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छक्खंडागमे संतकम्म
एतो ओघजहण्णपदेससंकमदंडओ कायव्वो । तं जहा- सव्वत्थोवो सम्मत्ते जहण्णओ पदेससंकमो । सम्मामिच्छत्ते असंखे० गुणो । मिच्छत्ते असंखे० गुणो । अणंताणुबंधिमाणे असंखे० गुणो। कोधे विसे । मायाए विसे० । लोभे विसे० । पयलापयला० असंखे० गुणो। णिद्दाणिद्दाए विसे० । थोणगिद्धीए विसे० । अपच्चक्खाणमाणे असंखे० गुणो । कोधे विसे । मायाए विसे० । लोभे विसे० । पच्चक्खाणमाणे विसे०। कोधे विसे । मायाए विसे०। लोभे विसे । केवलणाणावरणे विसे।
कुदो विसेसाहियत्तं? विज्झादभागहारादो चरिमसमयसुहमसांपराइयअधापवत्तभागहारस्स विसेसहीणत्तादो । ण च अधापवत्तभागहारो अवढिदो, एदम्हादो चेव तदणवट्ठिदत्तावगमादो । ण च पुग्विल्लभागहारप्पाबहुएण सह विरोहो, सव्वजहण्णभागहारे पडुच्च तदुप्पत्तीदो। _पयलाए विसे० पयडिविसेसेण । णिद्दाए विसे० । केवलदंस० विसे० । णिरयगइणामाए अणंतगुणो । देवगइणामाए असंखे० गुणो । वेउब्वियसरीर० संखे० गुणो। आहारसरीर० असंखे० गुणो। मणुसगइ० संखे० गुणो। उच्चागोदे संखे० गुणो। तिरिक्खगइ असंखे० गुणो । कुदो? उज्वेल्लणभागहारादो तेवद्विसागरोवमसदण्णोण्ण
अब यहां ओघ जघन्य प्रदेशसंक्रमदण्डक करते हैं । वह इस प्रकार है- जघन्य प्रदेशसंक्रम सम्यक्त्व प्रकृतिमें सबसे स्तोक है । सम्यग्मिथ्यात्वभे असंख्यात गुणा है। मिथ्यात्वमें असंख्यातगुणा है । अनन्तानुबन्धी मानमें असंख्यातगुणा है। क्रोधमें विशेष अधिक है । मायामें विशेष अधिक है । लोभमें विशेष अधिक है । प्रचलाप्रचलामें असंख्यातगुणा है । निद्रानिद्रामें विशेष अधिक है। स्त्यानगृद्धि में विशेष अधिक है। अप्रत्याख्यानावरण मानम असंख्यातगुणा है । क्रोधमें विशेष अधिक है। मायामें विशेष अधिक है । लोभमें विशेष अधिक है। प्रत्याख्यानावरण मानमें विशेष अधिक है। क्रोधमें विशेष अधिक है । मायाम विशेष अधिक है । लोभमें विशेष अधिक है। केवलज्ञानावरण में विशेष अधिक है ।
शंका- उसमें विशेष अधिक क्यों है ?
समाधान- इसका कारण यह है कि विध्यातभागहारकी अपेक्षा अन्तिम समयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिकका अधःप्रवृत्तभागहार विशेष हीन है । और यह अधःप्रवृत्तभागहार कुछ अवस्थित नहीं है, क्योंकि, इसीसे उसको अनवस्थिता जानी जाती है । पूर्वोक्त भागहारके अल्पबहुत्वके साथ इसका विरोध होगा, यह भी कहना ठीक नहीं है। क्योंकि उसकी उत्पत्ति सबसे जघन्य भागहारके आश्रित है।
केवलज्ञानावरणकी अपेक्षा वह प्रचलामें प्रकृतिविशेषसे विशेष अधिक है । निद्राम विशेष अधिक है । केवलदर्शनावरणमें विशेष अधिक है । नरकगति नामकर्ममें अनन्तगुणा है। देवगति नामकर्ममें असंख्यातगुणा है । वैक्रियिकशरीरमें संख्यातगुणा है। आहारकशरीरमें असंख्यातगुणा है । मनुष्यगति नामकर्ममें संख्यातगुणा है । उच्चगोत्रमें संख्यातगुणा है । तिर्यंचगति नामकर्ममें असंख्यातगृणा है, क्योंकि, उद्वेलनभागहारकी अपेक्षा एक सौ तिरेसठ
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