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अप्पा बहुआणुयोगद्दारे उत्तरपयडिसंतकम्मं
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तस्स चरिमसमयभवसिद्धयम्मि णत्थि संतं । मोहणीयसंतकम्मस्स सामित्तं जहा कसा पाहुडे कदंतहा कायव्वं ।
रिया असंतकम्मं कस्स ? णेरइयस्स वा मणुस - तिरिक्खस्स वा । मणुसतिरिक्खाउआणं संतकम्मं कस्स * ? अण्णदरस्स देवस्स णेरइयस्स तिरिक्खस्स मणुस्सस्स वा देवाउअसंतकम्मं कस्स ? देवस्स मणुसस्स तिरिवखस्स वा । णिरयगइ - तिरिक्खगइ - तप्पा ओग्गाणं च जादि- आणुपुव्विणामाणं आदावुज्जोवथावरसुहुम-साहारणसरीरणामाणं च संतकम्मस्स सामिओ को होदि ? अण्णदरो जाव निरय-तिरिक्खणामाणं चरिमसमयसंछोहओ त्ति । देवगइ - पाओग्गाणुपुव्वि- वेउब्वियसरीर आहारसरीर तप्पा ओग्ग अंगोवंग-बंधण-संघादाणं च संतकम्मं कस्स ? अण्णदरस्स अणुव्वेल्लिद संतकम्मियस्स जाव दुचरिमसमयभवसिद्धियो त्ति । मणुसगइ - मणुसगइपाओग्गाणुपुव्वि-तप्पा ओग्गजादिणामाणं संतकम्मं कस्स ? अण्णदरस्स अणुव्वेल्लिदसंतकम्मियस्स जाव चरिमसमयभवसिद्धयोति । णवरि मणुसगइपाओग्गाणुपुव्विणामाए जादुचरिमसमयभवसिद्धियो ति । ओरालिय- तेजा - कम्मइयसरीराणं तप्पा ओग्ग
सत्कर्म अन्तिम समयवर्ती भव्यसिद्धिकके नहीं रहता। मोहनीयके सत्कर्मके स्वामित्वका कथन जैसे कषायप्राभृत में किया गया है वैसे ही यहां भी करना चाहिये ।
नारकात्रुका सत्कर्म किससे होता है ? उसका सत्कर्म नारकी, मनुष्य और तिर्यंचके होता है | मनुष्यायु और तिर्यगायुका सत्कर्म किसके होता है ? उनका सत्कर्म अन्यतर देव, नारकी, तिर्यंच और मनुष्यके होता | देवायुका सत्कर्म किसके होता है ? उसका सत्कर्म देव, मनुष्य और तिर्यंचके होता है ।
नरकगति, तिर्यंचगति और तत्प्रायोग्य जाति एवं आनुपूर्वी नामकर्मोका तथा आतप उद्योत, स्थावर, सूक्ष्म और साधारणशरीर नामकर्मो के सत्कर्मका स्वामी कौन होता है ? उरु का स्वामी नरकगति और तिर्यंचगति नामकर्मोके अन्तिम समयवर्ती संक्रामक तक अन्यतर जीव होता है । देवगति, देवगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, वंक्रियिकशरीर व आहारकशरीर तथा उनके योग्य अंगोपांग, बन्धन और संघात नामकर्मोंका सत्कर्म किसके होता है ? उनका सत्कर्म सत्कर्मकी उद्वेलना न करनेवाले द्विचरम समयवर्ती भव्यसिद्धिक तक अन्यतर जीवके रहता है । मनुष्यगति मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी और तत्प्रायोग्य जाति नामकर्मका सत्कर्म किसके होता है ? उनका सत्कर्म सत्कर्मकी उद्वेलना न करनेवाले अन्तिम समयवर्ती भव्यसिद्धिक तक अन्यतर जीवके रहता है । विशेष इतना है कि मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी नामकर्मका सत्कर्म द्विचरम समयवर्ती भव्यसिद्धिक तक रहता है । औदारिक, तैजस और कार्मण शरीर तथा तत्त्रायोग्य
* मणुयगइ जाइ-स-बायरं च पज्जत्त सुभम आएज्जं । जसकित्ती तित्थयरं वेयणि उच्चं च मणुयाणं ॥ भवचरिमस्तमयम्मि उ तम्मग्गिल्लसमयम्नि सेसाउ । आहारग - तित्थयरा भज्जा दुसु णत्थि तित्ययरं ।। क. प्र. ७, ८-९. ताप्रती ( णिरयगइ ) तिरिक्ख ( गइ ) - मणूस्साउआणं ' इति पाठः । * अ-काप्रयोः 'संतकम्मस्स' इति पाठः । बद्धाणि ताव आऊणि वेइयाइं ति जा कसिणं ।। क. प्र ७, ३. -अ-काप्रत्योः 'सिद्धया'' ' इति पाठः ।
प्रतिषु ' सामित्तओ' इति पाठः ।
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