Book Title: Sanskrit Sahitya Me Sarasvati Ki Katipay Zankiya
Author(s): Muhammad Israil Khan
Publisher: Crisent Publishing House

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Page 105
________________ ब्रह्मा और सरस्वती के मध्य पौराणिक प्रेमाख्यान ८७ ८७ नाभिं प्राविशत् । आपो रेतो भूत्वा शिश्नं प्राविशन् ।” ऐ० उ० १.२.४ सायणाचार्य ने 'दुहित' का अर्थ दिन अथवा उषा किया है । तदनुसार हम इस कथा को एक भिन्न प्रकार से व्याख्यायित कर सकते हैं। प्रजापति एक स्वर्गीय देव है, अत एव उसने सर्वप्रथम स्वर्गीय देव का सर्जन स्वर्ग में किया होगा (दिवि; धु=to shine and देव is one who is incessantly shining). प्रकृत सन्दर्भ का ध्यान रखते हुए हम कह सकते हैं कि प्रजापति ने सर्वप्रथम उच्चतम आकाश में अपने रेतस् का आधान किया होगा, जहाँ उषा दिन आने के पहले निवास करती है । ब्रह्मा तथा सरस्वती का दैहिक मिलन तथा तत्पश्चात् उत्पत्ति का प्रसङ्ग इस प्राकृतिक घटना की ओर सङ्कत करता है। प्रकृति-परक व्याख्या के आधार पर विषय के सम्यगध्ययन से उपर्युक्त अर्थ सहज-रूप से निकाला जा सकता है । पुराणों ने सरस्वती तथा ब्रह्मा को पत्नी तथा पति के रूप में चित्रित किया है (मथुनौ) । यास्क ने मिथुन का भाव दो अभिप्रायों में किया है। उनमें से एक देवी तथा दूसरा भौतिक अथवा सांसारिक प्रसङ्ग में है । सूर्य तथा उषा प्रथम कोटि में परिगणित हैं तथा पति तथा पत्नी दूसरी कोटि में आते हैं। ब्रह्मा तथा सरस्वती की जो पौराणिक उपकथा है, वह तद्वत् वैदिक उपकथा में सन्निहित है, परन्तु आश्चर्य की बात यह है कि वैदिक एवं पौराणिक मिथुन के अर्थ में महान् अन्तर है । यास्क का कथन है कि जब उषा के साथ सूर्य उत्पन्न हुआ, तब सब देवों ने सम्पूर्ण संसार को देखा। यह मिथुन दैवी है, यह साथ-साथ रहता है तथा यह एक दूसरे के आश्रित है । यह अर्थ शब्द-निष्पत्ति से स्वतः स्पष्ट है : मिथुन =/मिथु+नी<मिथुन; or/मि+थ्+/क्न् । ब्रह्मा तथा सरस्वती के सन्दर्भ में यह मिथुन अनुपयुक्त है, क्योंकि तदनुसार यह मिथुन स्थायो-रूप से साथ-साथ नहीं रहता है । दूसरे यह मिथुन बहुत समय तक प्रसन्न नहीं है । तीसरी बात यह है कि यह मिथुन अन्ततोगत्वा वियुक्त हो जाता है । इसके विपरीत सांसारिक मिथुन, जो कष्टों एवं आपदाओं से परिपूर्ण है, सदैव साथ रहता है। सायण के अनुसार यह भावना मिथुन के पीछे निहित है (मिथ+/ वन्) . यास्क लिखते हैं : मेथतिराकोषकर्मा । - यास्क की व्याख्या के विपरीत 'मिथुन' के अन्य अनेक अर्थ हैं, जो इस समय प्रचलित हैं । वे दम्पति (मिथुन) एक दूसरे की इच्छानुसार रहते हैं। सामान्यतः एक दम्पति (मिथुन) के जीवन में सामञ्जस्य दिखाई देता हैं तथा केवल कुछ ही विपरीतावस्था में सामञ्जस्य का अभाव होता है । पौराणिक ब्रह्मा एवं सरस्वती के मध्य सर्वथा विपरीत भाव का चित्रण है । उनमें वैचारिक समन्वय नहीं दिखाई देता है, क्योंकि हम देखते हैं कि एक ओर ब्रह्मा सरस्वती की अभूतपूर्व सौन्दर्य पर नितान्त मोहित हैं तथा दूसरी ओर सरस्वती शान्त तथा अनिच्छुक है : १०. निरुक्त, ७.२६

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