Book Title: Shatkhandagama Pustak 16
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 241
________________ ५४६ ) छक्खंडागमे संतकम्म अणंतगुणं । णीचागोद-अजसकित्तीणं अणंतगुणं । सम्मामिच्छत्त० अणंतगुणं । चदुण्णमंतराइयाणमोघभंगो । अचक्खु० अणंतगुणं । चक्खु० अणंतगुणं । वीरियंतराइय० अणंतगुणं । सम्मत्त० अणंतगुणं । देवगईए सव्वतिव्वाणुभागं सादं । उच्चागोद-जसकित्तीओ अणंतगुणाओ। मिच्छत्त० अणंतगुणं । केवलणाण-केवलदंसणावरणाणं अणंतगुणं । अण्णदरो अणंताणुबंधि० अणंतगुणं । सेसाणं कसायाणमोघभंगो । तदो मदिआवरण अणंतगुणं । सुदआवरण० अणंतगुणं। मणपज्जव० अणंतगुणं । णिद्दा० अणंतगुणं। पयला अणंतगुणं । देवगई अणंतगुणं । रदि० अणंतगुणं । हस्स० अणंतगुणं । कम्मइय० अणंतगुणं। तेजा० अणंतगुणं । वेउन्विय० अणंतगुणं । देवाउ० अणंतगुणं । असाद० अणंतगुणं । इथि० अणंतगुणं। पुरिस० अणंतगुणं । अरदि० अणंतगुणं । सोग० अणंतगुणं । भय० अणंतगुणं । दुगुंछा० अणंतगुणं । अजसकित्ति० अणंतगुणं । ओहिणाण-ओहिदंसणा: वरणाणं अणंतगुणं । सम्मामिच्छत्त० अणंतगुणं । चदुण्हमंतराइयाणमोघभंगो। अचक्खु. अणंतगुणं । वीरियंतराइय० अणंतगुणं । सम्मत्त० अणंतगुणं । भवणवासिएसु सव्वतिव्वाणुभागं मिच्छत्तं । केवलणाण-केवलदसणावरणाण अणंतगुणं । कसायाणमोघभंगो । मदिआवरण० अणंतगुणं । सुदआव० अणंतगुणं । भयका अनन्तगुणा है । जुगुप्साका अनन्तगुणा है। नीचगोत्र और अयशकीर्तिका अनन्तगुणा है। सम्यग्मिथ्यात्वका अनन्तगुणा है। चार अन्तराय प्रकृतियोंका अल्पबहुत्व ओघके समान है। अचक्षुदर्शनावरणका अनन्तगुणा है। चक्षुदर्शनावरणका अनन्त गुणा है। वीर्यान्तरायका अनन्तगुणा है। सम्यक्त्वका अनन्तगुणा है। देवगतिमें सबसे तीव्र अनुभागवाला सातावेदनीय है। उससे उच्चगोत्र और यश कीर्ति अनन्तगुणे हैं। मिथ्यात्व अनन्तगुणा है। केवल ज्ञानावरण और केवलदर्शनावरण अनन्तगुणे हैं। अन्यतर अनन्तानुबन्धी अनन्तगुणी है । शेष कषायोंका अल्पबहुत्व ओघके समान है । आगे मतिज्ञानावरण अनन्तगुणा है । श्रुतज्ञानावरण अनन्तगुणा है । मनःपर्ययज्ञानावरण अनन्तगुणा है । निद्रा अनन्तगुणी है । प्रचला अनन्त गुणी है । देवगति अनन्तगुणी है। रति अनन्तगुणी है। हास्य अनन्तगुणा है । कार्मणशरीर अनन्तगुणा है । तैजसशरीर अनन्तगुणा है । वैक्रियिकशरीर अनन्तगुणा है । देवायु अनन्तगुणी है । असातावेदनीय अनन्तगुणा है। स्त्रीवेद अनन्तगुणा है। पुरुषवेद अनन्तगुणा है। अरति अनन्तगुणा है। शोक अनन्तगुणा है । भय अनन्तगुणा है । जुगुप्सा अनन्तगुणी है। अयशकीर्ति अनन्तगुणी है। अवधिज्ञानावरण और अवधिदर्शनावरण अनन्तगुणे है। सम्यग्मिथ्यात्व अनन्तगुणा है। चार अन्तराय प्रकृतियोंका अल्पबहुत्व ओघके समान है । अचक्षुदर्शनावरण अनन्तगुणा है। वीर्यान्त राय अनन्तगुणा है । सम्यक्त्व अनन्तगुणा है। ___ भवनवासी देवोंमें मिथ्यात्व सबसे तीव्र अनुभागवाला है। केवलज्ञानावरण और केवलदर्शनावरण ,अनन्तगुणे हैं। कषायोंका अल्पबहुत्व ओघके समान है। मतिज्ञानावरण अनन्त ४ प्रतिषु — अणंतगुणहीणाओ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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