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संकमाणुयोगद्दारे पदेससंकमो
( ४६१
सेवट्टसंघडणाणं अवत्तव्व० थोवा । अप्पदर० अणंतगणा । भुजागार० संखे० गुणा । णीचुच्चागोदाणं सादासादभंगो । एवं भुजगारसंकमो । समत्तो।।
एत्तो पदणिक्खेवो । सामितं । जहा-- मदिआवरणस्स उक्कस्सिया वड्ढी कस्स ? जो गुणिदकम्मसियो तप्पाओग्गउक्कस्सियाए वड्ढीए वड्ढिदो तदो तं वढि वढिदूण आवलियादिक्कतं पुव्वकम्मं च संकात्तस्स सत्तमाए पुढवीए णेरइयस्स उक्क० वड्ढी । उक्क हाणी कस्त ? जो गुणिदकम्मंसियस्स सव्वुक्कस्सेण कम्मेण खवयस्त चरिमसमय पुहुमसांपरइयस्स तस्स उक्कस्सिया हाणी। उक्कस्समवट्ठाणं कत्य ? वड्ढीए। चदुणागाव ण-चदुदंसणावरण-पंचंतराइयाणं मदिणाणावरणभंगो।
णिद्दा-पयलाणं उक्क० वड्ढी कस्स ? गुणिदकम्मंसियस्स चरिमसुहमसांपराइयस्स खबगस्स । उक्क० हाणी कस्स? जो गुणिदकम्मसियो पढमदाए उवसमसेढिं चढिय चरिमसमयसुहमसांपराइयो होदूण मदो, तस्स पढमसमयदेवस्स उक्क० हाणी। उक्कस्समवढाणं मदिआवरणअवटाणतुल्लं । थीणगिद्धितियस्स उक्क० वड्ढी कस्स? गुणिदकम्मसियस्स सव्वसंकमेण संकातस्स । उक्क० हाणी अवट्ठाणं च जहा णिद्दाए
हैं । हुण्ड संस्थान और असंप्राप्तामृपाटिकासंहननके अवक्तव्य संक्रामक स्तोक हैं। अल्पतर संक्रामक अनन्तगुण हैं। भुजाकार संक्रामक संख्यातगणे हैं। नीच और उच्च गोत्रकी प्ररूपणा साता असाता वेदनीयके समान है। इस प्रकार भुजाकार संक्रम समाप्त हुआ।
यहां पदनिक्षेपमें स्वामित्वको प्ररूपणा करते हैं । वह इस प्रकार है- मतिज्ञानावरणकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है? जो गुणितकौशिक जीव तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट वृद्धि के द्वारा वृद्धिको प्राप्त हुआ है, पश्चात् उस वृद्धिसे वृद्धिंगत होकर आवली अतिक्रान्त उसका तथा पूर्व कर्मका भी संक्रम कर रहा है उस सातवों पृथिवीके नारकीके मतिज्ञानावरणकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है। उसको उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो गुणितकौशिक सर्वोत्कृष्ट कर्मके साथ क्षपणा करता हुआ सूक्ष्मसाम्रायिकके अन्तिम समयमें वर्तमान है उसके मतिज्ञानावरणको उत्कृष्ट हानि होती है। उसका उत्कृष्ट अवस्थान कहांपर होता है ? उसका उत्कृष्ट अवस्थान वृद्धि में होता है। शेष चार ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पांच अन्तरायकी प्ररूपणा मतिज्ञानावरणके समान है।
निद्रा और प्रचलाकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? वह गुणितकर्माशिक अन्तिमसमयवर्ती सूक्ष्मसांपरायिक क्षपक के होती है। उनकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो गुणितकौशिक जीव प्रथमतः उपशमश्रेणिपर आरूढ होता हुआ अन्तिम समयवर्ती सूक्ष्म साम्परायिक होकर मरणको प्राप्त हुआ है उसके प्रथम समयवर्ती देव होनेपर उनकी उत्कृष्ट हानि होती है। उनके उत्कृष्ट अवस्थानकी प्ररूपणा मतिज्ञानावरणके अवस्थानके समान है । स्त्यानगृद्धिकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? वह सर्वसंक्रम द्वारा संक्रान्त करनेवाले गुणितकर्माशिकके होती है। उनकी उत्कृष्ट हानि और अवस्थानकी प्ररूपणा निद्राके समान
४ अप्रतौ ' तं वड्डिदूण' इति पाठः ।
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