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२४ अप्पाबहुअणुयोगद्दारं ... णमिऊण वड्ढमाणं अणंतणाणाणुवट्टमाण मिसि ।
वोच्छामि अप्पबहुअं अणुयोगं बुद्धिसारेण ॥ १॥ अप्पाबहुगअणुयोगद्दारे णागहत्थिभडारओ संतकम्ममग्गणं करेदि । एसो च उवदेसो पवाइज्जदि । संतकम्मं चउव्विहं पयडिसंतकम्मं ठिदिसंतकम्म अणुभागसंतकम्म पदेससंतकम्मं चेदि । तत्थ पयडिसंतकम्मं दुविहं मूलपयडिसंतकम्मं उत्तरपयडिसंतकम्मं चेदि । तत्थ मूलपयडीहि सामित्तं णेदूण उत्तरपयडीहि सामित्तं कायव्वं । तं जहापंचणाणावरणीय-चउदंसणावरणीय-पंचंतराइयाणं संतकम्मस्स को सामी? सव्वो छदुमत्थो। एवं णिद्दा-पयलाणं । णवरि चरिमसमयछदुमत्थस्स पत्थि संतकम्मं । S थीणगिद्धितियसंतकम्मस्स को सामी ? सव्वो छदुमत्यो । णवरि खवगस्स अणियट्टिकरणमंतोमुहुत्तं पविट्ठस्स संतकम्मं वोच्छिण्णं ति कटु उवरिमेसु छदुमत्थेसु णत्थि संतकम्म*। __सादासादाणं संतकम्मं कस्स ? संसारिणो सव्वस्स । णवरि जस्स उदओ णस्थि
अनन्तज्ञानसे अनुवर्तमान वर्धमान ऋषिको नमस्कार करके बुद्धि के अनुसार अल्पबहुत्व अनुयोगद्वारकी प्ररूपणा करता हूं ॥ १ ॥
नागहस्ती भट्टारक अल्पबहुत्व अनुयोगद्वारमें सत्कर्मकी मार्गणा करते हैं। और यह उपदेश प्रवाहस्वरूपसे आया हुआ परंपरागत है। सत्कम चार प्रकारका है- प्रकृतिसत्कर्म स्थितिसत्कर्म, अनुभागसत्कर्म और प्रदेशसत्कर्म । इनमें प्रकृतिसत्कर्म दो प्रकारका है- मूलप्रकृतिसत्कर्म और उत्तरप्रकृतिसत्कर्म। इनमें मूल प्रकृतियोंके सब स्वामित्वको ले जाकर फिर उत्तर प्रकृतियोंके साथ स्वामित्वकी प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है- पांच ज्ञानावरणीय, चार दर्शनावरणीय और पांच अन्तराय प्रकृतियोंके सत्कर्मका स्वामी कौन है ? इनके सत्कर्मके स्वामी सब छद्मस्थ जीव हैं। इसी प्रकार निद्रा और प्रचलाके सत्कर्मके सम्बन्ध में जानना चाहिये। विशेष इतना है कि अन्तिम समयवर्ती छद्मस्थके उनका सत्कर्म नहीं रहता । स्त्यानगृद्धि आदि तीन दर्शनावरण प्रकृतियोंके सत्कर्मका स्वामी कौन है ? उसके स्वामी सब छद्मस्थ हैं । विशेष इतना है कि अनिवृत्तिकरणमें प्रविष्ट हुए क्षपकके अन्तर्मुहर्त जाकर इनके सत्कर्मकी व्युच्छित्ति हो जाती है, अतएव इसके आगे छद्मस्थोंके उनका सत्कर्म नहीं रहता।
___साता और असाता वेदनीयका सत्कर्म किसके होता है ? उनका सत्कर्म सब संसारी जीवोंके रहता है। विशेष इतना है कि उक्त दो प्रकृतियोंमेंसे जिसका उदय नहीं है उसका
४ ताप्रती 'णाणेण वट्टमाण' इति पठः।
छउमत्थंता चउदस दुचरमसमयंमि अत्थि दो णिद्दा । क. प्र ७, ३. ताप्रती स्त्यानगृद्धित्रयसम्बद्धोऽयं सन्दर्भस्त्रुटितोऽस्ति । * खवगानिय
ट्रिअद्धा सखिज्जा होंत अट्ट वि कसाया। णिरय-तिरियतेरसगं णिहा-गि हातिगेणवरि ।। क. प्र. ७, ६. Jain Education International For Private & Personal Use Only
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