Book Title: Shatkhandagama Pustak 16
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 245
________________ ५५० ) छक्खंडागमे संतकम्म.. ओहिणाण-ओहिदंसणावरणाणं अणंतगुणं । हस्स० अणंतगुणं । रदि० अणंतगुणं । दुगुंछा अणंतगुणं । भय० अणंतगुणं । सोग० अगंतगुणं । अरदि, अणंतगुणं । पुरिस० अणंतगुणं । इथि० अणंतगुणं । णवूस० अणंतगुणं । अण्णदरसंजलण० अणंतगुणं । वीरियंतराइय० अणंतगुणं । एवं णेदव्वं जाव दाणंतराइयं ति अणंतगुणकमेण । मणपज्जव० अणंतगुणं । सुदावरण० अणंतगुणं । मदिआ० अणंतगुणं । अण्णदरो अपच्चक्खाणकसाओ अणंतगुणो। अण्णदरो पच्चक्खाणाणं केवलणाणकेवलदसणावरणाणं अणंतगुणं । पयला० अणंतगुणं । णिद्दा० अणंतगुणं । पयलापयला० अणंतगुणं । णिहाणिद्दा० अणंतगुणं । थीणगिद्धि० अणंतगुणं । सम्मामिच्छत्त० अणंतगुणं । अण्णदरो अणंताणुबंधिकसाओ अणंतगुणो । मिच्छत्त० अणंतगुणं । ओरालिय० अणंतगणं। वेउव्विय० अणंतगणं । तिरिक्खाउ० अणंतगुणं । तेजा० अणंतगुणं । कम्मइय० अणंतगुणं । तिरिक्खगइ० अणंतगुणं । णीचागोद० अणंतगुणं । अजसकित्ति० अणंतगुणं । असाद० अगंतगुणं । जस कित्ति० अणंतगुणं । साद०अणंतगुणं । उच्चागोद० अणंतगुणं । एवं तिरिक्खगई० । मणुसेसु ओघभंगो। देवगईए सव्वमंदाणुभागं सम्मत्तं । चक्खु० अणंतगुणं । तिर्यग्गतिमे सम्यक्त्व प्रकृति सबसे मंद अनुभागवाली है । चक्षुदर्शनावरण अनन्तगुणा है। अचक्षुदर्शनावरण अनन्तगुणा है। अवधिज्ञानावरण और अवधिदर्शनावरण 3 हैं। हास्य अनन्तगणी है। रति अनन्तगणी है। जगप्सा अनन्तगणी है। भय अनन्तगणा है। शोक अनन्तगुणा है। अरति अनन्तगुणी है। पुरुषवेद अनन्तगुणा है। स्त्रीवेद अनन्तगुणा है। नपंसकवेद अनन्तगणा है। अन्यतर संज्वलन कषाय अनन्तगणी है वीर्यान्त राय अनन्तगणा है। इस प्रकार अनन्तगणित क्रमसे दानान्तराय तक ले जाना चाहिये । मन:पर्ययज्ञानावरण अनन्तगणा है। श्रतज्ञानावरण अनन्तगणा है। मतिज्ञानावरण अनन्तगणा है। अन्यतर अप्रत्याख्यानावरण कषाय अनन्तगणी है। अन्यतर प्रत्याख्यानावरण कषाय, केवलज्ञानावरण और केवलदर्शनावरण अनन्तगुणे हैं। प्रचला अनन्तगुणी है। निद्रा अनन्तगुणी है । प्रचलाप्रचला अनन्तगुणी है। निद्रानिद्रा अनन्तगुणी है। स्त्यानगृद्धि अनन्तगुणी है । सम्यग्मिथ्यात्व अनन्तगुणा है। अन्यतर अनन्तानुबन्धी कषाय अनन्तगुणी है। मिथ्यात्व अनन्तगुणा है । औदारिकशरीर अनन्तगुणा है। वैक्रियिकशरीर अनन्तगुणा है। तिर्यगायु अनन्तगुणी है । तैजसशरीर अनन्तगुणा है। कार्मणशरीर अनन्तगृणा है। तिर्यग्गति अनन्तगुणी है। नीचगोत्र अनन्तगुणा है । अयशकीति अनन्तगुणी है । असातावेदनीय अनन्त गुणा है । यशकीर्ति अनन्तगुणी है । सातावेदनीय अनन्तगुणी है । उच्चगोत्र अनन्तगुणा है। इस प्रकार तिर्यग्गतिदण्डक समाप्त हुआ । ___ मनुष्योंमें उक्त अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा ओघके समान है । देवगति में सबसे मन्द अनुभागवाली सम्यक्त्व प्रति है । चक्षुदर्शनावरण अनन्तगुणा है। श्रुतज्ञानावरण अनन्तगुणा है । ४ ताप्रती 'जाव अंतराइयं ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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