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संस्कृत-साहित्य में सरस्वती की कतिपय झांकियां शाश्वत् फलों को धारण करती है, जिस में ऋतुओं का व्यवधान नहीं होता है। एक दुधारु गाय के रूप में वह पशुओं में सर्वोत्तम है, अत एव वह पशु-समुदाय की माँ कही जाती है। कहा जाता है कि उस के हाथ सतैल हैं। वह जिस गृह में निवास करती है, वहाँ अग्नि शत्रुओं से रक्षा करता है और शाश्वत् कल्याण को लाता है । हाथों के समान उस के पैर भी तैलयुक्त हैं। यही कारण है कि उस से यज्ञ-पुरोडाश पर बहने के लिए प्रार्थना की गई है ।२२
इला की भाँति भारती एक यज्ञ की देवी है ।२५ वेदों में सामान्यतः वह स्वतंत्र रूप से आती है, परन्तु कुछ स्थानों पर सरस्वती के साथ आहूत है। इस देवी के व्यक्तित्व के साथ कुछ अभूतपूर्व विचित्रताएँ दृष्टिगोचर होती हैं । वेदों में तो वह सर्वथा स्वतंत्र है तथा सरस्वती से भिन्न एक देवी है, परन्तु वैदिकेतर काल में उस की वैयक्तिक सत्ता सरस्वती में घुल-मिल सी गई है। दोनों के नाम प्रायः एक दूसरे के पर्याय हैं । इस सामञ्जस्य का बीज स्वतः अथर्ववेद में उपलब्ध होता है, जहाँ न केवल सरस्वती तथा भारती के, अपितु इला के भी व्यक्तित्व का पारस्परिक सामञ्जस्य दृष्टिगोचर होता है ।
श्रीअरविन्दो के अनुसार इला, सरस्वती और भारती क्रमशः दृष्टि, श्रुति तथा सत्य चेतना की महानता का प्रतिनिधित्व करती हैं । २५
ये तीनों देवियाँ वाणी के तीन रूपों का प्रतिनिधित्व करती हैं । वेदों में सम्भवतः यह वणित नहीं है कि कौन देवी किस वाग्रूप का प्रतिनिधित्व करती है। एतदर्थ हमें सायण जैसे व्याख्याकारों के भाष्य का सहारा लेना पड़ता है। भारती का एक अन्य नाम मही भी है । सायण का स्पष्ट कथन है कि ये तीनों देवियाँ स्वतः वाणी के तीन रूप हैं । उन्हों ने भारती को 'द्युस्थाना वाक्' माना है । उन्हों ने उसे
१८. वही, ४.५०.८ १६. वही, ५.४१.१६ २०. वही, ७.१६.८ २१. वही, १०.७०.८ २२. वही, १०.३६.५ २३. तु० जेम्स हेस्टिग्स, इन्साइक्लोपीडिया ऑफ रिलीजन एण्ड एथिक्स, भाग १२
(न्यूयार्क, १९५६), पृ० ६०७ २४. अथर्ववेद, ६.१००.१ (तु० तिस्रः सरस्वतीः) २५. श्रीअरविन्दो, ऑन द वेद (पाण्डिचेरी, १९५६), पृ० ११० २६. सायण-भाष्य ऋ० १.१४२.६ “भारती भरतस्यादित्यस्य सम्बन्धिनी
अस्थाना वाक्