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संस्कृत-साहित्य में सरस्वती की कतिपय झाँकियाँ
उसका किसी भी व्यापार अथवा वाणिज्य से घनिष्ठ सम्बन्ध नहीं है। यह उन में एक महान् अन्तर है। ऋग्वेद में सरस्वती के दो रूप उपलब्ध होते हैं । वह एक रूप से सौम्य है, तो दूसरे रूप से असौम्य है । उसके असौम्य रूप को प्रकट करने के लिए स्वतः ऋग्वेद में कतिपय विशेषण प्रयुक्त हैं। ऐसे विशेषणों में 'घोरा" और 'वृत्रघ्नी प्रमुख हैं। ये विशेषण यह घोषित करते हैं कि उस का युद्ध से घनिष्ठ है । सरस्वती के विशेषण 'वृत्रघ्नी' से ज्ञात होता है कि वह इन्द्र के शत्रु वृत्र का हनन करती है और इन्द्र की सहायता करती है। इसके अतिरिक्त ऋग्वेद में सरस्वती को वीरों की रक्षा करते हुए प्रदर्शित किया गया है तथा इस कारण से उसे 'वीरपत्नी' कहा गया है। सरस्वती से सम्बद्ध ये वीरतापूर्ण कार्य हमें इस बात का विश्वास दिलाते हैं कि अति प्राचीन काल में शक्ति-पूजा की कल्पना जन्म ले चुकी थी । फलतः वीर युद्धों में जाने के पूर्व अपनी रक्षा एवं विजय के लिए सरस्वती का किसी न किसी प्रकार आवाहन और उत्प्रेरण किया करते थे । ऋग्वेद में सरस्वती को 'पावीरवी' कहा गया है, जिसका अभिप्राय यह है कि सरस्वती अपने हाथ में 'पवि' अस्त्र रखती थी। यह देवी ऋग्वेद में स्पष्टतर रूप से युद्ध की देवी वणित नहीं है, परन्तु उस के साहसिक तथा वीरतापूर्ण कार्य इस बात का विश्वास दिलाते हैं कि उस के चरित्र में युद्ध-भाव प्रविष्ट हो गया है । इस भाव की झलक कुछ अन्य प्रसङ्गों से जानी जा सकती है । उदाहरण के रूप में एक प्रसङ्ग को स्पष्ट किया जा रहा है । प्रकृति-परक सिद्धान्त के आधार पर सरस्वती का एक रूप माध्यमिका वाक् है। वह मध्यम स्थान अन्तरिक्ष में बादलों में निवास करती है तथा जल-यक्त मेघ में माध्यमिका वाक् है, जिसमें बिजली चमकती है और शब्द होता है। वृत्र भी मेघ ही है, जो जल का वर्षण नहीं करता । सूर्य को इन्द्र कहा गया है, जो तेज तथा शक्ति का प्रतीक है । उसी का तेज विद्युत् के रूप में अन्तरिक्षस्थ बादलों में रहता है और वही तेज विद्युत् के रूप में निकल कर न वर्षने वाले बादलों को बरसने के लिए प्रेरित करता है। इन्हीं बिजली के क्षेपणों को इन्द्र-वज्र-(पवि) क्षेपण कहा गया है। यद्यपि यह कार्य सरस्वती का है, तथापि इसे इन्द्र का कार्य माना गया है। सरस्वती का यही कार्य इन्द्र को वृत्र-वध में सहायता पहुँचाना है । इन्द्र (सूर्य) वीर का प्रतीक है । वैदिकेतर साहित्य में कात्तिकेय और दुर्गा युद्ध से सम्बद्ध हैं, परन्तु वैदिक साहित्य में उन का नाम भी उपलब्ध होता है । सरस्वती का युद्ध-सम्बन्धी रूप उस के 'घोर' रूप से तथा इन्द्र और वृत्र के सम्बन्धों से प्रकट होता है ।
७. ऋ० ६.६१.७ ८. वही, १.६१.७ ६. तु० विल्सन व्याख्या वही, ६.४६.७ (वीरपत्नी के सन्दर्भ से) १०. तु० वही, ६.४६.७; १०.६५.१३ पर सायण, गेल्डनर, मोनियर विलियम्स के
मत 'पावीरवी' के प्रसङ्ग से।