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छक्खंडागमे संतकम्म
णिद्दा० विसे० । पयलापयला० विसे० । णिहाणिद्दा० विसे० । थोणगिद्धि ० विसे । केवलदसणा० विसे० । मिच्छत्ते० असंखे० गुगं । अणंताणुबंधिमाणे० असंखे० गुणं । कोहे० विसे० । मायाए० विसे० । लोहे० विसे० । णिरयगइ० अणंतगुणं । आहार० असंखे गुणं । जसकित्ति० असंखे० गुणं । वेउव्विय० संखे० गुणं । ओरालिय० विसे० । तेज. विसे० । कम्मइय० विसे० । अजस कित्तिः संखे० गुणं । देवगइ० विसे० । तिरिक्खगइ० विसे० । मणुसगइ० विसे० । हस्स० संखे० गुणं । रदि० विसे० । साद० संखे० गुणं । णवंसयवेद० संखे० गुणं । सोगे० विसे० । अरदि० विसे० । णवंस. (?) विसे० । दुगुंछ० विसे । भय० विसे० । पुरिस० विसे० । माणसंजलण. विसे०। कोह० विसे । माया० विसे०। लोह. विसे । दाणंतराइय० विसे०। लाहंतराइय० विसे०। एवं विसेसाहियकमेण णेदव्वं जाव विरियंतराइयं ति । मणपज्ज० विसे० । ओहिणाण. विसे०। सुद० विसे । मदि० विसे० । ओहिदसण० विसे० । अचक्खु० विसे० । चक्खु० विसे० । साद० संखे० गुणं । उच्चागोदे० विसे० । णीचागोद० विसे० । एवं तिरिक्खगइदंडओ समत्तो। मणुसेसु ओघ
अधिक है । प्रचलामें, विशेष अधिक है। निद्रा में विशेष अधिक है । प्रचलाप्रचलामें विशेष अधिक है। निद्रानिद्रामें विशेष अधिक है। स्त्यानगृद्धि में विशेष अधिक है। केवलदर्शनावरणमें विशेष अधिक है। मिथ्यात्वमें असंख्यातगुणा है। अनन्तानुबन्धी मानमें असंख्यातगुणा है । अनन्तानुबन्धी क्रोधमें विशेष अधिक है । अनन्तानुबन्धी मायामें विशेष अधिक है। अनन्तानुबन्धी लोभमें विशेष अधिक है। नरकगतिमें अनन्तगुणा है। आहारशरीरमें असंख्यातगुणा है। यशकीर्तिमें असंख्यातगुणा है। वैक्रियिकशरीरमें संख्यातगुणा है। औदारिकशरीर में विशेष अधिक है। तेजसशरीरमें विशेष अधिक है। कार्मणशरीरमें विशेष अधिक है । अयशकीतिमें संख्यातगुणा है। देवगतिमें विशेष अधिक है। तिर्यग्गतिमं विशेष अधिक है । मनुष्यगतिमें विशेष अधिक है। हास्यमें संख्यातगुणा है । रतिमें विशेष अधिक है । सातावेदनीयमें संख्यातगुणा है । नपुंसकवेदमें संख्यातगुणा है। शोकमें विशेष अधिक है। अरतिमें विशेष अधिक है। नपुंसकवेदमें विशेष अधिक है। जुगुप्सामें विशेष अधिक है। भयम विशेष अधिक है । पुरुषवेद में विशेष अधिक है । संज्वलन मायामें विशेष अधिक है । संज्वलन क्रोधमें विशेष अधिक है। संज्वलन मान में विशेष अधिक है। संज्वलनलोभमें विशेष अधिक है। दानान्तरायमें विशेष अधिक है। लाभान्त रायमें विशेष अधिक है। इस प्रकार विशेषाधिक क्रमसे वीर्यान्तराय तक ले जाना चाहिये। मन:पर्ययज्ञानावरणमें विशेष अधिक है । अवधिज्ञानावरणमें विशेष अधिक है। श्रुतज्ञानावरणमें विशेष अधिक है। मतिज्ञानावरण में विशेष अधिक है । अवधिदर्शनावरणमें विशेष अधिक है। अचक्षुदर्शनावरणमें विशेष अधिक है। चक्षुदर्शनावरण में विशेष अधिक है । सातावेदनीयमें संख्यातगुणा है। उच्चगोत्र में विशेष अधिक है। नीचगोत्रमें विशेष अधिक है । इस प्रकार तिर्यग्गतिदण्डक समाप्त हुआ। मनुष्यों में
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ताप्रती 'गवंसय ( इत्थि ) वेद-' इति पाठः !hal Use Only
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