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ब्राह्मणों में सरस्वती का स्वरूप
१०३ प्रतिमा' नामक शीर्षकों में सरस्वती को स्थान-स्थान पर प्रकृति का रूप दिया है । इस प्रकार वह सृष्टि करने वाली है । सरस्वती से सृष्टि दो प्रकार से हो सकती है । वह देवी-रूप से अपने 'प्रकृति' नामक चरित्र से सृष्टि करती है अथवा जल द्वारा सृष्टि करती है । जब वाक् को जल प्रदर्शित किया गया है, तब इस से सरस्वती की वाक् के रूप से कल्पना जन्म लेने लगती है । वह माध्यमिका वाक् से बादलों में रहती है, इन्द्र की वृत्र (मेघ) हनन में सहायता करती है और जल-वर्षण होता है । इस वर्षण से सृष्टि का कार्य चलता है। ऊपर वाक् को प्रजापति के मस्तिष्क से उत्पन्न दिखाया गया है और वह वाक् वेदों का प्रतिनिधित्व करती है । पुराणों में स्वतः सरस्वती (वाक्) को ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न प्रदर्शित किया गया है। इस प्रकार वैदिक वाक् तथा प्रजापति पौराणिक सरस्वती तथा ब्रह्मा के समानान्तर हैं । ब्रह्मा तथा सरस्वती के समन्वय का बीज वेदों में नामान्तर से हुआ है।
४. वाक तथा गन्धर्वो की कथा : ब्राह्मणों में वाक् तथा गन्धर्यों की कथा अत्यन्त रोचक है। इस कथा का पूर्ण विवेचन करने के पूर्व यह अपेक्षित प्रतीत होता है कि हम गन्धर्वो के विषय में कुछ जानकारी प्राप्त कर लें।
गन्धों के चरित्र तथा प्रकृति के विषय मे बड़ा मत-भेद है। वे केवल ब्राह्मणों में ही वर्णित नहीं हैं, अपितु ऋग्वेद में भी उनका वर्णन उपलब्ध होता है । वहाँ वे एक वचन तथा बहुवचन में प्रदर्शित हैं । वेदों में उन्हें सोम-पेय से वञ्चित प्रदर्शित किया गया है तथा यह वञ्चितता उन्हें एक अपराध-स्वरूप मिली है, क्योंकि उनकी संरक्षता में विश्वावसु सोम को चुरा ले गया। वे अप्सराओं से सम्बद्ध हैं तथा ये अप्सराएँ दिव्य जलों से सम्बद्ध हैं । जल उनका मूल निवास माना गया है तथा ये जल की 35CAT-FTET I The "dominant trait in the character of the Apsarases, the original water-spirits, is their significant relation with apah, the aerial waters, and consequenty, their sway over the human mind-a later development to link mind with the deities connected with waters."१९ इसी प्रकार गन्धर्व आकाश में रहते हैं तथा
१६. ऋ० १.१६३.२; ६.८३.४,८५.१२; १०.१०.४, ८५.४०-४१, १२३.४,७,
१३६.५-६,१७७.२ १७. वही, ६.११३.३ १८. बी० आर० शर्मा, 'सम आसपेक्ट्स ऑफ गन्धर्वस एण्ड अपसरसस्', पूना
ओरिएण्टलिस्ट, भाग १३, न० १-२ (पूना, १६४८), पृ०६८ ___१६. वही, पृ० ६६