________________
५०४ )
छक्खंडागमे संतकम्म
सादताए बद्धं असंछद्धं अपडिसंछुद्धं सादत्ताए वेदिज्जदि तं सव्वत्थोवं । जमसादत्ताए बद्धं असंछुद्धं अपडिसंछुद्धं सादत्ताए वेदिज्जदि तं संखे० गुणं० । जं सादत्ताए बद्धं असंछुद्धं अपडिसंछुद्धं असादत्ताए वेदिज्जदि तमसंखेज्जगुणं। जमसादत्ताए बद्धं असंछुद्धमपडिसंछुद्धमसादत्ताए वेदिज्जदि तं संखे० गुणं० । जं सादत्ताए बद्धं संछुद्धं पडिसंछुद्धं सादत्ताए वेदिज्जदि तं संखे० गुणं० । जं असादत्ताए बद्धं संछुद्धं पडिसंछुद्धं सादत्ताए* वेदिज्जदि तमसंखे० गुणं । जमसादत्ताए बद्धं संछुद्धं पडिसंछुद्धमसादत्ताए वेदिज्जदि तं संखेज्जगुणं । जं. सादत्ताए बद्धं संछुद्धं पडिसंछु द्धं असादत्ताए वेदिज्जदि तमसंखे० गुणं । एवं णिरयगईए परूवणा गदा ।
एत्तो मणुसगदीए विपच्चिदेण) अप्पाबहु असाहणत्थं एसा परूवणा कीरदे । तं जहा- मणुसगईए असादवेदयद्धा* थोवा । सादबंधगद्धा संखेज्जगुणा । असादबंधगद्धा संखेज्जगुणा। सादवेदगद्धा* संखेज्जगुणा । जहा मणुसगईए तहा णिरयगईए वज्जाणं सव्वेसि तसाणं । एईदिएसु सादबंधगद्धा सादवेदगद्धा च दो वि तुल्लाओ थोवाओ। असादवेदगद्धा असादबंधगद्धा च दो वि तुल्लाओ असंखेज्जगुणाओ।
सातस्वरूपसे वेदा जाता है वह सबसे स्तोक है । ( २ जो असातस्वरूपसे बांधा जाकर असंक्षिप्त व अप्रतिसंक्षिप्त होता हुआ सातस्वरूपसे वेदा जाता है वह संख्यातगुणा है । ( ३ ) जो सातस्वरूपसे बांधा जाकर असंक्षिप्त व अप्रतिसंक्षिप्त होता हुआ असातस्वरूपसे वेदा जाता है वह असंख्यातगुणा है । (४) जो असातस्वरूपसे बांधा जाकर असंक्षिप्त व अप्रतिसंक्षिप्त होता हुआ असातस्वरूपसे वेदा जाता है वह संख्यातगुणा है । ( ५ ) जो सातस्वरूपसे बांधा जाकर संक्षिप्त व प्रतिसंक्षिप्त होता हुआ सातस्वरूपसे वेदा जाता है वह संख्यातगुणा है। (६) जो असातस्वरूपसे बांधा जाकर संक्षिप्त व प्रतिसंक्षिप्त होता हुआ सातस्वरूपसे वेदा जाता है वह असंख्यातगुणा है। (७ ) जो असातस्वरूपसे बांधा जाकर संक्षिप्त व प्रतिसंक्षिप्त होता हुआ असातस्वरूपसे वेदा जाता है वह संख्यातगुणा है। (८) जो सातस्वरूपसे बांधा जाकर संक्षिप्त व प्रतिसंक्षिप्त होता हुआ असातस्वरूपसे वेदा जाता है वह असंख्यातगुणा है । इस प्रकार नरकगतिमें प्रकृत प्ररूपणा समाप्त हुई।
___यहां मनुष्यगति में विपच्चित स्वरूपसे अल्पबहुत्वको सिद्ध करने के लिये यह प्ररूपणा की जाती है। यथा- मनुष्यगतिमें असातवेदककाल स्तोक है । सातबंधककाल संख्यातगुणा है । असातबन्धककाल संख्यातगुणा है । सातवेदककाल संख्यातगुणा है । जिस प्रकार मनुष्यगतिमें यह क्रम है उसी प्रकार नरकगति को छोड़कर शेष सब त्रसोंके भी यही क्रम समझना चाहिये । एकेन्द्रियोंमें सातबन्धककाल और सातवेदककाल दोनों ही तुस्य व स्तोक है। असातवेदककाल और असातबन्धककाल दोनों ही तुल्य व उनसे असंख्यातगुणे हैं।
४ अ-काप्रत्यो: 'सादत्तार', ताप्रती '(अ) सादत्ताए ' इति पारः। *ताप्रती (अ) सादत्ताए', मप्रतो 'सादत्ताए' इति पाठः । . अ-काप्रत्योर्नोग्लभ्यते वाक्यमेतत्। अप्रतौ 'अंचिदेण', का-ताप्रत्योः 'विचिदेण' इति पाठः । * ताप्रतौ 'अप्पाबहुअं साहणत्थमेसा' इति पाठः । * अप्रतो' असादबंधगद्धा' इति पाठः। अप्रतौ 'सादबंधगद्धा' इति पाठः। ताप्रती 'णिरयगह वज्जाणं' इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org