Book Title: Sanskrit Sahitya Me Sarasvati Ki Katipay Zankiya
Author(s): Muhammad Israil Khan
Publisher: Crisent Publishing House

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Page 129
________________ ब्राह्मणों में सरस्वती का स्वरूप १११ जैसे किसी विचार के प्रकटीकरण की इच्छा, तब मन श्वास में परिणत हो जाता है । जब बलाघात तीव्रतम हो जाता है, तब वह ही श्वास वाक् में परिणत हो जाती है । इस मनोवैज्ञानिक आधार पर मन तथा वाक् का निकटतम सम्बन्ध है तथा मन तथा वाक् का प्रतिनिधित्व सरस्वान् तथा सरस्वती करते हैं । ऐतरेय ब्राह्मण में सरस्वान् को सरस्वतीवान् तथा भारतीवान् कहा गया है । ७२ इससे वहाँ प्रार्थना की गई है कि वह यज्ञ की अग्नि में डाले गये 'परिवाप' को ग्रहणं करे । इसी प्रकार सरस्वती को बहुशः यज्ञ में बुलाया गया है तथा वह वाक् के रूप में यज्ञ से समन्वित है अथवा यज्ञ-रूप ही है सरस्वान् वाक् या वाणी से युक्त है, अत एव वह सरस्वतीवान् कहा गया है । इसी प्रकार सरस्वान् भारती अर्थात् प्राण अथवा श्वास से संयुक्त है, अत एव उसे भारतीवान् कहा गया है । यही प्राण अथवा श्वास शरीर को धारण किये रहता है । ७५ । ६. सरस्वती का वाक् से तादात्म्य : ७४ सरस्वती सर्वप्रथम एक पार्थिव नदी थी, परन्तु अपने जलों की पवित्रता के कारण उसे देवी चरित्र मिला । तत्पश्चात् वह वाक् तथा वाक् की देवी भी बन गई । ७६ सरस्वती नदी के पवित्र जलों ने लोगों में पवित्र जीवन प्रदान किया । इस पवित्र जीवन के कारण उनमें पवित्र वाक् का जन्म ऋचाओं के रूप में उद्बुद्ध हुआ । इन पवित्र ऋचाओं के कारण सरस्वती नदी का तादात्म्य वाक् तथा वाग्देवी से हो गया । सरस्वती नदी का तादात्म्य वाक् से है, इसकी पुष्टि इस प्रमाण से होती है कि वाक् कुरु-पञ्चाल के मध्य अवस्थित प्रदर्शित है : "तस्मादत्रोऽत्राहि व्वाग् वदति कुरुपञ्चालत्रा व्वाग् ध्येषा ।" यहाँ जिस वाक् का वर्णन किया गया है, वह सरस्वती नदी ही है, जो कुरु- पञ्चाल क्षेत्र से होकर बहती है । सरस्वती अथवा वाक् का सम्बन्ध सोम से भी पाया जाता है तथा इस सम्बन्ध के कारण सरस्वती को 'अंशुमती' कहा गया है, जिसका अर्थ सोम से परिपूर्ण है : "Soma frightened by Vrtra, ... ७१. तु० शतपथ ब्राह्मण हिन्दीविज्ञानभाष्य सहित, भाग २ ( राजस्थान- वैदिकतत्त्वशोध संस्थान, जयपुर, १६५६), पृ० १३५३ ७२. ऐ० ब्रा० २.२४ ७३. तु० डॉ० मुहम्मद इसराइल खाँ, पूर्वोद्धृत ग्रंथ, पृ० ५४, पाद-टिप्पणी १६५ ७४, श० ब्रा० ३.१.४.६, १४ इत्यादि । ७५. सायण - भाष्य ऐ० ब्रा० २.२४ ७६. तु० डॉ० मुहम्मद इसराइल खाँ, पूर्वोद्धृत ग्रंथ, पृ० २८-२६ ७७. श० ब्रा० ३.२.३.१५ ७८. तु० डॉ० मुहम्मद इसराइल खाँ, पूर्वोद्धृत ग्रंथ, पृ० ६६ - १०३

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