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छक्खंडागमे संत कम्म
चरिमसमयउवसामओ संतो मदो तस्स पढमसमयदेवस्स उक्क० हाणी । अवद्वाणं णत्थि ।
किमट्ठे छण्णोकसायाणं णावद्वाणं ? बुच्चदे- बंधाभावकाले ण ताव अवट्ठाण संकमो अत्थि, अद्धट्ठदि गणाए परपयडिसंकमेण च पडिसमयं झिज्जमाणकम्मपदेसा ए पडीए बंधाभावेण अपडिग्गहेण अण्णपयडीहितो आगच्छमाणकम्मपोग्गलविरहियाए हाfriकमं मत्तू अवद्वाणाणुववत्तोदो । बंधकाले वि णत्थि, वयादो असंखेज्जगुणायदंसणादो * । तं जहा- छण्णोकसाएसु अप्पिदपयडीए गलमाणदव्वमेगसमयपबद्धस्स संखेज्जदिभागमेत्तं संखेज्जा भागा वा होदि, आगच्छमाणदव्वं पुण कम्मइयवग्गणादो एगसमयपबद्धमेत्तं बंधविरहिदमोहपयडीहितो अधापवत्तसंकमेण असंखेज्जसमयपबद्धमेत्तं च दव्वमागच्छदि । तेण बंधकाले वढिसंकमो चेव, णावट्टियसंकमो ।
सगदव्वमधापवत्त संकमेण बज्झमाणपयडीसु गच्छंतमत्थि त्ति वओ वि असंखेज्जसमयपबद्धमेत्तो अस्थि त्ति किष्ण वुच्चदे ? ण, बंधपयडीदो बंधपयडीसु गच्छंतदव्व
मरणको प्राप्त हुआ है उस प्रथमसमयवर्ती देवके उनकी उत्कृष्ट हानि होती है । उनका अवस्थान नहीं है ।
शंका-- छह नोकषायोंका अवस्थान किसलिये नहीं होता ? समाधान-- इस शंकाके उत्तरमें कहते हैं कि ( यदि उनका अवस्थान सम्भव ह तो क्या वह बन्धके अभावकालमें होता है या बन्धकाल में ? ) बन्धके अभाव कालमें तो उनका अवस्थानसंक्रम सम्भव नहीं है, क्योंकि, अद्धस्थितिगलनसे और परप्रकृतिसंक्रमण से भी प्रतिसमय में क्षीण होनेवाले कर्मप्रदेशसे संयुक्त तथा बन्धाभाव के कारण प्रतिग्रह ( अन्य प्रकृतिके द्रव्यका ग्रहण ) रहित होनेसे अन्य प्रकृतियोंसे आनेवाले कर्म-पुद्गलोंसे विरहित विवक्षित प्रकृति हानिसंक्रमको छोडकर अवस्थानसंक्रम बनता नहीं है । बन्धकाल में भी वह सम्भव नहीं है, क्योंकि, उस समय व्ययकी अपेक्षा आय असंख्यातगुणी देखी जाती है । वह इस प्रकार से उक्त छह नोकषायोंमें विवक्षित प्रकृतिका गलनेवाला द्रव्य एक समयप्रबद्ध के संख्यातवें भाग मात्र अथवा संख्यात बहुभाग मात्र होता है, परन्तु उसका आनेवाला द्रव्य कार्मण वर्गणासे एक समयप्रबद्ध मात्र तथा बन्धविरहित मोहप्रकृतियोंसे अधःप्रवृत्तसंक्रम द्वारा असंख्यात समयप्रबद्ध मात्र द्रव्य आता है। इस कारण बन्धकालमें वृद्धिसंक्रम ही होता है, अवस्थानसंक्रम नहीं होता ।
शंका -- चूंकि अपना द्रव्य अधःप्रवृत्तसंक्रम द्वारा बध्यमान प्रकृतियोंमें जा रहा है, अतएव व्यय भी उनका असंख्यात समयप्रबद्ध मात्र है; ऐसा क्यों नहीं कहते ?
समाधान-- नहीं, क्योंकि, बन्धप्रकृतियोंसे बन्धप्रकृतियों में जानेवाले द्रव्यके समान ही
मप्रतिपायम् । अ-का-ताप्रतिषु ' अधट्टिदि ' इति पाठ: । 8 अप्रतावस्य स्थाने 'वि' इति पाठ: । * अप्रतौ ' छिज्जमाग ' इति पाठः । [D] अ-कावत्यो: ' घेतूण' इति पाठः । * प्रतिष्' असंखेज्जगुणपदंसणादो' इति पाठः । * मप्रतौ ' णोवद्वियसंकमो' इति पाठः ।
ताप्रती 'मेतं च ( दव्वं ) आगच्छदि ' इति पाठः । * अ-काप्रत्योः ' मेत्ता' इति पाठः ।
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