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छक्खंडागमे संतकम्भ
ट्ठिदि-अणुभागे तहेव हणदि । ठिदिसंतकम्ममंतोमहत्तं ठवेदि संखेज्जगुणमाउआदो। एदेसु चदुसु समएसु अप्पसत्थकम्माणमणुभागस्स अणुसमयमोवट्टणा, एयसमइयो च ट्ठिदिखंडयस्स घादो । एत्तो सेसाए दिदीए संखेज्जभागे हणदि । सेसस्स अणुभागस्स अप्पसत्थस्स अणंते भागे हणदि । एत्तो पाए द्विदिखंडयस्स अणुभागखंडयस्स च अंतोमुहुत्तमुक्कोरणद्धा । एत्तो अंतोमुहुत्तं गंतूण वचिजोगं णिरुंभदि। तदो अंतोमुहुत्तं गंतूण मणजोगं णिरुंभदि अंतोमुहुत्तं गंतूण कायजोगं णिरुंभदि*। अंतोमुहुत्तं कायजोग णिरुंभमाणो इमाणि करणाणि करेदि- पढमसमए अपुव्वफद्दयाइं करेदि पुवफद्दयाणं हेट्ठदो। आदिवग्गणाविभागपडिच्छेदाणं असंखे० भागमोवट्टेदि । जीवपदेसाणमसंखे० भागमोवट्टेदि । एवमतोमुत्तमपुवफद्दयाणि करेदि । असंखेज्जगुणहीणाए सेडीए जीवपदेसाणं च असंखे० गुणाए सेडीए । अपुवल्फद्दयाणि पमाणदो सेडीए असंखेज्जदिभागो सेडिवग्गमूलस्स वि असंखेज्जदिभागो* । एवमपुव्वफद्दयाणि समत्ताणि।
पूरणसमुद्धात करते समय भी स्थिति और अनुभागको उसी प्रकारसे घातता है । स्थितिसत्कर्मको अन्तर्मुहूर्त मात्र स्थापित करता है जो आयुसे संख्यातगुणा होता है। इन चार समयोंमें अप्रशस्त कर्मोंके अनुभागकी प्रतिसमय अपवर्तना और एक समयवाले स्थितिकाण्डकका घात होता है । यहां उतरते समय शेष स्थितिके संख्यात बहुभागका घात करता है। शेष अप्रशस्त अनुभागके अनन्त बहुभागका घात करता है । यहां स्थितिकाण्डक और अनुभागकाण्डकका अन्तर्मुहुर्तवाला उत्कीरणकाल प्रवृत्त होता है। अन्तर्मुहुर्त जाकर वचनयोगका निरोध करता है। तत्पश्चात् अन्तर्मुहूर्त जाकर अन्तर्मुहूर्त में मनयोगका निरोध करता है । यहांसे अन्तर्मुहूर्त जाकर अन्तर्मुहुर्त उच्छ्वास-निःश्वासका निरोध करता है । तत्पश्चात् अन्तर्मुहूर्त जाकर काययोगका निरोध करता है । अन्तर्मुहुर्तमें काययोगका निरोध करता हुआ इन करणोंको करता है-- प्रथम समयमें पूर्वस्पर्वकोंके नीचे अपूर्वस्पर्धकोंको करता है। आदिम वर्गणाके अविभागप्रतिच्छेदोंके असंख्यातवें भागका अपवर्तन करता है । जीवप्रदेशोंके असंख्यातवें भागका अपवर्तन करता है। इस प्रकार अन्तर्महर्त काल अपूर्वस्पर्धकोंको करता है। इन अपूर्व पर्धकोंको असंख्यातगणहीन श्रेणिके क्रमसे तथा जीवप्रदेशोंके असंख्यातगणी श्रेणिके क्रमसे करता है । अपूर्वस्पर्धकोंको प्रमाण श्रेणिके असंख्यातवें भाग और श्रेणिवर्गमूलके भी असंख्यातवें भाग मात्र है। इस प्रकार अपूर्वस्पर्धकोंका कथन समाप्त हुआ।
"क. पा. सु. पृ. ९०२, १३-१९ ष खंडागम पु. ६, पृ. ४१४; पु. १० पृ. ३२१. एत्तो अंतोमुहुतं गंतूण बादरकायजोगेण बादरमणजोगेण णिरंभ इ। तदो अंतोमुहुत्तेण बादरकायजोगेण बादरवचिजोगं णिरुंभइ । तदो अंतोमहत्तेण बादरकायजोगेण बादर उस्सासणिस्सासं णिरुंभइ । तदो अतोमुहत्तेण बादरकायजोगेण तमेव
दरकायजोगं णिरुंभइ । तदो अंतोमहत्तं गंतूण सुहमकायजोगेण सहममणजीगं गिरंभइ । तदो अंतोमहुत्तेग सुहमकायजोगेण सुहमवचिजोगं णिरुंभइ । तदो अंतोमहुत्तेण सुहुमकायजोगेण सुहमउस्सासं णिरुंभइ । क. पा. सु. पू. ९०४, २०-२६.0 ताप्रतो 'करेदि, अपुवफड्डयाणं हेद्रदो आदि-' इति पाठः। * क. पा.
सु. पृ. ९०४, २७-३४. Jain Education International For Private & Personal Use Only
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