Book Title: Shatkhandagama Pustak 16
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 136
________________ संकमाणुयोगद्दारे पदेससंकमो ( ४४१ मदिआवरणस्स उक्कस्सपदेससंकामओ केवचिरं कालादो होदि ? जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ । अणुक्कस्सपदेससंकमो केवचिरं० ? जह० अंतोमहत्तं, उक्क० अणंतकालं। चदुणाणावरण-चदुदंसणावरण-पंचंतराइयाणं मदिआवरणभंगो। सव्वकम्माणं पि उक्कस्सपदेससंकमस्त जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ। अणुक्कस्सपदेससंकमस्स कालो पंचण्णं दसणावरणीयाणं अणादिओ अपज्जवसिदो, अणादिओ सपज्जवसिदो, सादिओ सपज्जवसिदो गा। जो सो सादिओ सपज्जवसिदो सो जह० अंतोमुत्त, उक्क० उवड्ढपोग्गलपरियढें । सादासादाणमणुक्कस्सपदेससंकमो केवचिरं०? जहण्णेण एगसमओ, उक्क० अंतोमुहुत्तं । मिच्छत्तस्स जह० अंतोमुहत्तं, उक्क० छावढिसागरोवमाणि सादिरेयाणि । सम्मामिच्छत्तस्स जह० अंतोमुहुत्तं, उक्क० बे-छावठिसागरोवमाणि पलिदोवमस्स असंखे० भागेण सादिरेयाणि । सम्मत्तस्स जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्क० पलिदो० असंखे० भागो। अणंताणुबंधीणं अणादियो अपज्जवसिदो, अणादियो सपज्जवसिदो, सादियो सपज्जवसिदो वा । जो सो सादिओ सपज्जवसिदो तस्स जहण्णेण अंतोमुहत्तं, उक्क० उवड्ढपोग्गलपरियढें । सेसाणं चरित्तमोहणीयपयडीणमणंताणबंधिभंगो। सादियसंतकम्माणं णामपयडीणं जह० उक्क० जच्चिरं पयडिसंकमकालो तश्चिरं अणुक्कस्सपदेससंकमकालो। अणादियसंतकम्मियासु पयडीसुजासि पयडीणं भवसिद्धिओ मतिज्ञानावरणके उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमकका काल कितना है ? जघन्य और उत्कर्षसे वह एक समय मात्र है । उसके अनुत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमका काल कितना है ? वह जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे अनन्त काल प्रमाण है। शेष चार ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पांच अन्तराय; इनके प्रकृत कालकी प्ररूपणा मतिज्ञानावरणके समान है। ___सब कर्मोंके ही उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमका काल जघन्य और उत्कषसे एक समय मात्र है। अनुत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमका काल पांच दर्शनावरण प्रकृतियोंका अनादि-अपर्यवसित, अनादिसपर्यवसित और सादि-सपर्यवसित भी है। इनमें जो सादि-सपर्यवसित है वह जघन्यसे अन्तर्महत र उत्कर्षसे उपार्ध पुदगलपरिवर्तन मात्र है। साता और असाता वेदनीयके अनत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमका काल कितना है ? वह जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त मात्र है। मिथ्यात्व प्रकृतिका वह काल जघन्यसे अन्तर्मुहर्त और उत्कर्षसे साधिक छयासठ सागरोपम मात्र है । प्रकृत काल सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे पल्योपमके असंख्यातवें भागसे अधिक दो छयासठ सागरोपम मात्र है । सम्यक्त्व प्रकृतिका यह काल जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र है । अनन्तानुबन्धी प्रकृतियोंका यह काल अनादि-अपर्यवसित, अनादि-सपर्यवसित और सादि-सपर्यवसित भी है । जो सादि-सपर्यवसित है उसका प्रमाण जघन्यसे अन्तर्महर्त और उत्कर्षसे उपार्ध पदगलारिवर्तन मात्र है। शेष चारित्रमोहनीय प्रकृतियोंके उपर्युक्त कालकी प्ररूपणा अनन्तानुवन्धीके समान है। सादि सत्कर्मवाली नामवकृतियोंका जघन्य व उत्कर्षसे जितना प्रकृतिसंक्रमकाल है उतना ही उनका अनुत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमकाल भी है । अनादि सत्कर्मवाली प्रकृतियोंमें भव्यसिद्धिक जिन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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