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सरस्वती का वाहन
जिस प्रकार आत्मन् संसार की सृष्टि करता है, इसी प्रकार सरस्वती संसार की सृष्टि करती है । ब्रह्मवं वर्तपुराण में इस प्रकार का वर्णन मिलता है और इस सम्बन्ध में वहाँ सांख्य-सिद्धान्त का अनुकरण उपलब्ध होता है । इस सम्बन्ध में कहा गया है कि आत्मन् सर्वप्रथम था, जिसकी शक्ति का नाम 'मूलप्रकृति' है । प्रारम्भ में आत्मन् निष्क्रिय था। जब उसे सृष्टि की इच्छा हुई, तब उसने स्वयं स्त्री एवं पुरुष का रूप धारण कर लिया। इसका स्त्री-रूप प्रकृति कहलाया। श्रीकृष्ण की इच्छानुसार यह प्रकृति पञ्चधा हो गई, जिनका नाम दुर्गा, राधा, लक्ष्मी, सरस्वती और सावित्री था। इस प्रकार सरस्वती पाँच प्रकृतियों में से एक है, जो सृष्टि की की है । इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि सरस्वती परमात्मा की शक्ति है, जिस शक्ति के आधार पर उसने संसार का निर्माण किया। कार्य की यह शक्ति उसे परमात्मा से घनिष्ठ-रूप से सम्बद्ध करती है । अन्ततोगत्वा यह सम्बन्ध समन्वय में परिवर्तित हो जाता है । सरस्वती से सम्बद्ध यह हंस इस समन्वय को भी अभिव्यक्त करता है।
हंस का तात्पर्यार्थ एक भिन्न प्रकार से भी स्पष्ट किया जा सकता है। पहले कहा गया है कि हंस, I' and 'He' के तादात्म्य को अभिव्यक्त करता हैं । 'I' and 'He' के तादात्म्य की भावना सम्पूर्ण ज्ञान की रक्षक है। हंस का ज्ञान से गहरा सम्बन्ध है और तथाकथित ज्ञान के सन्दर्भ से हंस सरस्वती से सम्बद्ध है । हंस एक मंत्र का भी नाम है, जिसे 'अजया मंत्र' कहते हैं और जो विना प्रयत्न के बोला जाता है। इसकी ध्वनि चरम सत्ता की चरम ध्वनि का प्रतिनिधित्व करती है । इसी चरम ध्वनि के बल पर ज्ञान वितरित होता है । सरस्वती से सम्बद्ध हंस इन सब का प्रतिनिधित्व करता है । इसी कारण सामान्य जन-विश्वास में हंस ज्ञानवान्' कहा जाता है । सरस्वती का हंस-गमन ज्ञान के साथ भ्रमण करना है।
इसके अतिरिक्त हंस शुद्धता (purity) को व्यक्त करता है । इस शुद्धता अथवा निर्मलता का सम्बन्ध बाह्य वस्तुओं से नहीं है, अपितु मन अथवा मस्तिष्क की तथाकथित भावना को अभिव्यक्त करता है । इस अवस्था में यह मस्तिष्क अथवा मन सांसारिक प्रलोभनों से मुक्त रहता है । सरस्वती से सम्बद्ध हंस उसकी पवित्रता को अभिव्यक्त करता है, क्योंकि वह ज्ञान का साक्षाद्-रूप है और ज्ञान ऐसा साधन है, जिससे शाश्वत् पवित्रता प्राप्त की जाती है ।
२२. वायुपुराण, ६. ७१-८७ २३. दि माडर्न साइक्लोपीडिया, भाग ७ (लन्दन), पृ० ३४४
"The name of Sarasvati itself implies the female energy." २४. जान गैरट, क्लासिकल डिक्शनरी ऑफ इण्डिया (मद्रास, १८७१),
पृ० ६६८