Book Title: Sanskrit Sahitya Me Sarasvati Ki Katipay Zankiya
Author(s): Muhammad Israil Khan
Publisher: Crisent Publishing House

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Page 64
________________ ४६ संस्कृत साहित्य में सरस्वती की कतिपय झाँकियाँ पुत्री', तथा ( २ ) 'सरस्वती' नाम से अभिहित करते हैं । (३) मत्स्यपुराण के अनुसार सरस्वती का आदि स्रोत सर्पसरोवर ( सर्पाणां तत्सरः ) है । इस सरोवर से 'सरस्वती' तथा 'ज्योतिष्मती' दो नदियों का अविर्भाव होता है । ये दोनों नदियाँ इससे निकल कर क्रमश: 'पूर्वी' एवं 'पश्चिमी' समुद्रों में गिरती है । ' (४) वामनपुराण सरस्वती को 'ब्रह्मसरोवर' से निकली हुई मानता है । वास्तव में ब्रह्मसरोवर की कल्पना कवि-कल्पित अथवा मनसिज जान पड़ती है, क्योंकि इसकी भौतिक स्थिति अभी तक सिद्ध नहीं हो सकी है । इसका तादात्म्य 'मानसरोवर' अथवा 'मानस - सर' से सम्भावित है, परन्तु इसकी स्थिति की कल्पना इतस्ततः की गई है । यह 'शिवालिक की पहाड़ियों के पश्चिम में भी माना गया है तथा इससे सुदूर पूर्व दिशा में भी । यदि यह 'शिवालिक' के पश्चिम में स्थित है, तब निश्चित रूप से इसे ऋग्वैदिक सरस्वती का उद्गम स्थल नहीं माना जा सकता, क्योंकि सर्वसम्मत्या 'शिवालिक' ही वैदिक सरस्वती का उद्गम स्थल माना गया है । * यदि इसे 'शिवालिक' के पूर्व में भी मानें, तो भी इससे वैदिक सरस्वती की उत्पत्ति नहीं मानी जा सकती । वह केवल 'बङ्गाल' में होने वाली तन्नामक कोई नदी मानी जा सकती है, " न कि ऋग्वैदिक सरस्वती । ५ ऋग्वैदिक सरस्वती का सम्बन्ध प्रारम्भ से ही हिमालय से रहा है, जैसा कि हम ने पहले देखा है, लेकिन काल-क्रम से नदियों का मार्ग सदैव परिवर्तित होता रहा है ; सरस्वती के विषय में भी यही बात लागू होती है । समयानुसार सरस्वती का स्थान परिवर्तन होता रहा और एक समय ऐसा आया जब यह पूर्ण रूप से विलीन ( गुप्ता ) हो गई । इस पर साहित्यिक, धार्मिक, भौगोलिक, ऐतिहासिक, भूतत्त्वीय आदि अनेक दृष्टिकोणों से विचार हुए हैं और हो रहे हैं। लोगों में सामान्य विश्वास है कि यह नदी प्रयाग में गङ्गा एवं यमुना से मिलती है । प्रत्यक्षतः यहाँ गङ्गा एवं यमुना दो १. श्री हेमचन्द्राचार्य, अभिधानचिन्तामणि, ४। १५१ २. मत्स्यपुराण, १२१।६४-६५ ३. वामनपुराण, ४०।१३ ४. डी. एन. वाडिया, जियालोजी श्रॉफ इण्डिया ( न्यूयार्क, १९६६), पृ० १०; तु० एन. एन. गोडबोले, ऋग्वैदिक सरस्वती ( राजस्थान सरकार, १९६३), पृ० १७ ५. 'इण्डो-ब्रह्म रीवर' सम्बन्धी विचार-धारा से तु० दिवप्रसाद दास गुप्त, 'आइडेण्टिफिकेशन ऑफ द एन्शिएण्ट सरस्वती रीवर', "प्रोसीडिङ्गस् एण्ड ट्रान्सक्शन्स ऑफ आल इण्डिया प्रोरियण्टल कान्फरेन्स ( अन्नामलाई नगर, ११५८), पृ० ३६ आगे

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