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णिद्दाणिद्दा - पयला पयला थी गिद्धीणं जहण्णाणुभागसंकामओ को होदि * ? सुमेइंदियो कदD हदसमुप्पत्तियकम्मो अण्णदरएइंदियो बेइ दियो तेइंदियो चउरदियो पंचिदियो वा । कुदो ? जहण्णाणुभागेण सह सुहुमेइंदियस्स बीइंदियाएसु उप्पत्तिसंभवादो । सम्माइट्ठी पसत्थकम्माणुभागं ण हणदि । अध्पसत्याणं भवोग्गहियाणं कम्माणमणुभागसंतकम्मं जिणे वट्टमाणं पि असण्णिसंतकम्मादो अनंतगुणं । एदेण कारणेण सादासादाणं णामस्स पयडीणं अणादियसंतकम्मियाणं णीचागोदस्स च कदहदसमुत्पत्तियसंतकम्मियस्स सुहुमेइंदियस्स जहण्णसंतकम्मादो हेट्ठा बंधमाणस्स जहण्णाभागसंकमो । एइंदियादि पंचिदिए वि एदेसि जहण्णाणुभागसंकमो होदि 5 जहण्णाणुभागसंतकम्मिय सुहुमेइंदियस्स जहण्णाणुभागेण सह बेइंदियादिसुप्पत्तिदंसणादो ।
छक्खंडागमे संतकम्मं
मिच्छत्त- अट्ठकसायाणं पि सुहुमेइंदियम्हि चेव कदहदसमुप्पत्तियकम्मम्हि जहण्णाणुभागसंकमो । सम्मामिच्छत्तस्स जहण्णाणुभागसंकामगो को होदि ? जो
निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला और स्त्यानगृद्धिके जघन्य अनुभागका संक्रामक कौन होता है ? जिसने हतसमुत्पत्तिक कर्मको किया है ऐसा सूक्ष्म एकेन्द्रिय अन्यतर एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीव उनके जघन्य अनुभागका संक्रामक होता है । इसका कारण यह है कि जघन्य अनुभागके साथ सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवकी उत्पत्ति द्वीन्द्रिय आदि जीवोंमें सम्भव है । सम्यग्दृष्टि जीव प्रशस्त कर्मोंके अनुभागका घात नहीं करता है । भवोपगृहीत अप्रशस्त कर्मोंका अनुभागसत्कर्म जिन भगवान् में वर्तमान होकर भी असंज्ञीके सत्कर्म से अनन्तगुणा होता है । इस कारण सातावेदनीय, असातावेदनीय, अनादिसत्कर्मक नामप्रकृतियों और नीचगोत्रका जवन्य अनुभागसंक्रम हतसमुत्पत्तिकसत्कर्मिक होकर जघन्य सत्कर्मसे नीचे बांधनेवाले सूक्ष्म एकेन्द्रियके होता है । एकेन्द्रियको आदि लेकर पंचेन्द्रिय पर्यन्त जीवों में भी इनके जघन्य अनुभागका संक्रम होता है, क्योंकि, जघन्य अनुभागसत्कर्मक सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवकी जघन्य अनुभागके साथ द्वीन्द्रियादि जीवों में उत्पत्ति देखी जाती है ।
मिथ्यात्व और आठ कषायों का भी जघन्य अनुभाग संक्रम हतसमुत्पत्तिककर्मको करनेवाले सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवके ही होता है । सम्यग्मिथ्यात्व के जघन्य अनुभागका संक्रामक
* अ-काप्रत्योः ' संक्रमो होदि', ताप्रती ' सकमो ( को ) होदि ' इतिपाठः । D ताप्रतौ ' सुहुमेई - दियकद-' इति पाठ: । सम्मट्ठी न हणइ सुभाणुभागे। क प्र. २- ५६. केवलिणो णंतगुणं असणओ सेस असुभाणं । क. प्र. २-५५. Q सेसाण सुम हयसतकम्मिगो तस्स हेटुओ जाव | बंधइ तावं एगिदिओ व गिदिओ वावि ।। क प्र. २- ५९. उक्तशेषाणं शभानामशुभानां वा प्रकृतीनां सप्तनवतिसंख्यानां यः सूक्ष्मैकन्द्रियो वायुकायिकोऽग्निकायिको वा हुनकर्मा - हतं विनाशितं प्रभूतमनुभागसत्कर्म येन स हतकर्मास तस्यात्म-सत्कस्यानुभागसत्कर्मणोऽधस्तात् ततः स्तोकतरमित्यर्थः । अनुभाग तावद् बध्नाति यावदेकेन्द्रियस्तस्मिन्नन्यस्मिन् वा एकेन्द्रियभवे वर्तमानोऽनेकेन्द्रियो वेति स एव हतसत्कर्मा एकेन्द्रियोऽन्यस्मिन् द्वीन्द्रियादिभत्रे वर्तमानो यावदन्यं बृहत्तरमनुभागं न बध्नाति तावत्तमेव जघन्यमनुभागं संक्रमयतीति । मलय. * मिच्छत्तस्स जहण्णाण भागसंकामओ को होइ ? सुहुमस्स हृदममुप्पत्तिकम्मेण अण्णदरो । एवंदिओ वा वेइंदिओ वा
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