Book Title: Sanskrit Sahitya Me Sarasvati Ki Katipay Zankiya
Author(s): Muhammad Israil Khan
Publisher: Crisent Publishing House

View full book text
Previous | Next

Page 19
________________ -१ संस्कृत साहित्य में सरस्वती का विकास (Evolution of Sarasvati In Sanskrit Literature)1 प्रकृत शोध-प्रबन्ध सात अध्यायों तथा एक परिशिष्ट भाग में विभक्त है । प्रथम अध्याय का नाम 'सरस्वती का प्राथमिक नदी - रूप' है । इस सन्दर्भ में यह बताया गया है कि सरस्वती सर्वप्रथम एक नदी थी । यह प्राचीन भारत की एक अत्यन्त विशाल तथा गहरी नदी थी । ऋषिगण इस के किनारे पर रहते थे । इसका जल अत्यन्त स्वास्थ्य वर्धक था तथा इस नदी का तट शान्त वातावरण युक्त था, अत एव ऋषिगण इससे अत्यन्त प्रभावित होकर इस पर देवी का आरोप करने लगे तथा साथ-साथ इसे यज्ञ से सम्बद्ध कर मंत्रों के उच्चारण में इसकी महती उत्प्रेरणा की कल्पना कर इसे मंत्रों की देवी अथवा वाग्देवी भी स्वीकार करने लगे । ऋग्वेद में 'आप' का वर्णन प्राप्त होता है । ये जल सामान्यतः नदियों का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा इन नदियों में भी सरस्वती प्रधान है । वामनपुराण (४०.१४) में सभी जलों का सरस्वती से तादात्म्य दिखाया गया है । इस आधार पर वैदिक जलों का सरस्वती से तादात्म्य दिखाना असङ्गत नहीं है । हेमचन्द्राचार्य (अभि० चि० ४.१४५ - १४६ ) से इस कथन की पुष्टि देखी जाती है । तदनन्तर सरस्वती शब्द की व्युत्पत्ति दिखाई गई है, जिससे उसका जल से युक्त होना, गतिशीला होना, उत्साह - सम्पन्ना होना आदि भावों की अभिव्यक्ति होती है । वस्तुतः सरस्वती उत्तर भारत की एक महती नदी थी और यह दृषद्वती नदी के साथ ब्रह्मावर्त का निर्माण करती थी - इस ओर संकेत स्वतः मनु ने मनु० स्मृ० ( २.१७) में किया है । इस निरीक्षण के उपरान्त सरस्वती के वास्तविक स्थान तथा मार्ग के अन्वेषण का प्रयास किया गया है । इस सन्दर्भ में राथ, के० सी० चट्टोपाध्याय, मैक्समूलर, दिवप्रसाद दास गुप्ता आदि विद्वानों के मतों को प्रस्तुत किया गया है । इसी प्रसङ्ग में भौगोलिक तथा ऐतिहासिक तथ्यों का निरीक्षण किया गया है । भौगोलिक तथ्य के आधार पर सिद्ध किया गया है कि सरस्वती सिवालिक रेजेज से निकलती थी । सिवालिक रेजेज में भी 'प्लक्ष प्रास्रवण' सरस्वती के उद्गम का एक सुनिश्चित स्थान था । भौगोलिक तथ्यों में समुद्रों का स्थान भी प्रमुख है । अति प्राचीन काल में भारत भौगोलिक स्थिति आज से सर्वथा भिन्न थी तथा आज के 'गङ्ग टिक' मैदान के पश्चिम तथा राजस्थान के पूर्व की ओर एक Tethys Sea था, जिसमें सरस्वती 1. Doctorate for this thesis has been awarded and the work is published by Crescent Publishing House, F/D-56, New Kavinager, Ghaziabad, U. P. (India)

Loading...

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164