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छक्खंडागमे संतकम्म पूरिय, असंखेज्जवासाउएसु इथिवेदं पूरिय, पुणो इत्थि वेदे पडिवुण्णे सम्मत्तं लहिय तदो पुरिसवेदो पूरिदो, पुणो पुरिसवेदे पडिवुण्णे मिच्छत्तं गदो, तदो मदो जहणियाए देवट्टिदीए उववण्णो, तदो चुदो मणुस्सेसु अवस्सिएसु उववण्णो, अटवस्सिएण जादेण संजमो पडिवण्णो, अंतोमुहुत्तेण खवगाए अब्भुट्टिदो तदो तेण जाव* कोधो सव्वसंकमेण संकामिदो ताव तस्स उक्कस्सओ पदेससंकमाएदेणेव जीवेण सव्वसंकमे माणे संकामिदे माणसंजलणाए उक्कस्सओ पदेससंकमो । ( एदेणेव जीवेण सव्वसंकमेण मायाए संकामिदाए मायासंजलणाए उक्कस्सओ पदेससंकमो० ।) लोहसंजलणाए उक्कस्सओ पदेससंकमो कस्स ? जेण गुणिदकम्मंसिएण सत्वरहस्सेण कालेण चत्तारिवारं कसाओ उवसामिदो, तेण सव्वलहुएण कालेण खवणाए अब्भुट्ठिदेण चरिमसमयअकद * अंतरेण
वेदको पूर्ण करके असंख्यातवर्षायुष्कोंमें स्त्री वेदको पूर्ण करता है, फिर स्त्रीवेदके पूर्ण हो जानेपर जो सम्यक्त्वको प्राप्त करके तत्पश्चात् पुरुषवेदको पूर्ण करता है, फिर पुरुषवेदके पूर्ण हो जानेपर मिथ्यात्वको प्राप्त होकर तत्पश्चात् मृत्युको प्राप्त होता हुआ जघन्य देवस्थितिसे उत्पन्न होता है, वहांसे च्युत होकर जो अष्टवर्षीय मनुष्यों में उत्पन्न हो आठ वर्षका होता हुआ संयमको प्राप्त होकर अन्तर्मुहूर्त कालमें क्षपणामें उद्यत होता है, उसके जब संज्वलन क्रोध सर्वसंक्रम द्वारा संक्रमको प्राप्त होता है तब उसका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है, । यही जीव जब सर्वसंक्रम द्वारा संज्वलन मानको संक्रान्त करता है तब उसके संज्वलन मानका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है । (यही जीव जब सर्वसंक्रम द्वारा संज्वलन मायाको संक्रान्त करता है तब उसके संज्वलन मायाका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है। ) संज्वलन लोभका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? जो गुणितकौशिक सर्व-हस्व काल में चार वार कषाओंका उपशम करके सर्वलधु कालमें क्षपणामें उद्यत होता हुआ जब अकृतअन्तरकरण रहने के अन्तिम समयमें संज्वलन लोभको संक्रान्त
* प्रतिषु 'पडिवणे' इति पाठः। ४ अप्रतौ 'तदो वच्चदो ' इति पाठः । * काप्रती 'तेगेव जाव', ताप्रतौ 'तेण जावे' इनि पाठः। 88 का-ताप्रत्यौः ‘तावे' इति पाठः।
0 कोहसंजलणस्स उक्कस्सओ पदेससंकमो कस्स? जेण पुरिसवेदो उक्कस्सओ संघद्धो कोधे तेणेव जाधे माणे कोधो सव्वसंकमेण संछुहदि ताधे तस्स कोधस्स उक्कस्सओ पदेससंकमो । एदस्स चेव माणसंजलणस्स उक्कस्सओ पदेससंकमो कायव्यो, णवरि जाधे माणसंजलणो मायासंजणे संछभइ ताधे एदस्स चेव मायासंजलणस्स उक्कस्सओ देससंकमो कायव्वो, णवरि जाधे मायासंजलणो लोभसंजलणे छभइताधे क.पा. सू. प. ४०४, ४०-४३. तस्सेव सगे कोहस्स माण-मायाणमवि कसिणो । क. प्र. २-८७. तथा तस्यैव पुरुषवेदोत्कृष्टप्रदेशसंक्रमस्वामिनः संज्वलनक्रोवस्य संसारं परिभ्रमता उपचितस्य क्षपणकाले प्रकृत्यन्तरदलिकानां गणसंक्रमेण प्रचुरीकृतस्य स्वके अत्मीये चरमसंछोभे उत्कृष्टः प्रदेशसक्रमो भवति । अत्रापि बन्धव्यवच्छेदादक आवलिकाद्विकेन कालेन यद् बद्धं तन्मुक्त्वा शेषस्य चरमसंछ भे उत्कृष्ट: प्रदेशसंक्रमो दृष्टव्यः । एवं मानमाययोरपि वाच्यम् मलय. ।
8 अ-काप्रत्यो: 'कसाय', ताप्रती 'कमाय' इति पाठः। * अ-काप्रत्योः 'अकड.' इति पाठः ।
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