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संस्कृत-साहित्य में सरस्वती की कतिपय झाँकियाँ
इला, सरस्वती तथा भारती भूः भुवः तथा स्व: की प्रतिनिधिकारिणी देवियाँ हैं, अत एव वे तत्तत्स्थानों की वाक् हैं। इन देवियों को एक दूसरे नाम से भी जाना जाता है । वाणी के तीन अन्य भेद भी हैं, जिन्हें पश्यन्ती, मध्यमा तथा वैखरी कहा गया है । तीनों देवियाँ में से भारती पश्यन्ती है, सरस्वती मध्यमा है तथा इला वैखरी है ।" वही नादात्मिका वाक् परा, पश्यन्ती, मध्यमा और वैखरी के रूपों में प्रसिद्ध है । अपने मूल स्रोत-रूप में वाक् परा है । जब वह सूक्ष्म रूप से हृदयगत है, तब वह पश्यन्ती है, क्योंकि उस अवस्था में वह केवल योगियों द्वारा ही जानी जा सकती है । जब वह हृदय के मध्य में उत्पन्न होकर स्पष्ट तथा ज्ञातव्य हो जाती है, तब मध्यमा है | जब वह तालु, कण्ठ, ओष्ठ आदि मुखस्थ अवयवों से बहिर्गत होती है, तब वैखरी कही जाती है। वाणी के ये चतुविध रूप एक मनुष्य में वाणी के प्रकटीकरण की चार अवस्थाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं ।
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एक अन्य मत के अनुसार इला, सरस्वती तथा भारती के तीनों लोकों के सम्बन्ध को एक भिन्न प्रकार से अभिव्यक्त किया गया है। तदनुसार इला को इरा जानना चाहिए, जिस इरा का अर्थ वेदों में इस प्रकार किया गया है : "... any drinkable fluid, a draught ( especially of milk), refreshment, comfort, ejnoyment, etc". तब वाक् के रूप में इला का अर्थ पार्थिव ज्ञान से है, जो हमें भोजन, पेय, विश्राम और जीवन की आवश्यकताओं को देता है तथा जो हमें जीविकोपार्जन में सहायता प्रदान करता है । अन्तरिक्ष स्थानीय वाक् के रूप में सरस्वती धर्म-निष्ठा के ज्ञान का प्रतिनिधित्व करती है, जो मनुष्यों के लिए स्वर्ग
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३७. डॉ० सूर्य कान्त, 'सरस, सोम एण्ड सीर', ए० बी० प्रो० आर०, आई०, भाग ३८ ( पूना, १६५८), पृ० १२७- १२८
३८. सायण - भाष्य ऋ० १.१६४.४५
"परा पश्यन्ती मध्यमा वैखरीति चत्वारीति । एकैव नादात्मिका वाक् मूलाधारादुदिता सती परेत्युच्यते । नादस्य च सूक्ष्मत्वेन दुर्निरूपत्वात् संव हृदयगामिनी पश्यन्ती इत्युच्यते योगिभिर्द्रष्टुं शक्यत्वात् । सैव बुद्धि गता विवक्षां प्राप्ता मध्यमेत्युच्यते । मध्ये हृदयाख्ये उदीयमानत्वात् मध्यमा वाक् । अथ यदा सैव वक्त्रे स्थिता ताल्वोष्टादिव्यापारेण बहिर्निर्गच्छति तदा वैखरी इत्युच्यते, "; तु० विल्सन - भाष्य, वही, १.१६४.४५ ( चत्वारि वाक्यपरिमिता पदानि )
३६. वही, १.१६४.४५
४०. मोनियर विलियम्स, प्र संस्कृत - इङ्गलिश डिक्शनरी (आक्सफोर्ड, १८७२ ), पृ० १४१