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संस्कृत-साहित्य में सरस्वती की कतिपय झांकियां
वे आकाश तथा स्वर्ग के रहस्यों को जानते हैं और वे भी जलों से सम्बद्ध हैं। चूंकि गन्धर्व आकाश से सम्बद्ध हैं, अत एव वे वहाँ से जल उत्पन्न करने में समर्थ हैं।" गन्धर्वो के दिव्य जलों का सम्बन्ध उन्हें वाक् के समीप लाता है, क्योंकि जब प्रजापति सृष्टि करना चाहते थे, तब उन्होंने वाक् से जलों को उत्पन्न किया । जल को उत्पन्न करने के कारण इनका स्वभाव समान हैं। इस समानता के कारण वाक्, गन्धर्वो तथा अप्सराओं में अत्यन्त सान्निकट्य है। वाक् भावनाओं की माँ है और गन्धर्व उनके प्रतीक हैं । वाक् अप्सराओं की भी की है : "She is," as Danielou rightly observes, "the mother of the emotions, pictured as the Fragrances or the celestial musicians (gandharva) : She gives birth to the uncreated potentialities, represented as celestial dancers, the water-nymphs (apsaras)."२२
इस वर्णन से स्पष्ट हो जाता है कि वाक् ने गन्धों तथा अप्सराओं को जन्म दिया । कहा जाता है कि गन्धर्वो का सुगन्ध के प्रति अति प्रेम है । वे सोम की रक्षा करते हैं और उनका सोम पर आधिपत्य है । ब्राह्मणों में उन्हें मानवीय गर्मभ्रण से सम्बद्ध दिखाया गया है तथा वे अविवाहित कुमारियों से अत्यन्त प्रेम करते हैं । ब्राह्मणेतर पुराण-कथा में उनकी दशा भिन्न है । यहाँ वे दैवी अत्युत्तम गायकों के रूप में प्रदर्शित हैं तथा वे वीणा बजाते दिखाये गये हैं। उन्हें सङ्गीत का सम्पूर्ण रहस्य ज्ञात है। इसी प्रकार वैदिकेतर साहित्य तथा मूर्ति-विद्या के क्षेत्र में दिखाया गया है कि सरस्वती अपने एक हाथ में वीणा धारण करती है और उसके द्वारा गीत तथा गीत-ध्वनियों को उत्पन्न करती है ।५ जिस प्रकार सङ्गीतज्ञ अपने वाद्य-यन्त्र के द्वारा विभिन्न भावनाओं तथा विचारों को प्रकट करता है, उसी प्रकार सरस्वती अपनी वीणा द्वारा भावनाओं को प्रकट करती है तथा श्रोताओं के मानसिक भावनाओं को जगाती है, अत एव उसे भावनाओं की माँ कहा गया है । इस प्रकार हम देखते हैं कि सङ्गीत तथा भावनाओं का पारस्परिक घनिष्ठ सम्बन्ध है । गन्धर्व भावनाओं के प्रतीक हैं और उनका सङ्गीत से महान् प्रेम है । इसी कारण वे सदैव वीणा धारण किये रहते हैं । ऊपर वाक् का सम्बन्ध भावनाओं तथा गन्धों से दिखाया गया है, परन्तु प्रसङ्गानुसार वाक को सरस्वती समझना चाहिए, क्योंकि वह ही सङ्गीत की स्रोत है तथा उसका ही
२०. एलान डेनिलू, हिन्दू पालिथीज्म (लन्दन, १९६४), पृ० ३०५ २१. जान डाउसन, पूर्वोद्धृत ग्रंथ, पृ० ३२६-३३० २२. एलान डेनिलू, पूर्वोद्धृत ग्रंथ, पृ० २६० २३. वही, पृ० ३०६ २४. वही, पृ० ३०६ २५. द्र० डॉ० मुहम्मद इसराइल खाँ, सरस्वती इन संस्कृत लिटिरेचर (गाज़िया
बाद, १९७८), पृ० १३०-१३३ .