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लेस्सापरिणामाणुयोगद्दारे किण्णादीनं परिणमणविहाणं
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अतगुणहीणहाणीए परिणमइ । एवं तेउलेस्सस्स संकिलिस्संतस्स दो वियप्पा | तेउलेस्सिओ विसुज्झमाणो सत्थाणे छट्टाणपदिदाए वड्ढीए वड्ढदि, पम्मलेस्साए अनंतगुणवढी परिणम । एवं तेउलेस्सस्स परिणमणविहाणं समत्तं ।
संपहि पम्मलेस्साए वुच्चदे । तं जहा- पम्मलेस्सियो विसुज्झमाणो सत्थाणे छट्ठाणपदिदाए वड्ढी वढदि, सुक्कलेस्साए अनंतगुणवड्ढीए परिणमदि । संकि लिस्समाणओ पम्मले स्सिओ सट्टाने छट्टाणपदिदाए हाणीए हायदि, तेउलेस्साए अनंतगुणहाणीए हायदि । एवं पम्मलेस्सस्स परिणमणविहाणं समत्तं ।
सुक्कलेस्साए उच्चदे । तं जहा - सुक्कलेस्सियो संकिलिस्समाणो सत्थाणे छट्ठाणपदिदार हाणीए हायदि, पम्मलेस्साए अनंतगुणहीणहाणीए परिणमइ । एवं संकिलिस्तस्स दो वियप्पा | सुक्कलेस्सियो विसुज्झमाणो सट्टाणे छट्टाणपदिदाए वड्ढीए वड्ढदि, अण्णलेस्ससंकमो णत्थि । सुक्कलेस्सस्स विसुज्झमाणस्स एक्को चेव वियप्पो । एवं सुक्कलेस्साए परिणमण विहाणं समत्तं ।
संकम-पडिग्गहाणं जहण्णुक्कस्सयाणं तिव्व-मंददाए एत्थ अप्पाबहुअं कायव्वं ।
हीनताको प्राप्त होता है, वही अनन्तगुणहीन हानिके द्वारा कापोतलेश्यासे परिणत होता है । इस प्रकार संक्लेशको प्राप्त होनेवाले तेजलेश्या युक्त जीवके दो विकल्प है । तेजलेश्यायुक्त
विशुद्ध प्राप्त होता हुआ षट्स्थानपतित वृद्धि के द्वारा स्वस्थानमें वृद्धिको प्राप्त होता है, अनन्तगुणवृद्धि द्वारा पद्मलेश्यासे परिणत होता है । ( इस प्रकार विशुद्धिको प्राप्त होनेवाले तेजलेश्यायुक्त जीवके दो विकल्प है । ) इस प्रकार तेजलेश्यायुक्त जीवके परिणमनका विधान समाप्त हुआ ।
अब पद्मलेश्याके परिणमनविधानका कथन करते हैं । यथा पद्मलेश्यायुक्त जीव विशुद्धिको प्राप्त होता हुआ षट्स्थानपतित वृद्धिके द्वारा स्वस्थानमें वृद्धिको प्राप्त होता है, वही अनन्तगुणवृद्धिके द्वारा शुक्ललेश्यासे परिणत होता है । संक्लेशको प्राप्त होनेवाला पद्मलेश्या संयुक्त जीव षट्स्थानपतित हानिके द्वारा स्वस्थान में हीनताको प्राप्त होता है, वही अनन्तगुणी हानिके द्वारा तेजलेश्यामें जाकर हीनताको प्राप्त होता है । इस प्रकार पद्मलेश्यावाले के परिमनका विधान समाप्त हुआ ।
शुक्ललेश्या के परिणमनविधानका कथन करते हैं । यथा - शुक्ललेश्यावाला संक्लेशको प्राप्त होता हुआ षट्स्थानपतित हानिके द्वारा स्वस्थानमें हानिको प्राप्त होता है, वही अनन्त - गुणहीन हानिके द्वारा पद्मलेश्यासे परिणत होता है इस प्रकार संक्लेशको प्राप्त होते हुए शुक्ललेश्यायुक्त जीवके दो विकल्प | शुक्ललेश्यायुक्त जीव विशुद्धिको प्राप्त होता हुआ षट्स्थानपतित वृद्धिके द्वारा स्वस्थानमें वृद्धिको प्राप्त होता है, उसका अन्य लेश्यामें संक्रम नहीं होता । विशुद्धिको प्राप्त होते हुए शुक्ललेश्यावालेका एक ही विकल्प है । इस प्रकार शुक्ललेश्याका परिणमनविधान समाप्त हुआ ।
यहां तीव्र-मंदताकी अपेक्षा जघन्य व उत्कृष्ट संकम और प्रतिग्रहके अल्पबहुत्वका कथन करते
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