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संकमाणुयोगद्दारे पदेससंकमो
( ४४३
विसे । सम्मामिच्छत्ते विसे० । पचलापचलाए असंखे० गुणो । णिहाणिद्दाए विसे० । थीणगिद्धीए विसे० आहारसरीरणामाए अणंतगुणो । जसकित्तीए अणंतगुणो। वेउव्वियसरीरणामाए असंखे० गुणो । ओरालिय० विसे । तेजइय० विसे० । कम्मइय० विसे० देवगइणामाए असंखेज्जगुणो । मणुसगइणामाए विसे० । साद० संखे० गुणो । लोहसंजलणाए संखे गुणो० । दाणंतराए विसे० । लाहंतराए विसे० । भोगंतराए विसे० । परिभोगंतराए विसे० वीरियंतराए विसे० । मणपज्जवणाणावरणे विसे० ओहिणाणावरणे विसे० । सुदणाणावरणे विसे० । मदिणाणावरणे विसे० । ओहिदसणावरणे विसे० अचक्खुदंसणावरणे विसे० । चक्खुदं० विसे । उच्चागोदे संखे० गुणो । णिरयगइणामाए असंखे० गुणो । अजस कित्ति० असंखे० गुणो । असादे संखे० गुणो । णीचागोदे विसे० । तिरिक्खगइणामाए असंखे० गुणो । हस्से संखे० गुणो । रदीए विसे । इथिवेदे संखे० गुणो । सोगे विसे० । अरदीए विसे० । णवंसयवेदे विसे० । दुगुंछाए विसे । भय० विसे० । पुरिसवेदे संखे० गुणो । कोहसंजलणाए संखे० गुणो । माणसंजलणाए विसेसा० । मायासंजलणाए विसेसाहियो । एवमोघुक्कस्सपदेससंकमदंडओ समत्तो।
विशेष अधिक है । सम्यग्मिथ्यात्वमें विशेष अधिक है। प्रचलाप्रचलामें असंख्यातगुणा है । निद्रानिद्रामें विशेष अधिक है। स्त्यानग द्धि में विशेष अधिक है। आहारशरीर नामकर्मम अनन्तगुणा है। यशकीति में अनन्तगुणा है । वैक्रियिकशरीर नामकर्ममें असंख्यातगुणा है ।
औदारिकशरीर नामकर्म में विशेष अधिक है । तैजसशरीरमें विशेष अधिक है । कार्मणशरीरम विशेष अधिक है । देवगति नामकर्म में असंख्यातगुणा है। मनुष्यगति नामकर्ममें विशेष अधिक है । सातावेदनीयमें संख्यातगुणा है । संज्वलन लोभ में संख्यातगुणा है । दानान्तरायमें विशेष अधिक है । लाभान्तरायमें विशेष अधिक है । भोगान्तरायमें विशेष अधिक है। परिभोगान्तरायमें विशेष अधिक है। वीर्यान्तरायमें विशेष अधिक है मनःपययज्ञानावरणमें विशेष अधिक है । अवधिज्ञानावरमें विशेष अधिक है । श्रृतज्ञानावरण में दिशेष अधिक है । मतिज्ञानावरण में विशेष अधिक है । अवधिदर्शनावरण में विशेष अधिक है। अचक्षुदर्शनावरणमें विशेष अधिक है । चक्षुदर्शनावरणमें विशेष अधिक है उच्चागोत्रमें संख्यातगुणा है। नरकगति नामकर्ममें असंख्यातगुणा है । अयशकीर्तिमें असंख्यातगुणा है । असातावेदनीयमें संख्यातगुणा है । नीचगोत्रमें विशेष अधिक है । तिर्यग्गति नामकर्ममें असंख्यातगुणा है । हास्यमें संख्यातगुणा है । रतिमें विशेष अधिक है । स्त्रीवेदमें संख्यातगुणा है । शोकमें विशेष अधिक है । अरतिमें विशेष अधिक है नपुंसकवेदमें विशेष अधिक है । जुगुप्साम विशेष अधिक है । भयमें विशेष अधिक है । पुरुषवेद में संख्यातगुणा है । संज्वलन क्राधमें संख्यातगुणा है । संज्वलन मानमें विशेष अधिक है। संज्वलन माया में विशेष अधिक है इस प्रकार ओघ उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमदण्डक समाप्त हुआ।
४ अ-काप्रत्योः 'असंखेज्जगुणो' इति पाठः । Jain Education International
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