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सादासादाणुयोगद्दारे अप्पाबहुअं
( ५०५ - एदेण अटुपदेण मणुसगईए ताव अप्पाबहुअं । तं जहा- सादत्ताए बद्धं असंछुद्धं अपडिसंछुद्धं असादत्ताए जं वेदिज्जदि तं थोवं । जमसादत्ताए बद्धं असंछुद्ध अपडिसंछद्धं असादत्ताए वेदिज्जदि तं संखेज्जगणं । जं सादत्ताए बद्धं असंछद्धं अपडि. संछुद्धं सादत्ताए वेदिज्जदि तं संखेज्जगुणं । असादत्ताए जं बद्धं असंछुद्धं अपडिसंछुद्धं सादत्ताए वेदिज्जदि तं संखेज्जगुणं । सादत्ताए जं बद्धं संछुद्धं पडिसंछुद्धं असादत्ताए वेदिज्जदि तमसंखेज्जगुणं । जमसादत्ताए बद्धं संछुद्धं पडिसंछुद्धं असादत्ताए वेदिज्जदि तं संखेज्जगुणं । सादत्ताए बद्धं संछुद्धं पडि छुद्धं सादत्ताए वेदिज्जदि तं संखेज्जगुणं । जमसादत्ताए बद्धं संछुद्धं पडिसंछुद्धं सादत्ताए वेदिज्जदि तं संखेज्जगुणं ।।
जहा मणुस्सेसु तहा मणुसिणीसु पंचिदियतिरिक्खेिसु तिरिक्खिणीसु देवेसु देवीसु च कायव्वं । एइंदिएसु विपच्चिदेण- जं सादत्ताए बद्धं असंछुद्धं अपडिसंछुद्धं सादत्ताए वेदिज्जदि तं थोवं । जं0 सादत्ताए बद्धं असंछुद्धं अपडिसंछुद्धं असादत्ताए वेदिज्जदि तं संखेज्जगुणं । असादत्ताए बद्धं असंछुद्धं अपडिसंछुद्धं जं सादत्ताए वेदिज्जदि (तं) तत्तियं चेव । जमसादत्ताए बद्धं असंछुद्धं अपडिसंछुद्धं असादत्ताए
इस अर्थपदके अनुसार मनुष्यगतिमें अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा की जाती है । यथा- ( १ ) जो सातस्वरूपसे बांधा जाकर असंक्षिप्त व अप्रतिसंक्षिप्त होता हुआ असातस्वरूपसे वेदा जाता है वह स्तोक है । ( २ । जो असातस्वरूपसे बांधा जाकर असंक्षिप्त व अप्रतिसंक्षिप्त होकर असातस्वरूपसे वेदा जाता है वह संख्यातगुणा है । ( ३ ) जो सातस्वरूपसे बांधा जाकर असंक्षिप्त व अप्रतिसंक्षिप्त होकर सातस्वरूपसे वेदा जाता है वह संख्यातगुणा है । ( ४ ) जो असातस्वरूपसे बांधा जाकर असंक्षिप्त व अप्रतिसंक्षिप्त होता हुआ असातस्वरूपसे वेदा जाता है वह संख्यातगुणा है । ( ५ ) जो सातस्वरूपसे बांधा जाकर संक्षिप्त व प्रतिसंक्षिप्त होता हुआ असातस्वरूपसे वेदा जाता है वह असंख्यातगुणा है। ( ६ ) जो असातस्वरूपसे बांधा जाकर संक्षिप्त व प्रतिसंक्षिप्त होता हुआ असातस्वरूपसे वेदा जाता है वह संख्यातगुणा है। (७ ) जो सातस्वरूपसे बांधा जाकर संक्षिप्त व प्रतिसंक्षिप्त होता हुआ सातस्वरूपसे वेदा जाता है वह संख्यातगुणा है। (८) जो असातस्वरूपसे बांधा जाकर संक्षिप्त व प्रतिसंक्षिप्त होता हुआ सातस्वरूपसे वेदा जाता है वह संख्यातगुणा है।
जिस प्रकार मनुष्योंमें अल्पबहुत्व किया गया है उसी प्रकार मनुष्यनियों, पंचेन्द्रिय तिर्यंचों, तिर्यंचनियों, देवों और देवियोंमें भी करना चाहिये । एकेन्द्रियोंमें विपच्चितस्वरूपसे उक्त अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा की जाती है- (१) जो सातस्वरूपसे बांधा जाकर असंक्षिप्त व अप्रतिसंक्षिप्त होता हुआ सातस्वरूपसे वेदा जाता है वह स्तोक है । ( २ ) जो सातस्वरूपसे बांधा जाकर असंक्षिप्त व अप्रति संक्षिप्त होता हुआ असातस्वरूपसे वेदा जाता है वह संख्यातगुणा है । ( ३ ) जो असातस्वरूपसे बांधा जाकर असंक्षिप्त व अप्रतिसंक्षिप्त होता हुआ सातस्वरूपसे वेदा जाता है वह उतना ही है। (४) जो असातस्वरूपसे बांधा जाकर असंक्षिप्त व अप्रतिसंक्षिप्त
ताप्रती 'ज' इत्येतत्पदं नास्ति ।
प्रतिषु 'विचिदेण' इति पाठः । 0 अप्रतौ 'जा' इति पाठः For Private & Personal Use Only
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