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________________ ५२० ) छक्खंडागमे संतकम्भ ट्ठिदि-अणुभागे तहेव हणदि । ठिदिसंतकम्ममंतोमहत्तं ठवेदि संखेज्जगुणमाउआदो। एदेसु चदुसु समएसु अप्पसत्थकम्माणमणुभागस्स अणुसमयमोवट्टणा, एयसमइयो च ट्ठिदिखंडयस्स घादो । एत्तो सेसाए दिदीए संखेज्जभागे हणदि । सेसस्स अणुभागस्स अप्पसत्थस्स अणंते भागे हणदि । एत्तो पाए द्विदिखंडयस्स अणुभागखंडयस्स च अंतोमुहुत्तमुक्कोरणद्धा । एत्तो अंतोमुहुत्तं गंतूण वचिजोगं णिरुंभदि। तदो अंतोमुहुत्तं गंतूण मणजोगं णिरुंभदि अंतोमुहुत्तं गंतूण कायजोगं णिरुंभदि*। अंतोमुहुत्तं कायजोग णिरुंभमाणो इमाणि करणाणि करेदि- पढमसमए अपुव्वफद्दयाइं करेदि पुवफद्दयाणं हेट्ठदो। आदिवग्गणाविभागपडिच्छेदाणं असंखे० भागमोवट्टेदि । जीवपदेसाणमसंखे० भागमोवट्टेदि । एवमतोमुत्तमपुवफद्दयाणि करेदि । असंखेज्जगुणहीणाए सेडीए जीवपदेसाणं च असंखे० गुणाए सेडीए । अपुवल्फद्दयाणि पमाणदो सेडीए असंखेज्जदिभागो सेडिवग्गमूलस्स वि असंखेज्जदिभागो* । एवमपुव्वफद्दयाणि समत्ताणि। पूरणसमुद्धात करते समय भी स्थिति और अनुभागको उसी प्रकारसे घातता है । स्थितिसत्कर्मको अन्तर्मुहूर्त मात्र स्थापित करता है जो आयुसे संख्यातगुणा होता है। इन चार समयोंमें अप्रशस्त कर्मोंके अनुभागकी प्रतिसमय अपवर्तना और एक समयवाले स्थितिकाण्डकका घात होता है । यहां उतरते समय शेष स्थितिके संख्यात बहुभागका घात करता है। शेष अप्रशस्त अनुभागके अनन्त बहुभागका घात करता है । यहां स्थितिकाण्डक और अनुभागकाण्डकका अन्तर्मुहुर्तवाला उत्कीरणकाल प्रवृत्त होता है। अन्तर्मुहुर्त जाकर वचनयोगका निरोध करता है। तत्पश्चात् अन्तर्मुहूर्त जाकर अन्तर्मुहूर्त में मनयोगका निरोध करता है । यहांसे अन्तर्मुहूर्त जाकर अन्तर्मुहुर्त उच्छ्वास-निःश्वासका निरोध करता है । तत्पश्चात् अन्तर्मुहूर्त जाकर काययोगका निरोध करता है । अन्तर्मुहुर्तमें काययोगका निरोध करता हुआ इन करणोंको करता है-- प्रथम समयमें पूर्वस्पर्वकोंके नीचे अपूर्वस्पर्धकोंको करता है। आदिम वर्गणाके अविभागप्रतिच्छेदोंके असंख्यातवें भागका अपवर्तन करता है । जीवप्रदेशोंके असंख्यातवें भागका अपवर्तन करता है। इस प्रकार अन्तर्महर्त काल अपूर्वस्पर्धकोंको करता है। इन अपूर्व पर्धकोंको असंख्यातगणहीन श्रेणिके क्रमसे तथा जीवप्रदेशोंके असंख्यातगणी श्रेणिके क्रमसे करता है । अपूर्वस्पर्धकोंको प्रमाण श्रेणिके असंख्यातवें भाग और श्रेणिवर्गमूलके भी असंख्यातवें भाग मात्र है। इस प्रकार अपूर्वस्पर्धकोंका कथन समाप्त हुआ। "क. पा. सु. पृ. ९०२, १३-१९ ष खंडागम पु. ६, पृ. ४१४; पु. १० पृ. ३२१. एत्तो अंतोमुहुतं गंतूण बादरकायजोगेण बादरमणजोगेण णिरंभ इ। तदो अंतोमुहुत्तेण बादरकायजोगेण बादरवचिजोगं णिरुंभइ । तदो अंतोमहत्तेण बादरकायजोगेण बादर उस्सासणिस्सासं णिरुंभइ । तदो अतोमुहत्तेण बादरकायजोगेण तमेव दरकायजोगं णिरुंभइ । तदो अंतोमहत्तं गंतूण सुहमकायजोगेण सहममणजीगं गिरंभइ । तदो अंतोमहुत्तेग सुहमकायजोगेण सुहमवचिजोगं णिरुंभइ । तदो अंतोमहुत्तेण सुहुमकायजोगेण सुहमउस्सासं णिरुंभइ । क. पा. सु. पू. ९०४, २०-२६.0 ताप्रतो 'करेदि, अपुवफड्डयाणं हेद्रदो आदि-' इति पाठः। * क. पा. सु. पृ. ९०४, २७-३४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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