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पुराणों में सरस्वती की प्रतिमा बेद में गायत्री, त्रिष्टुप्, जगती, अनुष्टुपादि सात प्रकार के छन्द प्रयुक्त हैं। इन सभी छन्दों में गायत्री को प्रमुखता दी गई है । ये सम्पूर्ण छन्द संयुक्त अथवा वियुक्त रूप से न केवल छन्द का ही प्रतिनिधित्व करते हैं, वरन् व्यापक रूप से वेद-भाव को भी ध्वनित करते हैं। अत: यह स्वतः सिद्ध हो जाता है कि सरस्वती का ऋग्वैदिक विशेषण 'सप्तस्वसा' जहाँ एक ओर उनको वाक् से सम्बद्ध करता है, वहाँ दूसरी ओर पौराणिकसिद्धान्तानुसार उनके मुख का ध्वनितार्थ सावित्री अथवा गायत्री में माना जाय, तो ऐसी अवस्था में यह उनके वाक् सम्बन्ध को ही स्पष्ट करता है । पौराणिक सिद्धान्तानुसार सरस्वत्युत्पत्ति ब्रह्मा से मानी गई है, परन्तु एक पग और आगे बढ़कर उनका यह कहना कि सरस्वती की उत्पत्ति ब्रह्मा के मुख से हुई है। यह स्पष्ट रूप से सरस्वती-रूपी वागोत्पत्ति का ही प्रतिपादन करना है, क्योंकि वाक् की उत्पत्ति ब्रह्मा के मुख से मानी गई है। सामान्य रूप से इस वाग द्वारा वागोत्पत्ति का वर्णन किया गया है, परन्तु विशेष रूप से उसके द्वारा वेदों एवं शास्त्रों की लक्षणोत्पत्यभिव्यक्ति होती है । मत्स्यपुराण में एक स्थल पर कहा गया है कि वेदों एवं शास्त्रों की उत्पत्ति ब्रह्मा के मुख से हुई है, अत एव सरस्वती के मुख की कल्पना वेद से करना निश्चित रूप से उनकी उत्पत्ति तथा ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न वेद-शास्त्र-विषयक सिद्धान्त का दृढीकरण है । जिस प्रकार ब्रह्मा के चारो मुख चारो वेदों के प्रतीक हैं, तद्वत् सरस्वतीमुख भी वेद के प्रतीक हुए, ऐसा मानना सर्वथा निर्दोष एवं युक्तियुक्त है ।
पुराणों में यह बात बारम्बार कही गई है कि ब्रह्मा से सम्पूर्ण जगत् की सृष्टि हुई है। इस कार्य हेतु उन्हें अपने मस्तिष्क अथवा प्रतिभा द्वारा उत्पत्ति-विषयक आयोजन पूर्व से ही करना पड़ा । यहाँ मस्तिष्क अथवा प्रतिभा वेद-वाचक है, जिसे चतुर्विध प्रकृति से युक्त ब्रह्माण्ड का रूपक माना गया है, अत एव ब्रह्मा-मस्तिष्क
१. मत्स्यपुराण, १७१.३३; वायुपुराण, ६. ७५-७८ २. ब्रह्मवैवर्तपुराण, १.३.५४-५७
प्राविर्बभूव तत्पश्चान्मुखतः परमात्मनः। एका देवी शुक्लवर्णा वीणापुस्तकधारिणी ॥५४॥
xxx वागधिष्ठातृदेवी सा कवीनामिष्टदेवता ।
शुद्धसत्त्वस्वरूपाश्च शान्तरूपा सरस्वती ॥५७।। ३. भागवतपुराण, ३. १२. २६ ४. मत्स्यपुराण, ३.२-४ ५. डॉ० प्रियबाला शाह, पूर्वोद्धृत ग्रन्थ, पृ० १४०
"The four faces of Brahman represent the four Vedas : the eastern Rgveda, the southern Yajurveda, the western
Samaveda and the northern Atharvaveda." ६. वासुदेव शरण अग्रवाल, मत्स्यपुराण-ए स्टडी (आल इण्डिया काशिराज
ट्रस्ट, रामनगर, वाराणसी, १९६३), पृ० १५, २८