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छक्खंडागमे संतकम्म
हाणि-अवढाणाणि दो वि तुल्लाणि । चदुण्णमाउआणं वढि-अवढाणाणि दो वि तुल्लाणि थोवाणि । हाणी अणंतगुणा । सादियणामपयडीणं उच्चागोदस्स च आउचउक्कभंगो। अणादियणामपयडीणं णीचागोदस्स च सादभंगो। तित्थयरस्स हाणी णत्थि । वड्ढी अवट्ठाणं च दो वि तुल्लाणि। एवं पदणिक्खेवो समत्तो।
वड्ढिसंकमे सामित्तं- छविहाए वड्ढीए को सामी ? अण्गदरो संकामो। छविहाए हाणीए को सामी? अण्णदरो घादेंतवो । आउअवज्जाणं कम्माणं ठिदिघादेण विणा वि अणुभागा हम्मंति, चदुण्णमाउआणं पुण ठिदिघादेण विणा णत्थि अणुभागघादो। एवं सामित्तं समत्तं ।
एयजीवेण कालो- सव्वकम्माणं छविहाए हाणीए संकमस्स जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ। णवरि जासि कम्माणं अणुसमओवट्टणा अस्थि, तेसिमणंतगुणहाणिसंकमस्स जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमुहुत्तं। पंचण्णं वढिसंकमाणं जह० एगसमओ, उक्क० आवलि० असंखे० भागो। अणंतगुणवढिसंकमस्स जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमुहुत्तं । अवट्टियसंकमस्स भुजगारअवट्टियसंकमभंगो । एवं वढि कालो समत्तो।
एयजीवेण अंतरं- पंचवड्ढि-पंचहाणीणमंतरं केवचिरं० ? जह० एगसमओ
हानि और अवस्थान दोनों ही तुल्य हैं। चार आयु कर्मोकी वृद्धि और अवस्थान दोनों ही तुल्य व स्तोक हैं। हानि अनन्तगुणी है। सादिक नामप्रकृतियों और उच्च गोत्रकी प्ररूपणा आयुचतुष्कके समान है। अनादिक नामप्रकृतियों और नीचगोत्रकी प्ररूपणा सातावेदनीयके समान है। तीर्थंकर प्रकृतिकी हानि नहीं है। वृद्धि और अवस्थान दोनों ही तुल्य हैं। इस प्रकार पदनिक्षेप समाप्त हुआ।
वृद्धिसंक्रममें स्वामित्वकी प्ररूपणा की जाती है- छह प्रकारकी वृद्धिका स्वामी कौन है ? उसका स्वामी अन्यतर संक्रामक है। छह प्रकारकी हानिका स्वामी कौन है ? घात करनेवालोंमें अन्यतर जीव उसका स्वामी है। आयुको छोडकर शेष कर्मों के अनुभाग स्थितिघातके विना भी घाते जाते हैं। परन्तु चार आयु कर्मोंके अनुभागोंका घात स्थितिघातके बिना नहीं होता। इस प्रकार स्वामित्व समाप्त हुआ।
एक जीवकी अपेक्षा कालकी प्ररूपणा की जाती है-- सब कर्मोंकी छह प्रकारकी हानिके संक्रमका काल जघन्य व उत्कर्षसे एक समय मात्र है। विशेष इतना है कि जिन कर्मोकी प्रतिसमय अपवर्तना होती है उनकी अनन्तगुणहानिकासंक्रमका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त मात्र है। उनके पांच वृद्धिसंक्रमों का काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे आवलीके असंख्यातवें भाग मात्र है । अनन्तगुणवृद्धिसंक्रमका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहर्त मात्र है। अवस्थितसंक्रमका काल भजाकार अवस्थित संक्रमके समान है। इस प्रकार वृद्धि काल समाप्त हुआ।
एक जीवकी अपेक्षा अन्तर- पांच वृद्धियों और पांच हानियों का अन्तरकाल कितना
४ ताप्रतो 'अणुभागाद।' इति पाठः ।
* प्रतिष 'संकमभागो' इति पाठः ।
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