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ब्राह्मणों में सरस्वती का स्वरूप
१०७ थी, तब गन्धर्वों ने उसका अनुगमन किया । वे देवताओं से बोले कि सोम के बदले में हमें वाक् को दे दें । देवताओं ने एक शर्त पर उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली कि यदि वाक् उनके पास से आना चाहे, तो वे उसे अपने पास रहने को बाध्य न करें । २७ फलतः देवता तथा गन्धर्व उसे लुभाने लगे । गन्धर्व वेद का उच्चारण करने लगे " तथा देवता उसको लुभाने के लिए वीणा बजाने लगे । देवता विजयी हुए तथा गन्धर्वों को वाक् तथा सोम दोनों को त्याग देना पड़ा। लौकिक - साहित्य में सरस्वती सभी कलाओं तथा विद्याओं की संरक्षिका है तथा म्यूज के रूप में उसकी बहुशः स्तुति हुई है ।" सरस्वती का यह वैदिकेतर स्वरूप, जो सभी कलाओं तथा विद्याओं से जुड़ा हुआ है, वह रूप ब्राह्मणों में उपलब्ध होता है ।
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farai - रूप में हम कह सकते हैं कि सरस्वती लौकिक साहित्य में वीणा वादन करती हुई प्रदर्शित है । वह सङ्गीत की देवी भी है । वह सभी कलाओं तथा विद्याओं की संरक्षिका है । फलतः मूर्ति - विद्या के क्षेत्र में उसके एक हाथ में वीणा दिखाई गई है ।। शुभ कार्यों के प्रारम्भ में सरस्वती की स्तुति सङ्गीत तथा वाक् की देवी के रूप में की गई है । इस संरम्भ का बीज स्वतः ब्राह्मणों में उपलब्ध होता है । वहाँ कुछ अन्तर के साथ वीणा तथा गायन का वर्णन है । वहाँ स्वतः देवों के हाथ में वीणा है तथा वे उसे बजा कर वाक् को प्रलोभित करना चाहते हैं । यहाँ देवों तथा वाक् का प्रसङ्ग है । यह क्रम लौकिक - साहित्य में बदला हुआ है । लौकिक - साहित्य में सरस्वती स्वयं वीणा धारण करती है तथा उससे देवों तथा अन्यों का मनोरञ्जन होता है । इस प्रसङ्ग से हम वाक् का तादात्म्य सरस्वती से कर सकते हैं ।
७. सरस्वती की कुछ महत्वपूर्ण उपाधियाँ :
ब्राह्मणों में सरस्वती को अत्यल्प उपाधियाँ मिली हुई हैं । उनमें से कुछ प्रमुख का वर्णन निम्नलिखित है ।
(क) वैशम्भल्या :
ब्राह्मणों तथा आरण्यकों में से केवल तैत्तिरीय ब्राह्मण में सरस्वती को यह उपाधि केवल एक बार मिली है । सायण इसकी व्याख्या करते हुए लिखते हैं :
३७. शतपथब्राह्मण, ३.२.४.४
३८. वही, ३.२.४.५
३६. वही, ३.२.४.६-७
४०. जान डाउसन. पूर्वोद्धृत ग्रंथ, पृ० २८४
४१. जेम्स हेस्टिङ्गस, इन्साइक्लोपीडिया ऑॉफ रिलीजन एण्ड एथिक्स, भाग ७ ( न्यूयार्क, १९५५), पृ० ६०५
४२. तैतिरीय ब्राह्मण, २.५.८.६