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छवखंडागमे संतकम्म
पबद्धं चरिमसमयसंछुद्धस्स । लोहसंजलणस्स जहण्णट्ठिदिसंकमो कस्स ? समयाहियआवलियचरिमसमयसुहमसांपराइयखवगस्स। पुरिसवेदस्स जहण्णढिदिसंकमो कस्स? पुरिसवेदखवयस्स सगअपच्छिमट्टिदिबंधो संछुहमाणो संछुद्धो ताधे। सम्मत्तस्स जहण्णो द्विदिसंकमो कस्स? समयाहियावलियचरिमसमयअक्खीणदंसणमोहणीयस्स।
आउआणं जहण्णदिदिसंकमो कस्स ? समयाहियावलियचरिमसमयतब्भवत्थस्स । णिरयगइ-णिरयगइपाओग्गाणपुवी-तिरिक्खगइ-तिरिक्खगइपाओग्गाणपुवी-एइंदियबीइंदिय-तीइंदिय-चरिदियजादि-आदावुज्जोव-थावर-सुहम-साहारणसरीराणं जहण्णट्ठिदिसंकमो कस्स ? अणियट्टिखवयस्स एदासि पयडीणमपच्छिमट्ठिदिखंडयस्स चरिमफालि संछुहमाणस्स । सेसाणं णामपयडीणं जहण्णट्ठिदिसंकमो कस्स ? चरिमसमयसजोगिस्स । णीचुच्चागोदाणं जहण्णट्ठिदिसंकमो कस्स ? चरिमसमयसजोगिस्स । एवं जहण्णट्ठिदिसंकमसामित्तं समत्तं ।
एयजीवेण कालो-पंचणाणावरणीय-णवदंसणावरणीय-असाद-मिच्छत्त-सोलसकसायणवंसयवेद-अरदि-सोग-भय-दुगुंछाणं उक्कस्सट्ठिदिसकमो केवचिरं कालादो होदि? जह०
जो अन्तिम समयप्रबद्ध के क्षेपण करनेके अन्तिम समयमें वर्तमान है। संज्वलन लोभका जघन्य स्थितिसंक्रम किसके होता है ? जिसके अन्तिम समयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिक क्षपक होने में एक समय अधिक आवली मात्र शेष है। पुरुषवेदका जघन्य स्थितिसंक्रम किसके होता है? वह पुरुषवेदके क्षपकके उस समय होता है जब निक्षिप्त किया जानेवाला अपना अन्तिम स्थितिबंध पूर्णतया निक्षिप्त हो जाता है। सम्यक्त्व प्रकृतिका जघन्य स्थितिसंक्रम किसके होता है ? जिसके अन्तिम समयवर्ती अक्षीण दर्शनमोह होने में एक समय अधिक आवली मात्र शेष है।
आयु कर्मोंका जघन्य स्थितिसंक्रम किसके होता है ? जिसके अन्तिम समयवर्ती तद्भवस्थ होने में एक समय अधिक आवली मात्र शेष है। नरकगति, नरकगतिप्रायोम्यानपूर्वी, तिर्यग्गति तिर्यग्गतिप्रायोग्यानपूर्वी, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जाति, आतप, उद्योत, स्थावर सूक्ष्म और साधारणशरीर; इनका जघन्य स्थिति संक्रम किसके होता है ? वह इन प्रकृतियोंके अन्तिम स्थितिकाण्डककी अन्तिम फालिका निक्षेप करनेवाले अनिवृत्तिकरण क्षपकके होता है। शेष नामप्रकृतियोंका जघन्य स्थितिसंक्रम किसके होता है ? वह अन्तिम समयवर्ती सयोगीके होता है । नीच और ऊंच गोत्रका जघन्य स्थितिसंक्रमण किसके होता है। वह अन्तिम समयवर्ती सयोगीके होता है । इस प्रकार जघन्य स्थितिसंक्रमका स्वामित्व समाप्त हुआ। __ एक जीवकी अपेक्षा कालकी प्ररूपणा की जाती है-पांच ज्ञानावरणीय, नौ दर्शनावरणीय, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय और जुगुप्साके उत्कृष्ट स्थिति
0 कोहसंजलणस्स जहण्णट्ठिदिसंकमो कस्स ? खवयस्स कोहरजलणस्ल अपच्छिमट्ठिदिबंधचरिमसमयसंछहमाणस्स तस्स जहण्णयं । एवं माण-मायासंजलण-पुरिसवेदाणं । लोभसंजलस्स जहण्णट्रिदिसंकमो कस्स?
आवलियसमयाहियसकसायस्स खवयस्स। क. पा. सु. पृ. ३२१,६४-६८. Jain Education International For Private & Personal Use Only
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