें विशेष अधिक है । केवलज्ञानावरण में विशेष अधिक है । प्रचला में विशेष अधिक है। निद्रामें विशेष अधिक है । प्रचलाप्रचलामें विशेष अधिक है । निद्रानिद्रा में विशेष अधिक है । स्त्यानगृद्धिमें विशेष अधिक है । केवलदर्शनावरण में विशेष अधिक है । नरकगति में अनन्तगुणा है । देवगतिमें
घ ताप्रती 'लोहे विसे० । केवलणाणे विसे० । पयला० विसे० । अपच्च- ' इति पाठः । ताप्रती 'लोहे विसे० । केवलणाण० विसे० । पच्चक्खाणमाणे विसे०, को हे विसे०, माया० विसे०, लोहे० विसे० । णिद्दा०' इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org